Apr २६, २०१६ १५:२३ Asia/Kolkata

सब्ज़वार ज़िला ख़ुरासाने रिज़वी प्रांत के पश्चिम में स्थित है।

 इस ज़िले का केन्द्रीय शहर भी सब्ज़वार कहलाता है। यह ज़िला पर्वतीय और मैदानी इलाक़ों के बीच स्थित है, इसलिए इसकी जलवायु में विविधता पायी जाती है। रेगिस्तान और दो पर्वतीय श्रंखलाओं जुग़ताय एवं मिश के बीच कम दूरी और पानी के अनेक स्रोतो के कारण इस इलाक़े का आकर्षण बढ़ गया है। उदाहरण स्वरूप, सब्ज़वार के दक्षिण में पांच किलोमीटर की दूरी पर 22629 हेक्टेयर पर फैला हुआ शीर अहमद नेशनल पार्क और 16900 हेक्टेयर पर फैला हुआ शिकार निषेध इलाक़ा परवंद ख़ास आकर्षण का केन्द्र हैं।

 

 

पुरातत्त्व अध्ययनों के मुताबिक़, सब्ज़वार शहर का इतिहास, ईसा पूर्व चौथे मिलेनियम तक पहुंचता है। इस शहर का प्राचीन नाम, बीहे या बैहक़ है। 1203 ईसवी में इसका नाम सब्ज़वार पड़ा। ईरानी इतिहास के प्रमाणिक स्रोत तारीख़े बीहक़ी के अनुसार, सब्ज़वार की स्थापना 2500 वर्ष पूर्व अर्थात सासानियान के काल में हुई। इतिहास के अनुसार, सब्ज़वार और बैहक़ दो अलग अलग शहर थे और बीहक़ सब्ज़वार से वर्षों पुराना शहर था। इन दोनों शहरों के बीच कम दूरी के कारण धीरे धीरे इनका विलय हो गया जो सब्ज़वार के नाम से प्रसिद्ध हुआ। प्राचीन शहर बैहक़, ख़ोसरूगर्द गांव के आसपास और सब्ज़वार से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित था। धीरे धीरे यह विलुप्त हो गया और इसकी जगह सब्ज़वार क़स्बे ने ले ली कि जो केन्द्रीय शहर के रूप में विकसित हुआ।

मुग़लों के हमले में यह शहर पूर्ण रूप से नष्ट हो गया था और उसके बाद धीरे धीरे पुनः आबाद हुआ। इस शहर में कई ऐतिहासिक घटनाएं घटी हैं। 737 हिजरी क़मरी में यह शहर सरबेदारान वंश की राजधानी बना। सब्ज़वार शहर दारुलमोमनीन के नाम से भी प्रसिद्ध था।

 

 

इस शहर के नागरिकों पर लगने वाले मुग़लों के हमलों के घाव अभी तक भरे भी नहीं थे कि शाह अब्बास सफ़वी के काल में उज़बेकों ने हमला करके इसे उजाड़ दिया और इसके नागरिकों का नरसंहार किया। इसके बाद यह शहर फिर संभला और आबाद हुआ।

सफ़वीयों के काल में इस शहर की मरम्मत और पुनर्निमाण का कार्य शुरू हुआ। हालिया शताब्दियों में इस शहर ने काफ़ी विकास किया है और यह सिलसिला आज भी जारी है।

आज सब्ज़वार को पूर्वोत्तर ईरान के शैक्षिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र के रूप में जाना जाता है। इस शहर के शैक्षिक केन्द्र और धार्मिक शिक्षा का केन्द्र काफ़ी प्राचीन है, जो यहां के लोगों की शिक्षा में रूची का प्रतीक है। इस शहर में विभिन्न कालों में विद्धवानों ने जन्म लिया है। इस्लामी जगत के प्रसिद्ध दर्शन शास्त्री हाज मुल्ला सब्ज़वारी इतिहास में हमेशा जीवित रहने वाली हस्ती का नाम है। ईरान के प्रसिद्ध इतिहासकार अबुल फ़ज़्ल बैहक़ी ने भी इसी शहर में जन्म लिया और वह यहीं दफ़्न हुए। इस शहर ने बड़े और प्रसिद्ध कवियों को भी जन्म दिया है।

 

 

 

प्राचीन काल में यह शहर सिल्क रोड के रास्ते में स्थित था और आज भी तेहरान-मशहद हाईवे इस शहर से होकर निकलता है। यह शहर इस प्रकार से स्थित है कि दक्षिणी ख़ुरासान और उत्तरी ख़ुरासान का तेहरान से संपर्क इसी शहर द्वारा होता है। सब्ज़वार को ख़ुरासान का द्वार भी कहा जाता है। आज भी यह शहर मशहद और निशापुर के बाद ख़ुरासाने रिज़वी प्रांत का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण शहर है।

सब्ज़वार शहर ख़ुरासान का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र है और यहां की अधिकांश आबादी व्यापार करती है। प्रतिवर्ष बड़ी मात्रा में कपास, रेशम, अनाज, ज़ीरा और कतीरा अर्थात एक प्रकार का गोन्द यहां से निर्यात किया जाता है। ख़ास तौर से इस शहर का ज़ीरा मशहूर है और विश्व बाज़ार में इसका विशेष स्थान है।

 

 

सब्ज़वार की जामा मस्जिद इस शहर की ऐतिहासिक इमारतों में से एक है। इस मस्जिद का क्षेत्रफल 4000 वर्ग मीटर है। इस इमारत में बरामदा, सहन और हाल हैं। इस इमारत के कुछ भागों का कई बार पुनर्निमाण किया गया है। क़िब्ला नामक बरामदे के दक्षिणी भाग में महराब है। उसके ऊपरी भाग में एक शिलालेख है, जिसपर 1229 हिजरी क़मरी की तारीख़ लिखी हुई है और इस बरामदे के ऊपर ईंटों से बने हुए दो मीनार हैं। इस भाग के दोनों ओर महराबी ऊंचे हाल हैं। मस्जिद के उत्तरी बरामदे के पूर्वी भाग में सफ़वी काल के शिलालेख हैं जिनपर 979 और 1136 हिजरी क़मरी लिखा हुआ है। इस मस्जिद में सात रंगों की सुन्दर टाइलें और ईंटों की टाइल्स लगी हुई हैं। यह इमारत आठवीं हिजरी की वास्तुकला का नमूना है।

पुरातत्व अध्ययनों के अनुसार, ख़ोसरूगर्द मीनार रिज़वी प्रांत की सबसे ऊंजी ऐतिहासिक इमारत है जिसका निर्माण सिल्क रोड पर राहगीरों के मार्गदर्शन के लिए किया गया था। सब्ज़वार के पश्चिम में 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मीनार रेगिस्तानी लोगों की मोहब्बत और मेहमान नवाज़ी का प्रतीक है।

 

 

इस मीनार का निर्माण वर्ष 505 हिजरी क़मरी में सल्जूक़ियों के शासनकाल के दौरान किया गया था। इस मीनार की ऊंचाई 38 मीटर है और यह ईंटों से बनाया गया है। इसके तीन स्तंभ हैं और आठ कोण हैं और इनके मध्य चार कमरे बने हुए हैं। मीनार परिपत्र है और उसका व्यास ऊपर की ओर कम होता जाता है। मीनार पर ज्यामितिक रूप में ईंटे लगी हुई हैं और कूफ़ी लिपी में सोने से लिखा गया है। इस प्रकार, सब्ज़वार की यह मीनार छठी हिजरी क़मरी शताब्दी की सुन्दरतम मीनारों में से एक है।

हाज मुल्ला हादी सब्ज़वारी ईरान के इस इलाक़े के प्रसिद्ध रहस्यवादी और दर्शन शास्त्री थे। वर्ष 1212 हिजरी क़मरी में उनका जन्म हुआ। बचपन से ही उन्होंने धार्मिक शिक्षा में रूची ली। धार्मिक शिक्षा ग्रहण करने के उद्देश्य से वे मशहद और इस्फ़हान गए और उसके बाद पुनः मशहद वापस लौट आए। मशहद में उन्होंने दर्शन शास्त्र, धर्म शास्त्र और क़ुरान की व्याख्या जैसे विषयों को पढ़ाना शुरू किया। उसके बाद कुछ समय उन्होंने किरमान में बिताया और उसके बाद, वे अपने वतन लौट आए और फ़सीहिया मदरसे में पढ़ाना शुरू कर दिया। हाज मुल्ला सब्ज़वारी को असरार के नाम से भी जाना जाता था। 1289 हिजरी क़मरी में उनका निधन हो गया। उन्होंने बहुत ही मूल्यवान किताबे छोड़ी हैं, जिनमें से मंज़ूमए फ़लसफ़े, शरहे मंज़ुमे दर मंतिक़, शरहे लयाली, हाशिए बर तजरीद के नाम लिए जा सकते हैं। इस महान विद्वान के मक़बरे की ज़ियारत के लिए काफ़ी संख्या में लोग जाते हैं। इस मक़बरे की इमारत क्रोस के डिज़ाइन की बनी हुई है। 1340 हिजरी क़मरी में ईरान की राष्ट्रीय संस्था ने इसका पुनर्निमाण कराया था। इस मक़बरे का नीले रंग का गुबंद सुन्दर है और रंग बिरंगी टाइलों के काम ने इसे और सुन्दर बना दिया है।

 

 

हालांकि मुल्ला हादी सब्ज़वारी के निधन को एक लम्बा समय हो गया है, लेकिन आज भी उनके विचार ईरान के धार्मिक शिक्षा केन्द्रों और विश्व के अन्य विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाते हैं। मुल्ला हादी सब्ज़वाही के व्यक्तित्व के बारे में अनेक विद्वानों ने अपने विचार प्रकट किए हैं। उर्दू के प्रसिद्ध कवि अल्लामा इक़बाल उनके बारे में कहते हैं कि मुल्ला सद्रा के बाद, मुल्ला हादी सब्ज़वारी ईरान के सबसे बड़े विचारक हैं। (SM)

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