Aug १५, २०२० १७:५१ Asia/Kolkata

ईरान का एक अन्य प्रसिद्ध प्रान्त सीस्तान व बलोचिस्तान है ।

इस प्रान्त का केन्द्रीय नगर ज़ाहेदान है। सीस्तान व बलोचिस्तान ईरान की प्राचीन गाथाओं का क्षेत्र है और यह ईरान के पूर्वी सीमा पर स्थित है। यहां के लोगों की गाथाएं हज़ारों साल पुरानी कहानियों और लेखों में मिलती हैं। यह प्रान्त दक्षिणी और उत्तरी दो भागों पर आधारित है। सीस्तान इस प्रान्त के उत्तरी भाग को कहते हैं और बलोचिस्तान प्रान्त के दक्षिणी भाग में स्थित है। यहां रहने वाले बलूची और सीस्तानी कहलाते हैं और दोनों की अपनी अपनी स्थानीय भाषा भी है। 

 

चाबहार ईरान का एक रहस्यमय प्रान्त कहा जाता है। इस प्रान्त को एतिहासिक अवशेषों और पर्यटन की दृष्टि से एक विशेष स्थान प्राप्त है ।  चाबहार का क्षेत्रफल 17 हज़ार वर्ग किलोमीटर है और यह ईरान के दक्षिण पूर्व में ओमान सागर और हिंद महासागर के तट पर  स्थित है। यह प्रान्त  उत्तर में ईरानशहर और  नीकशहर तथा  दक्षिण में ओमान सागर और पूर्व में पाकिस्तान और पश्चिम में किरमान एवं हुरमुज़गान प्रांत से  मिला हुआ है। इस ज़िले में तीन शहर हैं, चाबहार, कोनारक और नेगोर। चाबहार ज़िले की लगभग 300 किलोमीटर सीमा ओमान सागर  से मिलती है। चाबहार बंदरगाह, समुद्र की सतह से सात मीटर ऊंचाई पर स्थित है। तेहरान से इसकी दूरी 2286, और ज़ाहेदान से 721 किलोमीटर है। चाबहार खाड़ी ओमान सागर के किनारे ईरान की सबसे बड़ी खाड़ी है और हिंद महासागर तक पहुंचने का सबसे निकट जलमार्ग है। चाबहार खाड़ी में कुल मिलाकर तीन बंदरगाहें हैं, जिनके नाम, चाबहार, तीस और कोनारक हैं। चाबहार के कर्क रेखा के निकट स्थित होने और मौसमी हवाओं के कारण वहां का मौसम  संतुलित है और चाबहार में चार मौसम होते हैं। कुछ लोगों का भी मानना है कि चाबहार का नाम इस इलाक़े के मौसम के कारण पड़ा है और इस शहर का असली नाम चार बहार था आज हम आप को इस प्रान्त के चाबहार शहर से परिचित करा रहे हैं। 

 

स्ट्रेटजिक स्थिति के कारण, प्राचीन समय से ही चाबहार विश्ववासियों के ध्यान का केन्द्र रहा है। जिस समय ईरानी शासक चाबहार के महत्व और उसकी संवेदनशील स्थिति से अनजान थे ब्रिटेन, पुर्तगाल और स्पेन  सहित साम्राज्यवादी शक्तियां उस पर निंयत्रण के लिए  एक दूसरे से लड़  रही थीं। तीस टीले पर पुर्तगालियों के क़िले के खंडहर और चाबहार शहर में बंग्ला नामी इमारत  इस वास्तविकता की गवाह है। 

 

ऐतिहासिक प्रमाणों के मुताबिक़,बलूचिस्तान इलाक़े के समुद्री संपर्कों एवं व्यापारिक गतिविधियों के मद्देनज़र, हख़ामनेशी काल से ही चाबहार इलाक़ा व्यापारिक गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण माना जाता था और भारत, चीन और दक्षिण पूर्वी एशिया से व्यापारिक माल इस रास्ते से मध्यपूर्व पहुंचता था। मार्कोपोलो  अपने यात्रा वृतांत में लिखते हैं कि अनेक व्यापारी जो समुद्र के रास्ते यात्रा करते हैं, यहां  रुकते हैं और यहां से ज़मीनी रास्ते से भी काफ़ी माल निर्यात किया जाता है। विशेष भूगोलिक स्थिति और पूर्वी, पश्चिमी, उत्तरी और दक्षिणी अंतरराष्ट्रीय गलियारे में स्थित होने के कारण  चाबहार बहुत महत्व है। इस संदर्भ में ईरानी अधिकारियों के विशेष ध्यान और राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और चाबहार की रणनीतिक स्थिति के दृष्टिगत इस इलाक़े को 1991 में ईरान के स्वतंत्र व्यापारिक एवं औद्योगिक इलाक़े के रूप में विकसित किया गया है।

 

शायद मंगल ग्रह तक जाना सब के लिए संभव न हो और निश्चित रूप से मार्स तक जाना बस सपने में हो सकता है लेकिन हम आप को यह बता दें कि मंगलग्रह के दृश्य आप इसी धरती पर भी देख सकते हैं। इसके लिए बस आप को ईरान के चाबहार क्षेत्र तक की यात्रा करना होगी और चाबहार पहुंचने के बाद पूरब में 30 से 40 किलोमीटर की दूरी तय करते ही आप को " मार्शियन माउंटेंस" या मंगल ग्रह की पहाड़ियां नज़र आने लगेंगी।  यह पहाड़ियां बेहद सुन्दर नज़र आती हैं। यह पहाड़ियां, कचू तट से लेकर  गवादर खाड़ी तक फैली हैं। यह छोटी छोटी पहाड़ियां अनोखे रूप व आकार की हैं और उन पर किसी भी प्रकार का कोई पेड़ पौधा और घास फूस नहीं उगती। कुछ टीले, पांच मीटर तो कुछ सौ मीटर तक ऊंचे हैं और चूंकि इन पहाड़ियों का आकार बहुत अजीब है इस लिए पर्यटक इन पहाड़ियों को मंगल ग्रह की पहाड़ियां कहते हैं। 

 

चाबहार के पूरब में देखने को बहुत कुछ है। मंगह ग्रह की पहाड़ियों के निकट ही एक घाटी है जो काफी हरी भरी और खूबसूरत है जहां से लीपार गांव बड़ी आसानी से नज़र आ जाता है। घाटी के दोनो ओर जो पहाड़ हैं वह एक दूसरे से बेहद निकट हैं। इस घाटी में इधर उधर से रिसने वाला पानी एक नाले में इकट्ठा होकर बहता है और फिर  चौदह किलोमीटर के इलाक़े में एकत्रित हो जाता है जिसके परिणाम स्वरूप " चाबहार की गुलाबी झील " अस्तित्व में आती है। चाबहार की यह गुलाबी झील उन जगहों में से है जिसे देखे बिना कोई भी चाबहार से वापस जाना नहीं चाहता क्योंकि पूरी दुनिया में इस तरह की मात्र चार ही झील मौजूद हैं। इस तालाब का रंग साल के अधिकांश समय गुलाबी रहता है। यह गुलाबी रंग पानी में इसी रंग के पौधों की मौजूदगी और विशेष प्रकार के लवण हैं। यह पदार्थ ओमान खाड़ी  से जुड़ी नदियों के मार्ग से इस जलाशय तक पहुंचते हैं। इस झील के गुलाबी रंग के अलावा बलूत और छुईमुई के पौधों ने इस जलाशय की खूबसूरती और बढ़ा दी है जिसकी मिसाल कहीं और नहीं मिलती। 

 

चाबहार में थोड़ी दूर और आगे जाने पर गवातर खाड़ी नज़र आती है जो ईरान के दक्षिणपूर्वी क्षेत्र के अंतिम छोर पर स्थित है और यह वास्तव में पाकिस्तान व ईरान की सीमा के निकट है। यह बंदरगाह प्राचीन काल से ही ईरान से विभिन्न प्रकार के सामानों के निर्यात के लिए प्रयोग की जाती रही है और व्यापारी इस जलमार्ग का प्रयोग करते हुए भारत से अफ्रीका तक की यात्रा करते थे। गवातर की खाड़ी हिर्रा जंगलों के तट पर स्थित है इस लिए यह संरक्षित क्षेत्र है। इस जगह में घुसते ही किसी नदी के डेल्टा का आभास होता है। डेल्टा के दोनों  तरह जंगह हैं जहां बहुत से पंछियों  ने घोंसले बना रखे हैं जो काफी सुन्दर लगता है। गवातर खाड़ी का मौसम बहुत अच्छा है और इसी लिए साल के हर महीने में इस जगह पर्यटकों का जमघटा लगा रहता है। 

 

चाबहार से केवल पांच किलोमीटर की दूरी पर एक बेहद महत्वपूर्ण गांव स्थित है जिसका नाम " नीस " है। यह गांव इसी नाम की एक बंदरगाह के पास स्थित है। यह गांव लगभग 2500 साल पुराना है। चाबहार खाड़ी की बंदरगाहों में तीस बंदरगाह सबसे पुरानी है। तीस सुन्दर होने के साथ साथ प्राचीन धरोहरों के लिए भी प्रसिद्ध है। तीस पहाड़ों से घिरा हुआ इलाक़ा है और वहां अनेक ऐतिहासिक धरोहरे हैं। वहां छोटी बड़ी ग़ुफ़ाएं हैं जिनसे लोग अभी तक परिचित नहीं हैं। ग़ुफ़ाओं के अन्दर मक़बरे हैं और एक पुराना ऐतिहासिक क़िला है। कुल मिलाकर तीस में चार हज़ार वर्ष पुरानी सभ्यता के चिन्ह हैं। इस्लाम पूर्व और इस्लामी काल के धरोहर भी इस इलाक़े की शोभा बढ़ाते हैं जिनमें तीस की मस्जिद का मुख्य रूप से उल्लेख किया जा सकता है।  कुएं, ग़ुफ़ाएं, मक़बरे, जामा मस्जिद और सबसे स्पष्ट रूप से तीस क़िला कि जो पुर्तगाली क़िले के नाम से प्रसिद्ध है,  इस  क्षेत्र की  महत्वपूर्ण धरोहरे हैं। तीस की पहली मस्जिद, इस्लाम के आंरभिक काल से संबंध रखती है और उसे साढ़े बारह सौ साल पहले बनाया गया था और कहते हैं कि यह ईरान में इस्लाम के प्रवेश के बाद बनने वाली दूसरी मस्जिद है। मस्जिद की निर्माण शैली, भारत और पाकिस्तान में बनायी जाने वाली मस्जिदों की तरह है। इस मस्जिद में एक ही मीनार है और इसी नाम से मशहूर भी है। मस्जिद को बेहद खूबसूरती से बनाया गया है।   तीस गांव को  दूर से देखने पर खजूर के पेड़ों और दूसरे वृक्षों के बीच बने घर, इन्सान और प्रकृति के संगम का एक सुन्दर दृश्य पेश करते हैं।  मस्जिद की   ऊंची मीनार और तीस मस्जिद  बहुत ही आकर्षक दृश्य पेश करते हैं। इस मस्जिद के सुन्दर रंग और आकर्षक डिज़ाईन एक विशेष आध्यात्मिक हालत प्रदान करते हैं। तीस के निवासी  बलोच  हैं, जो मछलियां पकड़ने, सब्ज़ी उगाने और बाग़बानी के कार्यों में व्यस्त हैं। तीस बंदरगाह विशेष रूप से चौथी हिजरी क़मरी शताब्दी से इलाक़े की महत्वपूर्ण बंदरगाह मानी जाती रही है। 

 

अगर आप रोमांच पंसद करते हैं  तो फिर तीस गांव आप के लिए बेहतरीय जगह साबित हो सकता है। क्योंकि इस गांव में एक अनोखा क़ब्रिस्तान भी है जो बहुत ही पुराना है और वहां की क़ब्रों पर लगे पत्थर बहुत बड़े और विचित्र हैं। इसे जिन्नों का क़ब्रिस्तान कहा जाता है। इस क़ब्रिस्तान में इतनी बड़ी बड़ी और अजीब व गरीब आकार की क़ब्रे हैं कि स्थनीय लोग यह मानने पर मजबूर हो गये कि यह क़ब्रें इन्सानों की नहीं हो सकतीं। रोचक बात यह है कि इस क़ब्रिस्तान में क़ब्र, मिट्टी पर नहीं बल्कि पत्थर के टीलों पर खोदी गयी है जिससे यह सवाल पैदा होता है कि हज़ारों साल पहले क्योंकि मिट्टी के बजाए पत्थर पर क़ब्रे खोदी गयीं और किस साधन से खोदी गयीं?  यह क़ब्रिस्तान आज भी है और स्थानीय लोग रात के समय उसके क़रीब से भी गुज़रना पसंद नहीं करते। अलबत्ता कुछ लोगों का यह मानना है कि विभिन्न जानवरों से लाश को बचाने के लिए शायद पत्थर पर कब्र खोदी जाती रही होगी। आज की सैर हमें यही पर खत्म करते हैं अगली भेंट में आप को सीस्तान बलोचिस्तान की राजधानी, ज़ाहेदान की सैर कराएंगे।