Dec ०२, २०१९ १५:३६ Asia/Kolkata

वचनबद्धता एक एसी चीज़ है जिसे दुनिया का हर इंसान पसंद करता है।

अपने वचनों पर कटिबद्ध रहने को एक सदगुण समझा जाता है। इसके मुकाबले में वचनों के प्रति कटिबद्धता न रहना है और इसे नैतिक अवगुण और एक प्रकार की वादा खिलाफी समझा जाता है।  

अगर हम यह चाहते हैं कि हमारा सामाजिक जीवन अच्छा हो तो हमें ऐसे इंसानों की ज़रूरत है जो हमारे लिए मूल्यवान हों, हमारा सम्मान करते हों और हमसे प्रेम करते हों और कठिनाइयों में हमारी सहायता करें, हमसे निष्छल प्रेम करें और अपनी उपस्थिति से दुःखों को खुशियों में बदल दें। इस प्रकार के लोग महान ईश्वर की बहुत बड़ी नेअमत होते हैं। इस प्रकार के लोग हमारे परिवार के सदस्य हो सकते हैं और दोस्त भी हो सकते हैं। एसे लोगों की हमें क़द्र करनी चाहिये और अपना शुभचिंतक बनाये रखने के लिए प्रयास करना चाहिये। दोस्ती और सामाजिक संबंधों की सुरक्षा के लिए हमें अपने वचनों के प्रति कटिबद्ध रहना चाहिये। हमें घमंड व अहं को स्वयं से दूर करना चाहिये। क्योंकि घमंड वह अनैतिक बीमारी है जिसे कोई भी पसंद नहीं करता है और दोस्ती, विन्रमता और अच्छा स्वभाव वह चीज़ है जिसे सब पसंद करते हैं। जिन चीज़ों को समाज का हर व्यक्ति पसंद करता है उनमें से एक वचनों के प्रति कटिबद्धता है। क्योंकि वचनों के प्रति कटिबद्ध न रहने के कारण बहुत सी दोस्तियां और सामाजिक संबंध ख़त्म हो जाते हैं।

वचनबद्धता एक प्रकार का नैतिक, सामाजिक और धार्मिक समझौता है। यह समझौता कभी दो व्यक्तियों के बीच होता है, कभी दो या उससे अधिक गुटों व व्यक्तियों के बीच होता है। इसी तरह यह वचनबद्धता कभी एक राष्ट्र व देश के लोगों और उस राष्ट्र व देश के नेता के मध्य होती है। ईश्वरीय धर्म इस्लाम वचनबद्धता पर बहुत बल देता है। इस प्रकार से कि पवित्र कुरआन सूरये इस्रा की 34वीं आयत में कहता है" वादों और वचनों के प्रति कटिबद्ध रहो क्योंकि वचनों के संबंध में सवाल किया जायेगा।

 

पवित्र कुरआन के प्रसिद्ध व्याख्याकार अल्लामा तबातबाई का मानना है कि क़ुरआन की जिन आयतों में वचनबद्धता की प्रशंसा की गयी है और वचनों के प्रति वचनबद्ध न रहने की निंदा की गयी है उनमें वह वचनबद्धता भी शामिल है जो दो लोगों, दो या उससे अधिक क़बीलों या राष्ट्रों व देशों के मध्य होती है। इस्लाम के अनुसार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो वचनबद्धता है वह व्यक्तिगत प्रतिबद्धता से अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि सामाजिक न्याय महत्वपूर्ण है और उसका उल्टा सार्वजनिक विपत्ति है।

पवित्र कुरआन ने वचनबद्धता पर बल दिया है और इस चीज़ का संबंध इंसान की सष्टि व प्रवृत्ति से है। दूसरे शब्दों में इंसान बचपने से ही वचनों पर अमल करने या न करने के अर्थ को अच्छी तरह समझता है। बच्चा भी वादे पर अमल करने को अच्छा और उस पर अमल न करने को बुरा समझता है। जो माता- पिता अपने बच्चों से किये गये वादों को पूरा करते हैं उनके बच्चे उन्हें वादे को वफा करने वाले समझते हैं और जो माता- पिता अपने बच्चों से किये गये वादों पर अमल नहीं करते हैं उनके बच्चे उन्हें झूठा समझते और उनकी निंदा करते हैं। दूसरे शब्दों में इंसान इस आभास व एहसास के साथ बड़ा होता है और जीवन के समस्त चरणों में वह इसे महत्वपूर्ण समझता है। जीवन को अच्छा बनाने के लिए हमें सामाजिक वचनों व समझौतों के प्रति कटिबद्ध रहना चाहिये। पवित्र कुरआन सूरे मरियम में हज़रत इस्माईल के नाम का वर्णन करते हुए कहता है" किताब (कुरआन) में इस्माइल को याद करो कि वह अपने वादे में सच्चे थे और ईश्वर के पैग़म्बर व संदेशक थे।"

इस आयत की व्याख्या में इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम के हवाले से आया है" हज़रत इस्माईल ने एक व्यक्ति से एक स्थान पर मिलने का वादा किया था परंतु वह व्यक्ति समय पर वादा स्थल पर न पहुंच सका। हज़रत इस्माईल बहुत देर तक उसकी प्रतिक्षा में बैठे रहे। इस प्रकार से उनके अनुपस्थित रहने का समय उनके अनुयाइयों की चिंता का कारण बना। अंततः एक व्यक्त का संयोग से वहां से गुज़र हुआ तो उसने हज़रत इस्माईल को वहां देखा और कहा हे ईश्वरीय दूत! आप के विलंब के कारण हम सब चिंतित थे। इस पर हज़रत इस्माईल ने कहा कि मैंने अमुक व्यक्ति से यहां मिलने का वादा किया है परंतु वह नहीं आया और जब तक वह नहीं आयेगा तब तक मैं यहां से नहीं जाऊंगा। उस व्यक्ति ने जाकर लोगों से सारी बात बताई और लोग उस व्यक्ति के पास गये और उसे हज़रत इस्माईल के पास ले गये। उस व्यक्ति ने शर्मिन्दगी से कहा हे ईश्वरीय दूत! मैं आपसे मुलाकात भूल गया था। आपने फरमाया अगर तुम न आते तो मैं इसी जगह रहता।

वादे को वफा करना एक अच्छी आदत व बात है और इसकी गणना सदगुणों और भले लोगों की विशेषताओं में की गयी है जबकि वादे को पूरा न करना बुराई का कारण बनता है और यह बुरे व्यक्ति की आदतों से है। समस्त ईश्वरीय दूत लोगों को एकेश्वरवाद की उपासना करने और लोगों को एक दूसरे के साथ सुशील व्यवहार का निमंत्रण देते थे। उन सबने भी वादे को पूरा करने पर बहुत बल दिया है। वे लोगों का आह्वान करते थे कि उन्होंने दूसरों के साथ जो वादा किया है या वचन दिया है उसके प्रति कटिबद्ध रहें और उससे भी महत्वपूर्ण यह है कि वे अपने पालनहार के साथ निष्ठापूर्ण बंदगी का समझौता करें। जब इंसान स्वयं को महान ईश्वर का बंदा समझेगा तो उसका आचरण सुन्दर हो जायेगा। जब इंसान महान ईश्वर को सृष्टि, शक्ति और प्रेम का केन्द्र समझेगा और उसकी उपासना में कायेम व डटा रहेगा तो वह बंदगी के परम दायित्व का निर्वाह करेगा। दूसरे शब्दों में बंदगी के समझौते व वचन का पालन करेगा। वह महान ईश्वर की याद से निश्चेत नहीं रहेगा और उसके कारण सबके साथ भलाई व नेकी करेगा इस प्रकार धीरे- धीरे इंसान अपने अस्तित्व के अंदर अच्छा होने का आभास करने लगेगा। तो महान ईश्वर के साथ समझौते के प्रति कटिबद्ध रहना इंसान का अपने वचनों के प्रति प्रतिबद्ध रहने का सुन्दरतम स्वरूप है।   सामाजिक संबंधों में वादों के प्रति कटिबद्ध रहने की उल्लेखनीय भूमिका है। इंसान सामाजिक प्राणी है और सामाजिक जीवन के लिए दूसरों से लेन- देन ज़रूरी है। इस संबंध में एक अन्य बिन्दु पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है और वह यह है कि समाज में दूसरों के साथ लेन- देन का आधार विश्वास और भरोसा होना चाहिये। अगर हम लोगों के सामाजिक जीवन में ध्यान से देंखे और ग़ौर करें तो देखेंगे कि उन लोगों का जीवन शांतिपूर्ण है जिनके देन- देन का आधार भरोसा और विश्वास है। इस्लाम ने इस प्रकार के लेन- देन के लिए बहुत बल दिया है। इस्लाम की ओर से इस प्रकार के लेन- देन पर बल दिये जाने का अर्थ, एक प्रकार से दूसरों के अधिकारों का सम्मान है। वचनों के प्रति कटिबद्ध रहना लोगों के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक संबंधों में मज़बूती का कारण बनता है। अगर इंसान एक आदर्श व श्रेष्ठ समाज देखना चाहता है तो उसे अच्छी चीज़ों पर अमल करना चाहिये विशेषकर इंसान को चाहिये कि वह वचनों व समझौतों के प्रति कटिबद्ध रहे। एक अच्छे समाज के अस्तित्व में आने के लिए नैतिक मूल्यों और वचनों पर कटिबद्ध रहना ज़रूरी है। इसके विपरीत अगर इंसान वचनों पर अमल नहीं करता है तो समाज में विश्वास और भरोसा समाप्त और समाज का आधार कमज़ोर हो जायेगा। हज़रत अली अलैहिस्सलाम फरमाते हैं” उस व्यक्ति की दोस्ती पर भरोसा न करो जो अपने वादों के प्रति वचनबद्ध नहीं रहता है।“

मानवीय जीवन के समस्त चरणों का आधार भरोसा, विश्वास और वचन है। घर से बाहर तक हर जगह लिखित व अनलिखित वचन और प्रतिबद्धता मौजूद होती है और यही वचनबद्धता जीवन को मधुर बनाती है। जो इंसान अपने वचनों के प्रति कटिबद्ध नहीं रहता है वह अपने वादों पर अमल नहीं करता है धीरे- धीरे उसका विश्वास कम हो जाता है और दूसरों की नज़र में उसका मूल्य व महत्व कम हो जाता है। जो इंसान अपने वचनों का पालन नहीं करता है अगर समाज में वह किसी पद पर आसीन हो जाता है तो वचनों के उल्लंघन से समाज को अधिक क्षति पहुंचती है और समाज की बड़ी पूंजी यानी विश्वास और भरोसे को बहुत आघात पहुंचता है। समाज में अन्याय फैलने लगता है।

राष्ट्रों और देशों के ज़िम्मेदारों के लिए वचनों के प्रति कटिबद्ध रहना इतना महत्वपूर्ण है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम निष्ठावान गवर्नर मालिके अश्तर के नाम पत्र में लिखते हैं" हे मालिक! कहीं एसा न हो कि लोगों से कोई समझौता करो और उन्हें वचन दो और जब देखो कि वचन पर अमल करने में फायदा है तो उस वचन पर अमल न करो एसा कभी मत करना।“

एक बार एक बादशाह जाड़े की रात में महल से बाहर निकला। जब वह लौटा तो उसने एक बूढ़े सिपाही को देखा जो बहुत कम गर्म कपड़े के साथ रखवाली कर रहा है। बादशाह ने उससे पूछा क्या तुम्हें ठंडक नहीं लग रही है? बूढ़े सिपाही ने कहा क्यों नहीं, ठंडक लग रही है। हे बादशाह पंरतु गर्म कपड़ा नहीं है। मैं ठंडक सहन करने पर बाध्य हूं। इस पर बादशाह ने कहा मैं अभी महल के अंदर जाता हूं और मैं आदेश देता हूं कि मेरा कोई गर्म कपड़ा तुम्हारे लिए ले आयें। बूढ़ा सिपाही बड़ा खुश हुआ और उसने बादशाह का आभार व्यक्त किया किन्तु बादशाह जैसे ही महल के अंदर गया वह अपना वादा भूल गया। अगले दिन सुबह उस बूढ़े सिपाही का शव महल के किनारे मिला। उसके शव के किनारे सही से पढ़ा न जाने वाला एक पत्र मिला जिसमें लिखा था हे मेरे बादशाह मैं इन्हीं थोड़े से वस्त्रों के साथ ठंडक का मुकाबला करता था परंतु गर्म कपड़े का जो वादा आपने मुझे दिया था उसने मेरी हिम्मत तोड़ दी और मैं ठंडक का मुकाबला न कर सका।

 

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