Aug ०४, २०१९ १६:३६ Asia/Kolkata

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने अपने पाठ में पैग़म्बर की यह हदीस बयान की कि ईमान वाले व्यक्ति को एक बिल से दो बार नहीं डसा जा सकता।

इसका अर्थ यह है कि जब मनुष्य ने अपना हाथ किसी बिल की तरफ़ बढ़ाया और उसे डस लिया गया तो यह उसके लिए पाठ हो जाता है और वह फिर कभी इस बात की अनुमति नहीं देता कि उसके साथ इस प्रकार की घटना हो। यह मोमिन की विशेषता है। अब देखिए कि पाठ सीखने का विषय, चाहे वह व्यक्तिगत मामलों में हो, सार्वजनिक मामलों में हो, राजनैतिक मामलों में हो, सामाजिक मामलों में हो या फिर अंतर्राष्ट्रीय मामलों में हो, इस प्रकार का आदेश और हदीस के पात्र ये सभी मामले हैं। व्यक्तिगत मामलों का उदाहरण यह है कि आपने किसी व्यक्ति पर आर्थिक या किसी अन्य विषय में अकारण भरोसा कर लिया और आपको घाटा हो गया। तो अगली बार आपको उस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। देश के मामलों में भी यही बात है। अगर आपने किसी देश पर भरोसा किया और उसने आपको धोखा दिया तो फिर आप अगली बार उस पर भरोसा नहीं कर सकते। पाठ सीखने का मतलब यह है कि हमें अच्छी तरह सोच-विचार करना चाहिए, अनुभवों से लाभ उठाना चाहिए और मामलों को गहराई से देखना चाहिए।

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम की एक हदीस बयान करते हुए कहते हैं कि अगर कोई तुम्हारे पास प्रेम से आता है तो उसे उसमें पाए जाने वाले दोषों का ताना मत दो। कोई व्यक्ति आपके पास आता है, आपसे मित्रता जताता है, आपसे प्रेम जताता है और आपके प्रति निष्ठा का प्रदर्शन करता है तो उसे स्वयं से दूर न भगाइये और उसमें जो अवगुण हैं उनका उल्लेख करके उसे अपने से दूर न कीजिए। यह एक अत्यंत अहम, बड़ा व सार्वजनिक आदेश है। हमारे पास आने वालों में अगर कोई बुराई भी है तो उसके चलते उसे दूर नहीं किया जा सकता। उसके प्रेम को स्वीकार करना चाहिए, उससे प्रेम के रिश्ते की रक्षा करनी चाहिए। हां उसे बुराई से रोका जा सकता है लेकिन उसके अपने चरण हैं। पहले उसे अवसर देना चाहिए और उसे यह विश्वास दिलाना चाहिए कि आप उसे अपना मानते हैं। यह सामाजिक संबंधों में एक बड़ा अहम नियम है। (HN)

 

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