नीशापुर नगर- 2
ग़यासुद्दीन अबूल फत्ह बिन इब्राहीम ख़य्यामी, जो हकीम उमर खय्याम के नाम से प्रसिद्ध हैं, दर्शनशास्त्री, गणितज्ञ, ज्योतिषी और प्रसिद्ध ईरानी शायर हैं।
४२७ हिजरी शम्सी में नीशापुर में उनका जन्म हुआ और ५१० हिजरी शम्सी में उनका स्वर्गवास हो गया।
उमर ख़य्याम अपने समय के बहुत से ज्ञानियों में सर्वेश्रेष्ठ थे। उन्होंने गणित, ज्यामिति आदि विषयों के बारे में कई पुस्तकें लिखी हैं जिनसे बाद की शताब्दियों में युरोपवासियों ने बहुत लाभ उठाया। ४६७ हिजरी क़मरी में वह मात्र २७ वर्ष के थे कि उन्हें विद्वानों और गणितज्ञों की सहायता से समय का कैलेंडर सही करने का कार्य सौंपा गया। इस कार्य को कई लोगों ने मिल कर किया और इसे पूरा करने में इस्फहान की वेधशाल में चार वर्षों का समय लगा। समय की सूक्ष्म जानकारी के लिए जलाली कैलेंडर को आज तक विश्व में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है।
उमर ख़य्याम ने ४७० हिजरी क़मरी अर्थात १०७७ ईसवी में ज्यामिति के संबंध में भी एक किताब लिखी है जिसमें अकलीदस के ज्यामिति सिद्धांतों की समीक्षा की गयी है। उन्होंने अक़लीदस के ज्यामिति सिद्धांतों पर कई प्रश्न किये हैं और ग़ैर अक़लीदस ज्यामिति की बुनियाद रखी।
उमर ख़य्याम ने विभिन्न किताबें लिखी हैं परंतु गणित के क्षेत्र में उन्होंने जो किताबें लिखी हैं उन्हें विशेष महत्व प्राप्त है।
यद्यपि उमर ख़य्याम का स्थान उनके साहित्य से बहुत ऊपर है और उन्हें हुज्जतुल हक़ की उपाधि दी गयी है परंतु उन्होंने जो चौपाई लिखी है उसके कारण उन्हें विश्व ख्याति प्राप्त है। उमर ख़य्याम ने जो चौपाई लिखी है वह विभिन्न भाषाओं में अनुवाद होकर प्रकाशित हो चुकी है। पूर्वविद, लेखक और ब्रिटेन के बहुत बड़े शायर फिट्ज़ जराल्ड ने वर्ष १८५९ में उमर ख़य्याम की रोबाई का अंग्रेज़ी भाषा में जो अनुवाद किया है उसे अंग्रेज़ी का एक शाहकार माना जाता है।
उमर ख़य्याम की क़ब्र निशापुर के एक बाग़ में है और उसी बाग़ में इमाम ज़ादा महरूक़ की भी क़ब्र है। इस महान ईरानी विद्वान की क़ब्र पर निपुण ईरानी वास्तुकार हूशंग सैहून ने एक सुन्दर मक़बरे का निर्माण किया है। इस सुन्दर इमारत के निर्माण में ईरान की प्राचीन और वर्तमान निर्माण शैली का प्रयोग किया गया है। इस मक़बरे की इमारत में कुल १० स्तंभ हैं और हर स्तंभ की ऊंचाई १२ मीटर है। इस इमारत का निर्माण वेधशाला के रूप में किया गया है और उसके रौशनदानों से तारों को बहुत अच्छी तरह देखा जाता है। इसी तरह उमर ख़य्याम की क़ब्र पर जो इमारत बनी है उसे उन्हीं की रोबाइयों से सुसज्जित किया गया है। इसी प्रकार जिस बाग़ में उमर ख़य्याम की क़ब्र है उसमें एक पुस्तकालय भी है जिसमें विभिन्न विषयों के बारे में मूल्यवान पुस्तकें हैं और उनसे उनकी कब्र के दर्शक लाभ उठा सकते हैं।
ईरान के बहुत बड़े आत्मज्ञानी और कवि फरीदुद्दीन अत्तार नीशापुरी की क़ब्र भी नीशापुर शहर के निकट है और उसे देखने के लिए प्रतिवर्ष हज़ारों लोग वहां जाते हैं।
फरीदुद्दीन अत्तार नीशापुरी ६ठी शताब्दी हिजरी क़मरी के अंत और सातवीं हिजरी शताब्दी के आरंभ के महान ईरानी आत्मज्ञानी एवं फारसी भाषा के प्रसिद्ध शायर हैं। उनका जन्म ५४० हिजरी क़मरी बराबर ११४६ ईसवी में निशापुर के कदकन क्षेत्र में हुआ था और ६१८ हिजरी क़मरी में उनका निधन हो गया। नवीं हिजरी क़मरी में उनकी क़ब्र पर मक़बरा बनाया गया जो ८ कोणीय है और उसकी छत को सुन्दर टाइलों से सुसज्जित किया गया है और उसमें चार प्रवेश द्वार हैं। इमारत के बीच में अत्तार नीशापुरी की क़ब्र है और वहां पर ८ कोणीय एक स्तंभ है जो तीन मीटर ऊंचा है। अत्तार नीशापुर बहुत बड़े शायर थे। विद्वानों के कथनानुसार आत्मज्ञानी के क्षेत्र में वह बहुत महान व्यक्ति थे। अत्तार नीशापूरी की प्रसिद्ध रचनाओं में “असरार नामा” “एलाही नामा” “मन्तिक़ु तैर” “मुसीबत नामा” “मुख्तार नामा” “तज़केरतुल औलिया” और “दीवाने अशआर” का नाम लिया जा सकता है। मंगोलों के नीशापुर पर हमले के दौरान इस महान प्रसिद्ध ईरानी शायर को शहीद कर दिया गया।
अत्तार नीशापुरी की क़ब्र की बगल में कमालुल मुल्क की भी क़ब्र है। कला में रुचि रखने वालों के लिए कमालुल मुल्क का नाम जाना पहचाना है। वह प्रसिद्ध ईरानी चित्रकार थे। वह १९वीं शताब्दी ईसवी के आरंभ के कलाकार हैं और उन्होंने चित्रकारी व कलाकारी के क्षेत्र में बहुत सी नई शैलियों का अविष्कार किया।
मोहम्मद ग़फ़्फ़ारी, जो कमालुल मुल्क के नाम से प्रसिद्ध हैं, क़ाजारी काल के अंतिम वर्षों के सबसे बड़े चित्रकार व कलाकार थे। उनका जन्म १८४७ ईसवी में ईरान के केन्द्र में स्थित काशान नगर में हुआ था और आरंभिक शिक्षा पूरी करने के बाद वह तेहरान आ गये और उस समय के प्रसिद्ध मदरसा दारूल फुनून में शिक्षा ग्रहण करने लगे। चूंकि कमालुल मुल्क ने कला से प्रेम करने वाले परिवार में जन्म लिया था इसलिए समय नहीं बीता था कि उनके अंदर कला की क्षमताएं व योग्यताएं निखर कर सामने आ गयीं जिस पर कला और ज्ञान की समय की हस्तियों ने ध्यान दिया। नासिरुद्दीन शाह क़ाजार के काल में कमालुल मुल्क ने दरबार के कलाप्रेमी वर्ग से भी शिक्षा ग्रहण की और कुछ ही समय बाद कला के क्षेत्र में विभिन्न मूल्यवान रचनाएं पेश की जिसमें सबसे प्रसिद्ध “तालारे आइने” उल्लेखनीय है।
ईरान में तत्कालीन राजनीतिक परिवर्तन के काल में कमालुल मुल्क ने युरोप की यात्रा की और वहां पर उन्होंने अपने प्रवास के दौरान कला के क्षेत्र में गहन अध्ययन किया और वहां भी कला के क्षेत्र में विभिन्न मूल्यवान रचनाएं प्रस्तुत कीं। कमालुल मुल्क का ९२ वर्ष की आयु में १३१९ हिजरी शम्सी में नीशापुर में निधन हो गया। उनकी क़ब्र पर मक़बरा बना है जिसमें ६ हाल हैं और उसके आंतरिक भाग को सफेद और नीले रंग की सुन्दर टाइलों से सुसज्जित किया गया है। उनके मक़बरे के सामने एक प्रतीमा बनी है जिसे पहली नज़र में देखते ही प्रसिद्ध ईरानी कलाकार कमालुल मुल्क की याद आ जाती है।