Oct २१, २०१९ १५:२५ Asia/Kolkata

ज़िन्दगी एक सुन्दर समुद्र की भांति है जिसकी लहरें उपर- नीचे होती रहती हैं और कभी शांत रहती हैं।

ठीक उसी तरह इंसान के जीवन में उतार- चढ़ाव आते- रहते हैं और हमेशा न कठिनाई रहती है और न हमेशा अच्छे और खुशी के दिन रहते हैं। दूसरे शब्दों में सर्वसमर्थ व महान ईश्वर ने हमारे जीवन की किताब को उतार- चढ़ाव से भर दिया है ताकि हम यह समझ जायें कि समस्त शक्ति का मूल स्रोत महान ईश्वर है। महान ईश्वर हमसे यह चाहता है कि हम अच्छे बनें चाहे ज़िन्दगी में हो या चाहे बंदगी में। उसने कहा है कि हे इंसान तू प्रयास कर और मुझ पर भरोसा कर तो उस वक्त मैं तेरी सहायता करूंगा। तू मुझसे अच्छी व बेहतरीन चीज़ मांग और अच्छा होने के लिए प्रयास व अभ्यास कर, मैं भी तूझे अच्छी से अच्छी चीज़ दूंगा।

अच्छी ज़िन्दगी गुज़ारने के लिए जीवन की कलाओं का सीखना, अध्यात्म और नैतिकता की मज़बूती इस बात का कारण बनती है कि इंसान की ओर ईश्वरीय प्रकाश के द्वार खुल जाते हैं और इंसान की ज़िन्दगी नया रूप धारण करती है।

इंसान की ज़िन्दगी जिन चीज़ों से बेहतर बनती है उनमें से एक अच्छा स्वभाव है। अच्छा स्वभाव न केवल दूसरे लोगों के प्रेम का कारण बनता है बल्कि जिस व्यक्ति का स्वभाव अच्छा होता है वह महान ईश्वर की असीम कृपा का पात्र भी बनता है। अच्छे स्वभाव के विभिन्न स्वरूप हैं। उनमें से एक दूसरों के साथ नर्मी और धैर्य से पेश आना है। लोगों के साथ नर्मी से पेश आने के बारे में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं” जो अपने कार्यों में नर्मी का प्रदर्शन करता है वह दूसरों से जो चाहता है उस तक पहुंच जायेगा।“

धार्मिक हस्तियों का मानना है कि महान ईश्वर की बंदगी को दिखाने और सिद्ध करने के लिए ज़रूरी है कि इंसान ईश्वर के बंदों से प्रेम करे और लोगों की समस्याओं का समाधान करे। इंसान से प्रेम के लिए यह भी ज़रूरी है कि उनके साथ नर्मी से व्यवहार किया जाये। पैग़म्बरे इस्लाम फ़रमाते हैं" ईश्वर ने मुझे लोगों के साथ नर्मी से व्यवहार करने का आदेश दिया है जिस तरह से उसने मुझे अनिवार्य दायित्वों के अंजाम का आदेश दिया है।"

यह आदेश इतना महत्वपूर्ण था कि हज़रत जिब्राईल पैग़म्बरे इस्लाम की सेवा में पहुंचे और उन्होंने कहा कि हे मोहम्मद ईश्वर तुम्हें सलाम कहता है और तुम्हारे लिए उसका संदेश यह है कि उसकी सृष्टि के साथ नर्म व्यवहार करो।"

लोगों से मुदारा करने का अर्थ उनके साथ अच्छा और नर्मी से व्यवहार करना है और उनके साथ हिंसात्मक व्यवहार से परहेज़ करना है। इंसान की प्रवृत्ति में यह मूल्यवान विशेषता मौजूद है कि वह दूसरों के साथ नर्मी का व्यवहार और उसे मज़बूत कर सकता है ताकि उसके अस्तित्व में यह विशेषता मज़बूत हो जाये।

पैग़म्बरे इस्लाम के पर पौत्र इमाम मोहम्मद बाक़िर अलैहिस्सलाम दूसरों से नर्मी से पेश आने को महान ईश्वर की विशेषता बयान करते और फरमाते हैं" ईश्वर विनम्र है और वह नम्रता को दोस्त रखता है और विनम्र स्वभाव के व्यक्ति को जो प्रतिदान देता है वह कड़ाई से पेश आने वाले इंसान को नहीं देता है।"

हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने भी दूसरों के साथ नर्मी से पेश आने को ईमान के बाद बुद्धि के लिए सबसे ज़रूरी चीज़ बताया है और उसे बुद्धि से काम लेने का परिणाम बताया है। यह अच्छी विशेषता सामाजिक जीवन विशेषकर परिवार में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रखती है।

इंसान अपने जीवन में दूसरों से बहुत सी विशेषताओं में समान होते हैं इसके बावजूद वे कुछ विशेषताओं में एक दूसरे से भिन्न होते हैं। जैसे हर इंसान के सोचने और व्यवहार का अलग- अलग अंदाज़ होता है। लोगों के साथ संपर्क में बहुत से मतभेद भी होते हैं या दूसरे ऐसा व्यवहार करते हैं जो शायद कुछ लोगों को पसंद न आये। अब अगर इस प्रकार के अवसरों पर धैर्य और नर्मी का बर्ताव न किया जाये तो बहुत सारी समस्याएं अस्तित्व में आयेंगी और लोगों के मध्य किसी प्रकार का नैतिक व वैचारिक समन्वय स्थापित नहीं होगा। इसी प्रकार अगर इंसान लोगों के साथ अपने संबंधों का आधार नर्मी, धैर्य और संयम पर न रखे तो बहुत सी समस्याएं पेश आयेंगी और दूसरों के साथ विवाद भी हो सकता है। अलबत्ता यह भी होता है कि अगर अधिक नर्मी और संयंम का परिचय दिया जाये तो लोग नर्मी से पेश आने वाले व्यक्ति को कमज़ोर और डरपोक कह सकते हैं और सामने वाला पक्ष अधिक दुस्साहसी व अशिष्ट हो सकता है। इस प्रकार के अवसर पर दूसरों के साथ नर्मी से पेश आने की सिफारिश नहीं की गयी है।

पारिवारिक जीवन में नर्मी से पेश आने का बहुत अधिक महत्व है। परिवार समाज की महत्वपूर्ण इकाई है और अगर परिवार से शांति समाप्त हो जाये तो इसका यह अर्थ है कि समाज से भी शांति समाप्त हो जायेगी। परिवारिक जीवन में यह बहुत देखने को मिलता है कि पत्नी या बच्चों की जीवन शैली और उनका व्यवहार इंसान की इच्छा के अनुरूप नहीं होता है और पति- पत्नी और बच्चों की सोच व जीवन शैली में काफी मतभेद होते हैं। इस प्रकार की परिस्थिति में अगर जिन्दगी की बुनियाद नर्मी से पेश आने पर न रखी जाये और एक दूसरे की गलतियों की अनदेखी न की जाये तो क्या होगा? घर के वातावरण में लड़ाई, झगड़ा, अतिवाद और हिंसा का बोलबाला हो जायेगा जबकि नम्र व्यवहार से घर में शांति का वातावरण होगा।

पारिवारिक जीवन में नर्मी से पेश आने का अर्थ यह है कि पत्नी, भाई, बहन, माता, पिता और बेटे के अनुचित व्यवहार की अनदेखी कर दी जाये। यानी हम इन लोगों के अनुचित व्यवहारों की इस प्रकार अनदेखी कर दें कि मानो हमने देखा ही नहीं या सुना ही नहीं और सामने वाले की क्रोध की हालत में हमें नर्मी और धैर्य का प्रदर्शन करना चाहिये। यानी क्रोध के कारण जो हम पर बोझ लादा जा रहा है उसे हमें सहन व वहन करना चाहिये और हम इस प्रकार का व्यवहार करें कि हमारे व्यवहार से यह स्पष्ट ही न हो कि हमें बुरा लगा है। अतिवाद या अपमान पर कभी- कभी हमें चुप रहना चाहिये ताकि वातावरण शांत हो सके या नर्मी से उसके साथ व्यवहार करें और हमें चाहिये कि हम अपने व्यवहार से सामने वाले पक्ष को शांति व सुरक्षा का आभास कराए यहां तक कि अगर सामने वाला पक्ष क्रोधित व द्वेष में डूबा हो और आपको क्रोधित करना चाहता हो।

इस बीच एक महत्वपूर्ण बिन्दु यह है कि एक दूसरे की भिन्नता को हमें स्वीकार करना चाहिये और लोगों की विशेषताओं को ध्यान में रखते हुए हमें उनसे अपेक्षा रखनी चाहिये।

लोगों से नर्मी से पेश आना कोई आसान कार्य नहीं है उसके लिए काफी अभ्यास करने की ज़रूरत है। ईश्वरीय दूत और समस्त पैग़म्बर लोगों के साथ अच्छा और विनम्र व्यवहार के अनुपम आदर्श हैं। ईश्वरीय दूतों ने नर्म व मृदु व्यवहार करके बहुत से लोगों के दिलों को अपनी ओर आकृष्ट कर लिया और उनका पथप्रदर्शन ईश्वरीय मार्ग की ओर कर दिया। वे जानते थे कि लोगों के साथ नर्म व्यवहार करने की बहुत सी बरकरतें हैं और इसमें उद्दंडता का उपचार है। उद्दंडता अहंकार व घमंड की हालत है जो इंसान को उद्दंडी बनाती है और उद्दंडी व घमंडी इंसान से नर्मी से पेश आने का बहुत अच्छा परिणाम होता है। कभी एक नर्म वाणी उद्दंड के आधार को ही गिरा देती है और उद्दंडी इंसान का भलाई की ओर मार्गदर्शन करती है। ईश्वरीय दूत और पैग़म्बर लोगों के साथ नर्म व्यवहार और सहिष्णुता का परिचय देकर उद्दंडी का दिल नर्म कर देते थे और उनके दिलों में प्रवेश करके उनका मार्गदर्शन महान ईश्वर की ओर करते थे।

समाजशास्त्री भी लोगों के साथ नर्म व्यवहार करने को न केवल परिवार बल्कि समाज की सुरक्षा के लिए भी बहुत ज़रूरी समझते हैं। चूंकि हिंसा और अतिवाद से व्यवहार करने में द्वेष जैसी आग भड़कती है इसलिए नर्म व्यवहार पानी की भांति है जो इस आग पर डाला जाता है और इसे बुझा देता है। इसी प्रकार नर्म व्यवहार लोगों के मध्य दोस्ती होने का कारण बनता है और उसके बहुत अधिक लाभ हैं। इस्लामी रवायतों में आया है कि नर्म व्यवहार बहुत से कमियों के छिपे रहने का कारण बनता है। इसका यह अर्थ है कि जब इंसान का किसी से लड़ाई या झगड़ा नहीं होता है तो दूसरा इंसान भी उस इंसान की कमियों को खोलने का प्रयास नहीं करता है। इसका परिणाम यह होता है कि इंसान की कमियां छिपी रहती हैं किन्तु जो इंसान लोगों से लड़ाई -झगड़ा करता है उसके दुश्मन भी उसकी कमियों को सार्वजनिक करके उसे अपमानित करने का प्रयास करते हैं।

रावी कहता है कि एक दिन इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ख़जूर के बाग में काम करने में व्यस्त थे। इस बीच मैंने देखा कि उनके दास ने खजूर का एक गुच्छा तोड़कर उसे दीवार के बाहर फेंक दिया। मैंने उस दास को पकड़ लिया और उसे इमाम के पास ले गया और इमाम से सारी बात बतायी। उसके बाद इमाम मूसा काज़िम अलैहिस्सलाम ने दास की ओर रुख किया और नम्र स्वभाव में फरमाया क्या तू भूखा है? दास ने कहा नहीं मेरे स्वामी। फिर इमाम ने पूछा क्या तू निरवस्त्र है? इस पर दास ने कहा कि नहीं मेरे स्वामी! तो इमाम ने कहा कि फिर तूने खजूर का गुच्छा क्यों तोड़ा? तो दास ने कहा कि मेरा दिल चाहा। इसके बाद इमाम ने फरमाया वह ख़जूर का गुच्छा भी तेरा है और मैं ईश्वर की राह में तुझे आज़ाद करता हूं।

 

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