दोस्तो अरफ़ा का दिन एक ऐसा पवित्र दिन है कि जिस दिन हम एक ऐसी मन को सुकून देने वाली दुआ पढ़ते हैं कि जिस दुआ को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अरफ़ात के मरुस्थल में पढ़ी थी।
पवित्र हज के संस्कारों को आज हज़रत इब्राहीम के हज के तौर पर जाना जाता है, यह केवल एक इबादत नहीं है, बल्कि यह पूरी दुनिया के मुसलमानों के बीच एकता और एकजुटता के लिए किए जाने वाले प्रयासों का अभ्यास है।
नई नई मुसलमान होने वाली नार्वे की "मोनिका हैंग्सलेम" इस्लाम के बारे में कहती हैं कि इस्लाम को समझने के बाद मुझे यह पता चला कि दुनिया का कोई भी धर्म औरतों को इतना सम्मान नहीं देता जितना इस्लाम देता है।
एक बार की बात है एक व्यक्ति बहुत दूर से बड़ी कठिनाइयों के साथ हज करने मक्का पहुंचा।
एक बार हज के समय बसरा शहर से लोगों का गुट हज के लिए मक्का गया।
हज के अवसर पर चर्चा
हज के विषय में तैयारियां।
अरफ़ात की भूमि पर हाजी ईश्वर से प्रार्थना और पापों का प्रायश्चित करते हैं।