Apr २६, २०१६ १५:३६ Asia/Kolkata

ख़ूज़िस्तान प्रांत ईरान के दक्षिण-पश्चिम में स्थित प्रांत है और इसका क्षेत्रफल लगभग 65 हज़ार वर्ग किलोमीटर है।

ख़ूज़िस्तान प्रांत के उत्तर में लुरिस्तान और ईलाम प्रांत, पश्चिम में इराक़ देश, दक्षिण में फ़ार्स की खाड़ी और पूरब में चहार महालो बख़्तियारी और कोहगीलूए व बुवैर अहमद प्रांत स्थित हैं। अहवाज़ ख़ूज़िस्तान प्रांत का केन्द्र है।

ख़ूज़िस्तान प्रांत पहाड़ी और ऊंची चौरस भूमि में बटा हुआ है। इस प्रांत का उत्तरी और पूर्वी इलाक़ा पहाड़ी है। इस प्रांत में ज़ाग्रुस पर्वत श्रंख्ला के पहाड़ हैं। ज़र्दकूह, कूहे सियाह, कूहे चाल और आब बन्दान ख़ूज़िस्तान प्रांत के मशहूर पहाड़ों के नाम हैं। ख़ूज़िस्तान प्रांत का दक्षिणी और पश्चिमी इलाक़ा ऊंची चौरस भूमि वाला है। चौरस भूमि का इलाक़ा 41 हज़ार वर्गकिलोमीटर पर फैला हुआ है। यह वह इलाक़ा है जहां से कारून, कर्ख़े और जर्राही नदियां गुज़री हैं।

 

 

इस बात का उल्लेख भी ज़रूरी लगता है कि ख़ूज़िस्तान चूंकि समुद्र की सतह से ज़्यादा ऊंचाई पर नहीं है, इसलिए इस प्रांत की नदियों के तटवर्ती इलाक़ों में और समुद्र के तटवर्ती इलाक़ों में बहुत विशाल दलदल मौजूद है जिसे स्थानीय ज़बान में हूर कहा जाता है। इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण दलदल दश्ते आज़ादगान और शादगान में पाए जाते हैं। ख़ूज़िस्तान प्रांत का सबसे बड़ा दलदली इलाक़ा हूरुल अज़ीम के नाम से प्रसिद्ध है। यह दलदल कर्ख़े, दवीरज और अर्वन्द रूद नदियों के पानी से वजूद में आया है।

ख़ूज़िस्तान प्रांत के इलाक़ों के समुद्र तल बहुत ऊंचायी और कम ऊंचायी पर स्थित हैं जिसके कारण इस प्रांत की जलवायु विविधतापूर्ण है। ख़ूज़िस्तान प्रांत के ऊंचे पहाड़ी इलाक़ों में जाड़े के मौसम में बहुत ठंड पड़ती है जबकि गर्मी में जलवायु संतुलित रहती है। पर्वतांचल के इलाक़े की जलवायु अर्ध मरुस्थलीय इलाक़े जैसी है जबकि चौरस भूमि के निचले भाग के इलाक़े की जलवायु मरुस्थलीय है।

 

 

ख़ूज़िस्तान और उसके तटवर्ती इलाक़े गर्म इलाक़ों की श्रेणी में आते हैं। अहवाज़, आबादान और देज़फ़ूल शहरों में गर्मी के मौसम में तापतान 50 डिग्री तक पहुंच जाता है। इस तेज़ गर्मी का कारण सऊदी अरब के विशाल मरुस्थलीय इलाक़ों की तेज़ गर्मी, फ़ार्स खाड़ी के पड़ोस में स्थिति, ख़ूज़िस्तान की भूमि की सतह का नीचे होना और इस प्रांत के दक्षिणी भाग में पहाड़ का न होना है जिसके कारण इस इलाक़े में दूसरे क्षेत्र की गर्मी के झोके बिना किसी रोक टोक के दाख़िल हो जाते हैं।

इस बात का उल्लेख भी ज़रूरी लगता है कि लगातार सदियों तक ख़ूज़िस्तान प्रांत की अहमियत और शान इस प्रांत में बहने वाली नदियों की देन है। सबसे ज़्यादा पानी वाली नदी कारून और सबसे लंबी नदी कर्ख़े इसी प्रांत में मौजूद हैं। महत्वपूर्ण नदियों के बहने के कारण यह ऊपजाउ इलाक़ा सदियों तक सरकारों और लोगों के ध्यान का केन्द्र बना रहा।

ख़ूज़िस्तान प्रांत अच्छी मिट्टी और पानी से समृद्धता के मद्देनज़र ईरान के कृषि प्रधान इलाक़ों में गिना जाता है। ईरान में नदियों और नहरों के रूप में जारी पानी का एक तिहाई भाग अकेले ख़ूज़िस्तान में बहता है। शाक सब्ज़ियों तथा तरकारियों की पैदावार की नज़र से भी ख़ूज़िस्तान प्रांत ईरान के महत्वपूर्ण इलाक़ों में गिना जाता है। इस प्रांत में गन्ने की भी खेती होती है और खजूरों के विशाल बाग़ भी बहुत अहमियत रखते हैं। ख़ूज़िस्तान प्रांत की जलवायु और विशेष प्रकार की मिट्टी के कारण इस प्रांत के कुछ इलाक़ों में जंगल, बेल, झाड़ियां और चरागाहें पायी जाती हैं। जाड़े के मौसम में ख़ूज़िस्तान प्रांत में थोड़े वक़्त के लिए मूल्यवान चारे उगते हैं। ख़ूज़िस्तान प्रांत की चरागाहें मुख्यरूप से ठंडे क्षेत्रों में उगने वाली चरागाहें हैं कि इसके कुछ भाग ईल बख़्तियारी बंजारे अपने जानवरों को चराने के लिए करते हैं जब वे पड़ोसी प्रांतों से ख़ूज़िस्तान के इस इलाक़े की ओर पलायन करते हैं।

 

 

ख़ूज़िस्तान प्रांत में जीवधारियों को मछली और शिकारी जानवरों में बांटा जा सकता है। नदियों, दलदली इलाक़ों और फ़ार्स खाड़ी के समुद्र में लगभग 200 प्रकार की मछलियां पायी जाती हैं। मीठे पानी की नदियों में बहुत उच्च कोटि के प्रोटीन से समृद्ध मछलियां पायी जाती हैं जिससे लोगों की खाद्य ज़रूरत पूरी होती है। फ़ार्स की खाड़ी में भी नाना प्रकार की मछलियां पायी जाती हैं। इन मछलियों के ज़रिए इलाक़े के लोग अपनी खाद्य ज़रूरत को पूरा करते हैं। बल्कि मछलियों के एक भाग का निर्यात भी करते हैं। इसके अलावा ख़ूज़िस्तान प्रांत में विभिन्न प्रकार के शिकार योग्य जानवर भी पाये जाते हैं। विगत में ख़ूज़िस्तान हिरन के महत्वपूर्ण जीवन स्थलों में में था। अब इस प्रांत में हिरन की संठया बहुत कम हो गयी है। इन दिनों हिरनों की देखभाल ख़ूज़िस्तान प्रांत के संरक्षित पार्कों में की जा रही है। ख़ूज़िस्तान प्रांत के दलदली इलाक़ों में विभिन्न प्रकार की मुर्ग़ाबियां, लंबी चोंच वाली मुर्ग़ी, मुर्ग़े सक़ा और तीतर पाये जाते हैं। इसी प्रकार लोमड़ी, सियार, लकड़बग्घा, भेड़िया और गुराज़ ख़ूज़िस्तान प्रांत के पहाड़ी और जंगली इलाक़ों में पाए जाते हैं। ख़ूज़िस्तान प्रांत के इतिहास के अध्ययन से पता चलता है कि यह इलाक़ा प्राचीन समय में ईलाम नामक एक स्वाधीन शासन के अधीन था।

 

 

फ़्रांसीसी शोधकर्ता सुश्री जान दियालाफ़ॉय और जैक डी मोर्गन के अध्ययन यह दर्शाते हैं कि ईलामी लगभग 8 हज़ार ईसापूर्व वर्ष में इस इलाक़े में रहते थे और शायद वह पहली जाति थी जिसने इस इलाक़े में एक स्वाधीन शासन की स्थापना की थी। ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के अनुसार, 13 शताब्दी ईसापूर्व तक ख़ूज़िस्तान प्रांत को ईलाम कहा जाता था और बाद में ईलामी शिलालेखों में इसका नाम इन्शान सूसिन्का अर्थात इन्शान और शूश की भूमि इसे कहा गया है।

हख़ामनेशी शासन लगभग 640 ईसावर्ष पूर्व इस इलाक़े पर क़ब्ज़े के बाद इसे इन्ज़ान कहते थे। किन्तु आशूरी शासन इसे ईलाम कहते थे। हख़ामनेशी और सलूकी शासन काल के यूनानी इतिहासकारों जैसे हेरोडट और गज़न्फ़ून ने ख़ूज़िस्तान को सूज़ियाना कहा है। सूज़ियाना की उतपत्ति शूश शब्द से हुयी है।

ख़ूज़िस्तान प्रांत गन्ने की बहुतायत के लिए मशहूर था यही कारण है कि इसे तीसरी और चौथी हिजरी क़मरी शताब्दी के बाद ख़ूज़िस्तान कहा जाने लगा जिसका मतलब होता है शकर की भूमि।

 

 

ख़ूज़िस्तान प्रांत का इतिहास विभिन्न दौर में उतार-चढ़ाव भरा रहा है किन्तु इसके साथ ही यह ईरान का अभिन्न अंग बना रहा। ख़ूज़िस्तान प्रांत 19वीं ईसवी में तेल के समृद्ध स्रोतों और इसी प्रकार फ़ार्स खाड़ी के जलमार्ग तक पहुंच होने के कारण ब्रितानी साम्राज्य के लिए बहुत अहम था। यही कारण हे कि 1914 से 1918 तक चलने वाले पहले विश्व युद्ध में ब्रिटेन ने जनरल डिलामिन की कमान में अपना पहला हमला अर्वन्द रूद नदी के इलाक़ों पर किया। ब्रिटेन ने अपनी सेना ख़ूज़िस्तान में उतारी और शैख़ ख़ज़अल को इस इलाक़े पर अपने पिट्ठू के रूप में सत्ता पर बिठाया क्योंकि शैख़ ख़ज़अल का ख़ूज़िस्तान के अरब क़बीलों पर प्रभाव था। इस बात का उल्लेख करते चलें कि ख़ूज़िस्तान पर ब्रितानी सेना के हमले के वक़्त पश्चिमी अहवाज़ के अरब क़बीलों ने धर्मयुद्ध की घोषणा की और अपनी जान का बलिदान देकर अपने वतन की रक्षा की। इतिहास में यह लड़ाई जेहाद जंग के नाम से मशहूर है। शैख़ ख़ज़अल को उसकी गद्दारी का मज़ा चखना पड़ा जब 1339 हिजरी क़मरी में ब्रितानी सरकार के साथ साठगांठ के बाद उसके दूसरे पिट्ठू रज़ा शाह की अगुवाई में ख़ज़अल के विद्रोह को कुचल दिया गया।

 

रज़ा ख़ान के बाद उसका लड़का मोहम्मद रज़ा भी अपने बाप की तरह पश्चिमी शक्तियों का पिट्ठू था और उसने अमरीका तथा दूसरा विश्व युद्ध जीतन वाले देशों की मांग को बग़ैर किसी विरोध के मान लिया। इन मांगों में से एक पश्चिमी सरकारों को सस्ते दाम में तेल बेचने की भी मांग शामिल थी। ईरान में इस्लामी क्रान्ति की सफलता के बाद ईरान के तेल के स्रोत पर साम्राज्यवादियों का नियंत्रण ख़त्म हुआ। साम्राज्यवादियों ने सद्दाम को उकसा कर ईरान पर थोपी गयी जंग में ईरान की इस्लामी व्यवस्था को कमज़ोर करने के इलावा ख़ूज़िस्तान को ईरान से अलग करने की कोशिश की किन्तु इस बार भी ईरान में रह रहे अरब, तुर्क, कुर्द और लुर सहित सभी ईरानी एक साथ मिल कर लड़े और उन्होंने साम्राज्यवादी शक्तियों की इस चाल को नाकाम बना दिया।

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