Apr २६, २०१६ १५:३७ Asia/Kolkata

अहवाज़ ज़िला ईरान के दक्षिण-पश्चिमी भाग में स्थित है और इसका क्षेत्रफल 7848 वर्ग किलोमीटर है।

अहवाज़ ज़िला बहुत से अहम कारख़ानों और प्रतिष्ठानों का गढ़ है। जिसमें तेल और गैस के विशाल प्रतिष्ठान, स्पात, पाइप निर्माण, ... कार्बन, और शकर को शुद्ध बनाने वाले कारख़ाने उल्लेखनीय हैं। इसी प्रकार अहवाज़ ज़िले में अनेक बिजलीघर भी हैं। इसलिए अहवाज़ धातु को पिघलाने वाले उद्योगों के गढ़ के नाम से भी मशहूर है। औद्योगिक नज़र से ख़ूज़िस्तान प्रांत में अहवाज़ पहले नंबर पर है। उद्योग के अलावा, इस ज़िले में खेती भी बहुत होती है। अहवाज़ की ज़मीन बहुत उपजाऊ है। अहवाज़ में गेहू, जौ, दालें, तरकारियां और खजूर की पैदावार होती है। अहवाज़ में भी बहुत से ऐतिहासिक अवशेष और पर्यटन स्थल मौजूद हैं। ऐतिहासिक अवशेषों में प्राचीन अहवाज़ शहर, कारून नदी पर पुल का अवशेष, सस्पेन्शन ब्रिज और अली बिन मह्ज़यार अहवाज़ी का मक़बरा उल्लेखनीय है। कारून नदी के सुदंर तट पर्यटन की नज़र से बहुत आकर्षक हैं।

 

 

ख़ूज़िस्तान प्रांत के केन्द्र अहवाज़ शहर को ईरान के बड़े शहरों में गिना जाता है। यह शहर अहवाज़ ज़िले के केन्द्रीय भाग में स्थित है और ख़ूज़िस्तान प्रांत की ऊंची चौरस भूमि का भाग है। अहवाज़ शहर समुद्र तल से 18 मीटर ऊंचाई पर स्थित है और तेहरान से इसकी दूरी 850 किलोमीटर है। ताज़ा आकड़ों के अनुसार ख़ूज़िस्तान प्रांत की 32 फ़ीसद जनता अहवाज़ शहर में रहती है। ईरान के बड़े बड़े कारख़ाने इस शहर में मौजूद हैं। अहवाज़ शहर का क्षेत्रफल 200 वर्गकिलोमीटर है। ईरान की सबसे ज़्यादा पानी वाली नदी कारून इस शहर से गुज़रती है जिससे यह शहर पूर्वी और पश्चिमी भाग में बटा हुआ है। शहर से कारून नदी के गुज़रने के कारण शहर बहुत ही अद्भुत नज़ारा पेश करता है। कारून नदी 950 किलोमीटर लंबी है। यह एकमात्र नदी है जिसका एक भाग नौकाविहार के लिए इस्तेमाल होता है।

 

 

इसी प्रकार यह नदी अहवाज़ को पानी की आपूर्ति करती है। कारून नदी के घुमावदार मार्ग ने ख़ूज़िस्तान को बहुत ही सुंदर चौरस भूमि प्रदान की है। कारून नदी पर बहुत से बांध बनाए गए हैं जिनमें कारून एक, कारून तीन और कारून चार, तथा मस्जिद सुलैमान बहुत अहम हैं। इसके इलावा बड़े औद्योगिक कारख़ाने, दक्षिण के तेल से समृद्ध इलाक़ों की कंपनियों के कार्यालय, ईरान की शिरकते मिल्ली हेफ़ारी के प्रतिष्ठान ने अहवाज़ को महत्वपूर्ण औद्योगिक केन्द्र बना दिया है। इसलिए इस शहर में दूसरे शहरों के लोग भी रोज़गार के लिए जाते हैं। अहवाज़ ट्रान्ज़िट की नज़र से भी बहुत अहम है। अहवाज़ से ज़मीनी मार्ग, रेलगाड़ी और हवाई मार्ग से ईरान की अबादान, ख़ुर्रमशहर, इमाम ख़ुमैनी और माहशहर जैसी महत्वपूर्ण बंदरगाहें जुड़ी हुयी हैं। अहवाज़ शहर की स्थापना और प्राचीनता के बारे में पर्याप्त जानकारी मौजूद नहीं है लेकिन कुछ दस्तावेज़ों से पता चलता है कि इस इलाक़े में सबसे पहले ईलामी बसे थे।

 

अपने वजूद के समय से अब तक अनेक बार अहवाज़ शहर तबाह व बर्बाद हुआ है और हर बार बर्बाद होने के बाद फिर से बसा है। ईलामियों ने मौजूदा अहवाज़ शहर में तारयाना नामक प्राचीन शहर बसाया था जो ईलामियों के पतन के बाद ख़त्म हो गया। सासानी शासन श्रंख्ला के राजा अर्दशीर प्रथम ने तारयाना को फिर से बसाया और उसका नाम बदल कर हुर्मुज़्द अर्दशीर रखा था। कारून नदी पर अर्दशीर ने बांध बनाया जिससे इस शहर की अहमियत बहुत बढ़ गयी और यह तत्कालीन सूज़याना का केन्द्र बना। अहवाज़ में सासानियों के शासन काल में अहवाज़ ख़ूज़िस्तान के अहम शहरों में स्थान रखता था और इस प्रांत बुनाई उद्योग के मुख्य केन्द्रों में शामिल था। यह शहर ईरान में ईसाई बाहुल इलाक़ों में शामिल था। इसके इलावा अहवाज़ महत्वपूर्ण व्यापारिक केन्द्र भी था। चूंकि यह कारून नदी के किनारे बसा शहर है और इसमें नाव भी चलती थी इसलिए व्यापारिक लेन-देन ही होता था। अहवाज़ शहर में जुन्दिशापूर विश्वविद्यालय जैसे सांस्कृतिक एवं वैज्ञानिक केन्द्र के वजूद से भी इस इलाक़े की अहमियत का अंदाज़ा होता है। जुन्दिशापूर में यूनान, मिस्र, भारत और रूम से बड़े बड़े डाक्टर व चिकित्सक पढ़ाते थे। जुन्दिशापूर मेडिकल यूनिवर्सिटी को सन 241-271 के बीच शापूर प्रथम के आदेश पर स्थापित हुयी। शापूर द्वितीय ने इस यूनिवर्सिटी की मरम्मत करायी थी जबकि अनूशेरवान के समय में इस यूनिवर्सिटी को विकसित किया गया।

 

 

इस्लाम के बाद हुर्मुज़ अर्दशीर का नाम बदल कर सूक़ुल अहवाज़ हो गया। उमवी और अब्बासी शासकों के दौर में ही अहवाज़ आबाद था और गन्ने की खेती के केन्द्रों में गिना जाता था किन्तु तीसरी हिजरी क़मरी के आख़िरी वर्षों में इस शहर का पतन शुरु हुआ। हालांकि उसके बाद शहरों में इस शहर को बसाने की बहुत कोशिश की गयी लेकिन इस शहर में बने बड़े बांध के ख़त्म होने के बाद नवीं हिजरी क़मरी में यह शहर सही अर्थ में तबाह हो गया। 1306 हिजरी क़मरी में स्वेज़ नहर की खुदायी और ईरान के दक्षिणी भाग पर यूरोप की ललचायी नज़रों के कारण अहवाज़ में फिर से व्यापारिक गतिविधियां शुरु हुयीं। नासेरुद्दीन शाह ने भी इस मौक़े से कारून नदी पर जल परिवहन को विस्तृत करने के लिए फ़ायदा उठाया। उसने ख़ूज़िस्तान के राज्यपाल के ज़रिए प्राचीन अहवाज़ शहर के किनारे नासेरी बंदरगाह की स्थापना की। इस बंदरगाह के बनने के बाद अहवाज़ का नाम नासेरिया पड़ गया किन्तु 1314 हिजरी शम्सी में इसका नाम फिर से अहवाज़ पड़ा। अहवाज़ बहुत से विश्व प्रसिद्ध विद्वानों और शायरों की जन्मस्थली रही है। अरबी शायरी के पुरोधा अबु नोवास हसन बिन हानी ख़ूज़िस्तानी, अब्दुल्लाह बिन मैमून अहवाज़ी, खगोलशास्त्री नौबख़्त अहवाज़ी और उनके बेटे, बख़्तीशूअ गंदीशापूरी के बेटे जुवरजीस और इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों की श्रद्धा में शेर कहने वाले मशहूर शायर इब्ने सिक्कीत और दअबल ख़ज़ाई भी अहवाज़ के थे।

 

 

अहवाज़ शहर के पुल इस शहर के पर्यटन की नज़र से आकर्षक स्थल हैं। इस वक़्त कारून नदी पर 8 पुल बने हुए हैं जिनसे अहवाज़ शहर का पूर्वी और पश्चिमी भाग जुड़ा हुआ है। पुले सियाह नामक पुल से रेलगाड़ी गुज़रती है। पुले सफ़ेद नामक पुल, ईरान का पहला सस्पेन्शन ब्रिज है। पुले फ़ुलाद नामक पुल दुनिया में स्पात से बने पुल में चौथे नंबर पर है। केबल पुल, मध्यपूर्व में केबल का सबसे बड़ा पुल है। इसी प्रकार अहवाज़ में अनेक ऐतिहासिक घर व संरचनाएं हैं जो ईरान की राष्ट्रीय धरोहर की सूचि में शामिल हैं। इन ऐतिहासिक इमारतों में सराय अजम नामक कारवांसराय भी है जिसे 1382 हिजरी शम्सी में ईरान की राष्ट्रीय धरोहरों की सूचि में शामिल किया गया। विगत में यह इमारत शैख़ ख़ज़अल द्वारा बनायी गयी कारवांसराय और बाज़ार के रूप में बनायी गयी थी और अब इस वक़्त यह गोदाम के तौर पर इस्तेमाल होती है। यह एक मन्ज़िला इमारत है। इसके निर्माण में चीनी मिट्टी और पत्थर के तराशे हुए खंबे इस्तेमाल किए गए। इस इमारत में अनेक कमरे हैं, फ़र्श पत्थर का है। इसका दरवाज़ा और खिड़की लकड़ी के हैं। यह इमारत वास्तुकला की नज़र से बहुत अहमियत रखती है।

 

 

आपको यह भी बताते चलें कि अहवाज़ शहर में स्थित अली बिन महज़्यार का मक़बरा भी है जो इस शहर का दर्शन स्थल है। यह मक़बरा पैग़म्बरे इस्लाम के परिजनों से श्रद्धा रखने वालों से भरा रहता है। अली बिन महज़्यार 125 हिजरी क़मरी में पैदा हुए। वह इस्लाम की प्रतिष्ठित हस्तियों में शामिल हैं। वह 254 हिजरी क़मरी तक ज़िन्दा रहे। वे शीया मत के सबसे बड़े मुजतहिद, मुहद्दिस और विचारक थे। उन्होंने अपनी मूल्यवान किताबों से ईरान के लोगों के पैग़म्बरे इस्लाम के पवित्र परिजनों के पथ से परिचित कराया। वह न सिर्फ़ महान धर्मगुरु थे बल्कि राजनैतिक व आर्थिक दृष्टि से विचारक भी थे।

 

इस्लामी जगत की मशहूर हस्ती शैख़ तूसी अपनी किताब रेजाल में लिखते हैं, “अली बिन महज़्यार इमाम मोहम्मद तक़ी और अली नक़ी के साथियों में शामिल थे। वह बहुत बड़े विद्वान हैं और उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम की बहुत सी हदीसों को पेश किया है। उन्होंने इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम और इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम की बहुत सी हदीसें पेश की हैं। वह इमाम मोहम्मद तक़ी अलैहिस्सलाम के बहुत वफ़ादार अनुयायियों में थे। उन्हें इमाम मोहम्मद तक़ी ने अपना वकील बनाया था। वह इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के भी वफ़ादार अनुयाइयों में थे और कुछ इलाक़ों में वह इमाम अली नक़ी अलैहिस्सलाम के भी वकील थे।”

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