Jul २१, २०१९ १२:५१ Asia/Kolkata

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपने पाठ में पैग़म्बर की यह हदीस बयान की कि आराम व ऐश्वर्य के समय ईश्वर को याद रखो और उससे लौ लगाओ ताकि ईश्वर भी कठिनाई के समय तुम्हें याद रखे।

वरिष्ठ नेता कहते हैं कि ऐसा नहीं होना चाहिए कि जब आराम व ऐश्वर्य के समय हो तो हम ईश्वर को भूले रहें और जब हम पर कोई मुसीबत पड़े और कठिनाई आए तभी हम ईश्वर से अपनी कठिनाई बयान करें और उसकी शरण में जाएं। हमें आराम व संपन्नता के समय  भी ईश्वर से जुड़े रहना चाहिए। जब यह तै हो कि हमें कोई चीज़ मांगनी है तो उसे ईश्वर से ही मांगना चाहिए उसके अलावा किसी से नहीं मांगना चाहिए, हां किसी को माध्यम बनाया जा सकता है क्योंकि उस स्थिति में भी मनुष्य वास्तव में ईश्वर से ही मांगता है। मनुष्य के जीवन में कुछ माध्यम होते हैं और वह उनसे संपर्क करता है, जैसे चिकित्सक। जब हम चिकित्सक के पास भी जाएं तो वास्तव में हम ईश्वर से ही शिफ़ा चाहें। अब सवाल यह है कि ईश्वर से क्यों मदद मांगें? उसने हमारे और आपके सभी मामलों को निर्धारित कर रखा है जिसका निष्कर्ष यह है कि अगर पूरी दुनिया एकत्रित हो जाए और हमें कोई भलाई पहुंचाना चाहे और उसने वह हमारे लिए निर्धारित नहीं की है तो पूरी दुनिया भी कुछ नहीं कर सकती। इसका विपरीत बिंदु भी ऐसा ही है। अगर पूरी दुनिया हमें नुक़सान पहुंचाना चाहेगी और वह ईश्वर की इच्छा के विपरीत होगी हो कोई हमें नुक़सान नहीं पहुंचा सकता। ईश्वर ने हमारे लिए जो कुछ निर्धारित किया है उसे दुआ व प्रार्थना से बदला जा सकता है। अतः हमें उससे प्रार्थना करते रहना चाहिए।

वरिष्ठ नेता ने अपने एक अन्य पाठ में एक हदीस बयान की जिसमें कहा गया है कि धन्य है वह जो न्याय से ख़र्च करता है। न्याय का अर्थ है संतुलन तो इस हदीस का मतलब यह है कि जो जीवन के विभिन्न मामलों में ख़र्च करने में संतुलन से काम लेता है वह धन्य है। न तो वह अपव्यय करता है और न ही कंजूसी से कमा लेता है। अतः मनुष्य को अपने जीवन के हर मामले में संतुलन से काम लेना चाहिए। (HN)

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