Oct २०, २०१९ १६:५१ Asia/Kolkata

पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के हवाले से जो हदीस बयान की है उसी के अगले भाग में वह कहते हैं कि हज़रत ईसा अपने साथियों से कहते थे कि कभी भी अज्ञानियों के बीच में तर्कपूर्ण और विवेकपूर्ण बात न करो क्योंकि यह उस विवेकपूर्ण बात के साथ अन्याय है।

पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम के हवाले से जो हदीस बयान की है उसी के अगले भाग में वह कहते हैं कि हज़रत ईसा अपने साथियों से कहते थे कि कभी भी अज्ञानियों के बीच में तर्कपूर्ण और विवेकपूर्ण बात न करो क्योंकि यह उस विवेकपूर्ण बात के साथ अन्याय है। कभी एसा भी होता है। कभी यह होता है कि कोई व्यक्ति ज्ञान प्राप्त करने के लिए लालायित है, कुछ समझना चाहता है, आप उससे एक बात कहते हैं, कोई समझदारी भारी बात या उपदेश पर आधारित बात उससे कहते हैं। यह उस व्यक्ति की भी सेवा है और उस तर्कपूर्ण बात की भी सेवा है। कभी यह होता है कि आपके सामने एसे अज्ञानी लोग होते हैं जो अलग ही प्रकार के हैं अर्थात यह कि वह विवेकपूर्ण बातों को समझने में सक्षम नहीं हैं या समझना ही नहीं चाहते। आप उनसे कुछ भी कहते हैं तो वह आपकी बात को ठुकरा देते हैं। अपशब्द कहने लगते हैं। कभी यह भी होता है। इंसान कोई महत्वपूर्ण बात और विवेकपूर्ण बात एसे  लोगों के बीच कह देता है जो उस बात को सुनने के योग्य नहीं हैं। यदि बार बार वही बात इस प्रकार के लोगों के बीच कही जाए तो उस बात का महत्व भी ख़त्म हो जाएगा और सुनने वाले इस बात को मानेंगे भी नहीं। सुझाव दिया है कि यह काम आप कभी न करें।

इसके साथ ही यह भी है कि जब समझदार लोग बैठे हों तो उनके बीच में समझदारी की बाते और विवेकपूर्ण बातें करने का अवसर हाथ से जान न दो। यदि किसी ने एसा किया तो यह समझदार लोगों पर अत्याचार है। यदि आपने वहां विवेकपूर्ण बातें नहीं कीं तो मानो आपने उन पर अत्याचार किया है। योग्य का मतलब यह है कि वह लोग जो सुनने और समझने की भी क्षमता रखते हैं और सीखने के इच्छुक भी हैं। अगर वह सीख नहीं रह हैं तब भी आपके कहते ही वह पूरे ध्यान से बात सुनने लगते हैं। इस स्थिति में विवेकपूर्ण बात दूर तक फैलती है। यहां पर अगर आपने समझदारी की बात नहीं को तो मानो आपने अत्याचार किया है।

कभी भी अत्याचारी के अत्याचार में हाथ न बटाइए। यदि आपने यह काम किया तो अपनी महानता से हाथ धो बैठेंगे। पैग़म़्बरे इस्लाम के परिजनों से जो शिक्षाएं मिली हैं उनमें एक महत्वपूर्ण शिक्षा यही है। एक बिंदु यह है कि जो मार्गदर्शक बात हो वह तो सत्य और सही बात होती है इस रास्ते पर चलना ज़रूरी होता है। कोई चीज़ एसी भी होती है जिसके बारे में पता है कि वह ग़लत है। उससे परहेज़ करना ज़रूरी होता है। जब कहीं यह स्थिति हो कि पूरी तरह बात स्पष्ट न हो कि वह सही है या ग़लत तो वहां पर कभी भी निश्चय के साथ कोई राय न दीजिए। ईश्वर पर छोड़ दीजिए। जब वह अवसर  आएगा कि कोई उस बात पर अमल करे और उसे प्रयोग करे तो ईश्वर मदद करेगा।

 

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