Aug १८, २०१९ १५:३७ Asia/Kolkata

अमीरुल मोमेनीन हज़रत अली अलैहिस्सलाम से पैग़म्बरे इस्लाम ने कुछ नसीहतें कीं जिनमें पांचवीं नसीहत यह थी कि अपना धन और अपनी जान धर्म के मार्ग में न्योछावर कर दो।

अगर दीन की रक्षा के लिए अपने धन और अपनी जान की क़ुरबानी देनी पड़े तो ऐसा ज़रूर करो। जान देनी पड़े तो पीछे न हटो जान दे दो। धर्म की रक्षा के दो अर्थ हो सकते हैं। एक तो यह कि आप अपने धर्म और अपने कर्म की रक्षा करें। अब अगर आपको अपने ईमान और अपने कर्म की रक्षा के लिए अपना पैसा ख़र्च करना पड़े या जान की क़ुरबानी देनी पड़ जाए तो आप यह क़ुरबानी दे दीजिए। अलबत्ता तक़य्या और मजबूरी की हालत एक अलग बहस है। तक़य्या का अर्थ यह है कि हालात अनुकूल न होने की स्थिति में इंसान अपने मिशन को एलान के साथ नहीं बल्कि ख़ामोशी से आगे बढ़ाए और इसे ज़ाहिर न होने दे।

धर्म की रक्षा का दूसरा अर्थ भी है और अधिक संभावना यही है कि इस वसीयत में यही दूसरा अर्थ मद्देनज़र रखा गया है। वैसे हो सकता है कि दोनों ही अर्थों को दृष्टिगत रखकर यह बात कही गई हो। दूसरा अर्थ यह है कि इस्लाम की रक्षा के लिए क़ुरबानी दो। इस्लाम की रक्षा के लिए आप अपना धन ख़र्च कीजिए और अपनी जान की क़ुरबानी देनी पड़े तो यह क़ुरबानी दीजिए। अगर आपने देखा कि आपके धर्म अर्थात इस्लाम पर हमला हो रहा है, उसके ख़िलाफ़ लड़ाई शुरू हो गई है तो आपको चाहिए कि तत्काल मैदान में उतरिए, फ़ौलादी इरादे के साथ डट जाइए। अगर अपने धन की क़ुरबानी देनी पड़े तो दीजिए अगर जान की क़ुरबानी देनी पड़े तो दीजिए।

तो यह एक महान और मूल्यवान वसीयत है पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत अली अलैहिस्सलाम की तरफ़ से। ईश्वर कृपा करे कि हम इस पर अमल करने में कामयाब हों। इसके विपरीत और प्रतिकूल बात यह हो सकती है कि इंसान अपने धर्म को धन और पद हासिल करने का साधन बनाए। यह बहुत बुरी चीज़ होगी क्योंकि होना तो यह चाहिए कि इंसान धर्म के लिए और दीन के लिए अपनी सारी चीज़ें क़ुरबान करे।

अब अगर कोई व्यक्ति धर्म को साधन बनाता है और धर्मावलंबन का दिखावा करता है या धर्म को छोड़ देता है इस लिए कि उसे कुछ धन मिल जाए, कोई अपना ईमान तज देता है कि पैसा कमा ले, अपना धार्मिक कर्तव्य छोड़ देता है कि कुछ कमाई हो जाए तो यह वाक़ई कितनी बुरी बात है। आप ख़ुद सोचिए कि यह कितनी बुरी और घटिया बात है। इसको पैग़म्बरे इस्लाम सल्लल्लाहो अलैहे व आलेही व सल्लम के बयान से समझा जा सकता है।

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने पैग़म्बरे इस्लाम की वसीयत की रोशनी में जिन बिंदुओं को रेखांकित किया है वह इंसान को यह सीख देते हैं कि जीवन में प्राथमिकताओं पर ध्यान देना और उन्हें समझना बहुत ज़रूरी है। इंसान को यह पता होना चाहिए कि उसका ध्येय क्या है और उसका वह महान लक्ष्य क्या है जिसे किसी भी क़ीमत पर उसे गंवाना नहीं है। बहुत से लोग यही ग़लती कर बैठते हैं। जीवन में वे प्राथमिकताओं को समझ नहीं पाते और इसका नतीजा यह होता है कि वे महत्वहीन चीज़ों पर जिन्हें वे ग़लती से बहुत महत्वपूर्ण समझ बैठते हैं अपनी बड़ी ही मूल्यवान चीज़ क़ुरबान कर देते हैं। इस प्रकार के लोगों के बारे में कहा गया है कि वह पूरी तरह घाटे में हैं।  

 

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