Aug २८, २०१९ १५:०६ Asia/Kolkata

एक बेहतर जीवन के लिए आवश्यक बातों में से एक स्वस्थ सामाजिक संबंध रखना है।

इंसान एक ऐसा जीव है जो समाज में जन्म लेता है, समाज में ही पलता-बढ़ता है और समाज में ही जीवन बिताता है। इंसान अपने जन्म के समय से ही यह सीखता है कि उसे सामाजिक रूप से जीवन बिताना चाहिए ताकि उसकी ज़रूरतें बेहतर ढंग से पूरी होती रहीं और उसे शारीरिक व मानसिक सुरक्षा हासिल रहे। समाज, इंसान से अलग नहीं होता और कोई भी मनुष्य अपने आपको समाज से अलग नहीं समझ सकता।

हम अपने जीवन का अधिकतर समय सामाजिक संबंधों से विशेष करते हैं। अपने परिवार के सदस्यों, दोस्तों, शिक्षकों व सहयोगियों समेत दूसरों से बात व संपर्क करना हमारे दिनचर्या के कामों में शामिल है। जो दूसरों से संपर्क स्थापित करने में सक्षम नहीं होता वह न केवल यह कि अपने जीवन से फ़ायदा नहीं उठा पाता बल्कि दूसरे भी उससे दूर भागते हैं और वह अकेला पड़ जाता है। अच्छे जीवन व शांतिपूर्ण क्षणों के लिए हमें दूसरों से संपर्क की कला सीखनी चाहिए।

मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि दूसरों से संपर्क एक आत्मिक व मानसिक ज़रूरत है और पारिवारिक वातावरण में इसका महत्व बहुत ज़्यादा है। परिवार, वह पहला समूह है जिसमें मनुष्य आंख खोलता है और पलता बढ़ता है। परिवार का प्रभाव, समाज से कहीं अधिक होता है और वह किसी के भी प्रशिक्षण और उसके व्यक्तित्व के निर्माण में अत्यंत अहम भूमिका निभाता है। एक अच्छे व गतिशील परिवार के लिए उसके सदस्यों के बीच प्रभावी संपर्क ज़रूरी है और यह जीवन की अहम दक्षताओं में से एक है।

परिवार के सदस्यों का व्यक्तित्व, आत्म विश्वास, सीखने की क्षमता, चयन की शक्ति और तर्कसंगत फ़ैसला पूरी तरह से उनके बीच अच्छे, तर्कपूर्ण और अपनाइयत वाले संबंध से जुड़ा हुआ होता है। घनिष्ठ संबंध एक अच्छे व सफल परिवार का आधार है और एक दूसरे को समझना व सम्मान करना और इसी तरह निष्ठा जैसे कारक, पारिवारिक व्यवस्था को स्थापित रखते हैं।

जब कोई व्यक्ति बचपन से ही अपने माता-पिता के बीच स्वस्थ व घनिष्ठ संबंध देखता है तो वह स्वयं भी वही बात सीखता है। बच्चों को अच्छे व्यवहार सिखाने में माता-पिता की भूमिका अत्यंत अहम है। विशेषज्ञों व मनोवैज्ञानिकों के विचार में परिवार में घनिष्ठ संबंध, एक बेहतर जीवन बनाने के लिए बहुत प्रभावी हैं क्योंकि इससे लोगों का आत्मिक व मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है। उनका कहना है कि ऐसे परिवार, जिनके सदस्यों को अपनी भावनाएं और विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता हासिल होती है, वे अधिक सफल होते हैं जबकि जिन परिवारों में अपने सदस्यों की भावनाओं पर ध्यान नहीं दिया जाता वे अधिक सफल नहीं रहते।

खेद की बात है कि हालिया बरसों में इस प्रकार के परिवार दिखाए देते हैं जिनके सदस्यों के बीच सही व सैद्धांतिक संपर्क दिखाई नहीं देता। वे एक दूसरे के साथ ख़ुश नहीं रह सकते, एक दूसरे से परामर्श नहीं कर सकते, मिल कर फ़ैसले नहीं कर सकते यहां तक कि एक दूसरे से अपनाइयत से बात तक नहीं कर सकते। बेहतर जीवन बिताने के लिए हमें दूसरों विशेष कर परिवार के लोगों के साथ अच्छा व सफल संपर्क स्थापित करने की क्षमता व दक्षता हासिल करने की ज़रूरत है। समरसता व संवेदना, संपर्क की उन ध्यान योग्य क्षमताओं में से है जो हमें एक सुखी परिवार बनाने के निकट कर सकती हैं। जीवन की आवश्यक व अहम दक्षताओं को हासिल करना बहुत कठिन नहीं है इसके लिए इतना ही काफ़ी है कि हम इसका इरादा करें और फिर इसके लिए अभ्यास करें।

फ़ारसी भाषा में यह वाक्य बहुत मशहूर है कि "हमदिली अज़ हमज़बानी बेहतर अस्त" यानी समरसता, समभाषा से बेहतर है। समरसता और संवेदना, अन्य लोगों से मेल जोल की आवश्यक बातों में से हैं। ये दोनों चीज़ें घमंडी और स्वार्थी लोगों के लिए कठिन और विचित्र हैं लेकिन जिन लोगों की भावनाएं मज़बूत होती हैं, वे प्रायः संवेदना से अवगत होते हैं और दूसरों की कठिनाइयों में उनके साथ संवेदना प्रकट करते हैं। दूसरों के साथ समरसता, संवेदना की तुलना में ज़रा अधिक कठिन है क्योंकि समरसता एक कला और एक दक्षता है जिसे सीखना चाहिए।

एक सफल परिवार के लिए और पारिवारिक संबंधों को मज़बूत बनाने के लिए, चाहे वे पति-पत्नी के बीच हों, माता-पिता व संतान के बीच हों और चाहे भाई-बहन के बीच हों, समरसता व संवेदना की बड़ी अहम भूमिका है। जब हम एक दूसरे के दुखों व समस्याओं को महत्व देंगे और अपने भीतर इस भावना को मज़बूत बनाएंगे तो निश्चित रूप से रूप से हम बेहतर जीवन बिताने की दिशा में आगे बढ़ेंगे और फिर हमें अपने जीवन में अभूतपूर्व व असाधारण क्षणों की प्रतीक्षा में रहना चाहिए।

जब हमारे सामने समस्याएं आती हैं तो हम चाहते हैं कि दूसरे हमारे साथ संवेदना व समरसता जताएं और जब दूसरों विशेष कर हमारे मित्रों व निकटवर्तियों को कोई कठिनाई होती है तो हम उनके साथ समरसता दर्शाना चाहते हैं और अपने चेहरे व आंखों के माध्यम से उन्हें यह समरसता दिखाते हैं। मान लीजिए कि आपकी बहन का अपने पति से कुछ विवाद हो गया है और वह अपना घर छोड़ कर मैके आ गई है। आप उसके दुख को कम करने के लिए पहले उसे गले लगाते हैं, फिर उससे बात करते हैं और फिर उसे कुछ परामर्श देते हैं। शायद आप उससे कहें कि इस प्रकार का मतभेद हर पति-पत्नी में होता है और बहुत जल्दी समाप्त हो जाता है। अच्छे दिन तुम्हारे और तुम्हारे पति की प्रतीक्षा में हैं। इस प्रकार की बातें करके आप उसका हौसला बढ़ाते हैं।

इस चरण तक आपने उससे संवेदना दर्शाई है और आपका लक्ष्य उसके दुख को कम करना था। लेकिन इस चरण के बाद आपको उसके साथ समरसता दिखानी होगी क्योंकि उसे किसी ऐसे की ज़रूरत है जो उसकी बातों को सुने और समझे। समरसता दर्शाने में हम कोशिश करते हैं कि अपने आपको उस व्यक्ति के स्थान पर रखें और उसी आयाम से उस मामले को देखें जिस आयाम से वह उस समस्या को देख रहा है।

समरसता सीखने के लिए सबसे पहला क़दम, बात को अच्छी तरह सुनना है। इसका अर्थ यह है कि आप सामने वाले की बात न काटिए और उसे बोलने दीजिए। आप अपना सिर हिला कर उसे यह समझा सकते हैं कि आप उसकी बातों को ध्यान से सुन रहे हैं। समरसता में हमें इस बात का अधिकार नहीं होता कि दूसरों के बारे में फ़ैसला करें लेकिन इसके बजाए हम सामने वाले की बात दोहरा कर उसे यह समझा सकते हैं कि हमने उसकी बात ध्यान से सुनी है और उसे पूरी तरह समझ गए हैं।

उदाहरण स्वरूप आपकी अपनी बहन कहती है कि मेरा पति मेरे हर काम में कीड़े निकालता है और कभी कभी मैं उसकी बातें सहन नहीं कर पाती हूं। समरसता पूर्ण व्यवहार की शैली से लाभ उठा कर आप उससे कह सकते हैं कि लगता है तुम अपने पति की टोका-टाकी और उसके व्यंग्यों से बहुत तंग आ गई हो, क्या ऐसा नहीं है? समरसतापूर्ण व्यवहार में आप कभी इस बात के लिए विवश नहीं होता कि सामने वाले के पक्ष में ही बात करें बल्कि केवल उसकी बातें दोहरा कर भी आप उसकी भावनाओं की पुष्टि कर सकते हैं। इसी के साथ यह भी आवश्यक नहीं है कि आप उसकी बातों को सुन कर फ़ैसला करें या कोई निष्कर्ष निकालें, बल्कि इतना ही काफ़ी है कि आप उसकी बातें सुनें और उसकी बातों के साथ ही आगे बढ़ते रहें।

समरसता का मतलब यह होता है कि आप यह समझिए कि सामने वाले को किस चीज़ से तकलीफ़ है, कौन सी बात उसे अप्रसन्न करती है और किस तरह आप स्वयं को उसके स्थान पर रख सकते हैं और उसकी भावना को समझ सकते हैं? समरसता, दूसरों के साथ आपके रिश्तों को मज़बूत बनाती है, आपको इस बात का अवसर देती है कि आप दूसरों को समझें और दूसरे भी आपको समझें। समरसता का मतलब है दूसरों की भावनाओं को समझना और दुनिया को उनकी दृष्टि से देखना।

 

मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में किसी भी व्यक्ति में समरसता की क्षमता होना इस बात का चिन्ह है कि वह अपनी क्षमताओं को पहचानता है, मानसिक रूप से स्वस्थ है और स्वयं अपने और अपने मित्र के महत्व को समझता है। इसके विपरीत समरसता के अभाव का मतलब यह है कि व्यक्ति में परिपक्वता की कमी है। समरसता का अभाव वास्तव में एक प्रकार की अक्षमता है। समरसता किसी भी काम में अतिशयोक्ति या कमी और इसी तरह विचारों में हठधर्मी से रोकती है और मनुष्य के जीवन में लचक पैदा करती है। समरसता व संवेदना, आज के रिश्तों में खो चुकी कड़ी है जो पारिवारिक संपर्कों के जारी रहने और उन्हें मज़बूत बनाने में अहम भूमिका निभाती है।

अगर हम संवेदना और समरसता के माध्यम से किसी व्यक्ति की समस्या का समाधान कर सकते हैं और हमें अवश्य यह काम करना चाहिए लेकिन उसकी एक शर्त है और वह यह कि वह स्वयं हमसे मदद चाहे। हमें केवल उसके सामने यह दिखाना है कि हम पूरी इच्छा के साथ उसकी मदद करने के लिए तैयार है और अगर हमसे कुछ हो सकता है तो उसके लिए अवश्य करेंगे। इसके बाद अगर उसकी इच्छा हो तो हमें अपना समाधान पेश करना चाहिए। (HN)

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