ईदे नौरोज़ 2
दोस्तो जैसाकि आप जानते हैं कि नया ईरानी साल आरंभ हो चुका है। चारों तरफ खुशी का माहौल है।
जिधर देखिये हरियाली ही हरियाली है। प्रकृति की हरियाली इस बात का संदेश दे रही है कि हम लोगों को शांति प्रदान करने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। लोगों के मन- मस्तिष्क खुशियों से भरे हैं। लोग घुमने- फिरने, अपने सगे- संबंधियों और मित्रों आदि से मुलाकात का कार्यक्रम बना चुके हैं। बहुत से लोग घुमने- फिरने और छुट्टी बिताने के लिए ईरान के दूसरे क्षेत्रों व नगरों और दूसरे देशों की यात्रा पर भी जा चुके हैं।
दोस्तो ईदे नौरोज़ के अवसर पर एक दस्तरखान बिछाया जाता है जिसे "सुफरे हफ्त सीन" कहा जाता है। उसकी वजह यह है कि उस दस्तरखान पर वह सात चीज़ें ज़रूर रखी जाती हैं जिनके नाम का पहला अक्षर सीन से शुरू होता है। जैसे सेब, सिक्का,/ नया साल आरंभ होने से पहले बहुत से लोग गेहूं और लुबिया जैसी चीज़ों को कई दिन पहले से पानी में भिगोकर रखते हैं ताकि उन्हें हफ्तसीन दस्तरखान पर रखा जा सके। सब्ज़ा भी यानी हरियाली सुफरये हफ्तसीन पर रखी जाने वाली एक चीज़ है। दूसरे शब्दों में हरियाली के बिना हफ्तसीन दस्तरखान की कल्पना भी नहीं की जा सकती।
सुफरये हफ्तसीन पर पवित्र कुरआन भी रखा जाता है। वास्तव में पवित्र कुरआन सुफरये हफ्तसीन की जान और वास्तविक शोभा होता है। जिस तरह हथियाली के बिना सुफ्रये हफ्तसीन की कल्पना नहीं की जा सकती उसी तरह पवित्र कुरआन के बिना सुफरये हफ्तसीन की कल्पना नहीं की जा सकती। सुफरये हफ्तसीन पर अंडे भी रखे जाते हैं। छोटी सुन्दर लाल मछलियां भी सुफ्रये हफ्तसीन की शोभा होती हैं। सुफ्रये हफ्तसीन पर जो चीज़ें रखी जाती हैं उनमें से एक सोमाक़ है। सोमाक़ को जीवन का प्रतीक समझा जाता है। इसी तरह सुफ्रये हफ्तसीन पर सोन्बुल यानी एक विशेष प्रकार की हरी सब्ज़ी रखी जाती है। हरी सब्ज़ी को बहार और जीवन का प्रतीक समझा जाता है। इसे कामयाबी और सफलता का प्रतीक समझा जाता है। सुफ्रये हफ्तसीन पर बेर भी रखी जाती है। इसे प्रेम का प्रतीक समझा जाता है। सुफ्रये हफ्तसीन पर सेब भी रखा जाता है। इसे सुन्दरता और सलामती का प्रतीक माना जाता है।
जो चीज़ें सुफ्रये हफ्तसीन पर रखी जाती हैं उनमें से एक समनू भी है। गेहूं से तैयार किये जाने वाले विशेष प्रकार के हल्वे को समनू कहा जाता है। इसे जीवन में मिठास का प्रतीक माना जाता है। इसी प्रकार रंगे हुए अंडे, लाल रंग की छोटी मछलियों और आइने को भी सुफ्र्ये हफ्ती सीन पर रखा जाता है।
दोस्तो जैसाकि हमने बताया कि आज नौरोज़ का दूसरा दिन है। आज के कार्यक्रम में हम नौरोज़ के अवसर पर पकाये जाने वाले कुछ ईरानी खानों से आपको परिचित करायेंगे। दोस्तो यहां यह भी बताते चलें कि नौरोज़ के अवसर पर बहुत से क्षेत्रों के कुछ विशेष व्यंजन होते हैं जो ज्यादातर नौरोज़ के अवसर पर वहीं पकाये जाते हैं। इस कार्यक्रम में हम जहां आपको नौरोज़ के अवसर पर ईरानी व्यंजनों से अवगत करायेंगे वहीं आपको ईरान के कुछ सुन्दर व दर्शनीय स्थलों से भी परिचित करायेंगे।
दोस्तो ईदे नौरोज़ के अवसर पर बहुत अधिक और विभिन्न प्रकार के खाने बनाये जाते हैं जिनमें से एक का नाम "सब्ज़ी पोलो बामाही" है यानी मछली के साथ सब्ज़ी पुलाव। यह वह व्यंजन है जिसे अधिकांश ईरानी ईद की रात या ईद के दिन पकाते हैं। सब्ज़ी पुलाव बनाने के लिए लोग वसंत ऋतु की ताज़ा सब्ज़ियों का इस्तेमाल करते हैं और मछली भी लोग अपने अपने तरीक़ों से पकाते हैं।
प्राचीन समय से ईरानियों का मानना है कि ईद की रात का खाना सब्ज़ी के साथ खाना चाहिये और सब्ज़ी पुलाव में जो सब्ज़ी होती है उसे वे जीवन में खुशहाली, सम्पन्नता और बरकत के प्रतीक के रूप में देखते हैं। इसी प्रकार प्राचीन समय से ईरानियों का मानना रहा है कि ईद की रात को जो खाना खाते हैं उसके अंदर सब्ज़ी ज़रूर होनी चाहिये ताकि पूरे साल वे प्रफुल्लित व खुशहाल रहें।
इसी प्रकार ईरानियों की संस्कृति में मछली को जीवन और सम्पत्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। इस आधार पर ईरानी नौरोज़ की रात को मछली भी खाते हैं ताकि जो नया वर्ष आरंभ हो रहा है वह बरकतों वाला हो और वे सलामती के साथ रहें।
ईरानी नौरोज़ की रात को जो पुलाव खाते हैं उसकी एक वजह यह है कि वह चावल को एक मूल्यवान वनस्पति समझते हैं और उसे अच्छाई और बरकत के कारण के रूप में देखते हैं और उनका मानना है कि नया साल बरकत वाला साल होगा। इस आधार पर चावल के साथ मछली भी खाते हैं जो समृद्ध जीवन का सूचक है।
दोस्तो हमने कार्यक्रम के आरंभ में कहा था कि नौरोज़ के मशहूर व्यंजनों के साथ आपको ईरान के कुछ दर्शनीय स्थलों से भी परिचित करायेंगे तो अब हम ईरान के खुरासान प्रांत की यात्रा पर चलते हैं। खुरासान ईरान का वह प्रांत है जहां नौरोज़ की आम परम्पराओं के साथ कुछ विशेष परम्परायें हैं जो इसी क्षेत्र से विशेष हैं। जैसे कूज़ा शिकनी की परम्परा यानी प्याला तोड़ने की परंपरा। यह परम्परा इस प्रकार अंजाम देते हैं सबसे पहले प्याले को पानी से भरते हैं और उसके बाद उसमें सिक्का डालते हैं और उसके बाद उसे परिवार के एक सदस्य को देते हैं ताकि वह उस प्याले को छत से नीचे फेंक कर तोड़े। ईरानी उस प्याले के टूट जाने को गमों और दुःखों के टूट व खत्म हो जाने के प्रतीक के रूप में देखते हैं। इसी प्रकार ईरानी दुःखों और पीड़ाओं से मुक्ति पाने के लिए ताबें के बर्तन को पालिश करने वाले को देते हैं ताकि वह उस बर्तन को पालिश करके सफेद कर दे।
नौरोज की शाम को दक्षिणी खुरासात प्रांत के लोगों के मध्य एक विशेष परम्परा प्रचलित है। वह परम्परा यह है कि दुल्हे के परिजन अपनी नई बहू के लिए कपड़ा, जूता, बैग, चावल, मांस और इस प्रकार की दूसरी ज़रूरी चीज़ें ले जाते हैं और दुल्हन के परिजन उन्हीं वस्तुओं से नौरोज़ की शाम का खाना तैयार करते हैं और दुल्हे के घर वालों को उसी रात या अगले दोपहर को खाने पर आमंत्रित करते हैं ताकि उनके मध्य संबंध अधिक मज़बूत व प्रगाढ़ हो सकें।
दक्षिणी ईरान के लोग भी दूसरे ईरानियों की भांति नौरोज़ के जश्नों को भी दूसरे जश्नों की तरह महत्वपूर्ण मानते व समझते हैं। दक्षिणी ईरान के लोगों के मध्य एक प्रचलित परंपरा यह है कि जिस समय नया साल आरंभ होने वाला होता है उस समय लोग अपने- अपने घरों में इस्पंद की धोनी देते हैं और नौरोज़ के दिन की विशेष दुआ पढ़ते और नया साल आरंभ हो जाने पर एक दूसरे को मुबारकबाद देते हैं और हाथों में गुलाब जल और मीठाई लेकर परिजनों और निकट संबंधियों की कब्र पर जाते हैं, वहां कब्रों की सफाई करते और उन पर गुलाब जल छिड़कते और कुछ उसी से कब्रों को धुलते हैं इसके बाद वे अपने सगे -संबंधियों और निकट परिजनों के घर जाते और उन्हें नये साल की मुबारकबाद देते हैं।
ईरानी संस्कृति में स्पंद को बहुत महत्वपूर्ण चीज़ के रूप में देखा जाता है। बहुत से ईरानियों का मानना है कि स्पंद की धोनी देने से घर से बेबरकती और बुरी बलायें दूर हो जाती हैं और हानिकारक विषाणु आदि मर जाते हैं। संगीत
दोस्तो अब शीराज़ चलते हैं। यहां के लोग कीनू या किन्नू के पेड़ का विवाह करते हैं। किनू नींबू की जाति का एक पेड़ है और उसका फल बहुत खट्टा होता है और यह शीराज़ में बहुत पाया जाता है और इस पेड़ से एक विशेष प्रकार की सुगंध निकलती है। इस पेड़ के संबंध में शीराज़ के लोगों में यह प्रथा प्रचलित है कि कीनू का जो पेड़ घर में होता है अगर वह बिल्कुल फल नहीं देता या कम फलता है तो उसका विवाह करते और जश्न मनाते हैं। इसके पीछे उस महिला की कहानी है जो दयालुता के पेड़ को काटना चाहती है। जिस पेड़ ने इस साल फल नहीं दिया है वह वसंत ऋतु का कीनू का पेड़ होता है। इस जश्न में पड़ोस की महिलाओं को बुलाया जाता है। सब इकट्ठा होती हैं और घर की मालकिन आरी या आरा उठाती है और प्रतीकात्मक रूप में कीनू का पेड़ काटती है इस बीच पड़ोस की एक महिला मध्यस्थ की भूमिका निभाती और कहती है कि एसा न करो इसके बाद पेड़ पर एक नाज़ुक व बारीक जाल बिछा देते हैं और पेड़ पर शकर पनीर नामक की एक विशेष प्रकार की मिठाई छीटते हैं, ताली बजाते और खुशी मनाते हैं। उन लोगों का मानना है कि अगले वसंत में यह पेड़ फल देगा। संगीत
दोस्तो अब यज़्द प्रांत के कुछ क्षेत्रों में छत पर आग जलाने की परम्परा का उल्लेख करते हैं। यज़्द के लोग भी ईरान के दूसरे क्षेत्रों के लोगों की भांति बड़े हर्षो उल्लास से नौरोज़ मनाते हैं। यज़्द के लोग जाड़े की ठंडक को प्रतीकात्मक रूप से भगाने के लिए अपने अपने घर की छतों पर आग जलाते हैं और अप्रिय घटनाओं से बचने के लिए आग के बचे हुए भाग पर स्पंद डालते हैं। इसी प्रकार यज़्द के लोगों के मध्य "कुलूखक" नाम की एक अन्य परम्परा प्रचलित है। यह परम्परा इस प्रकार है। यज़्द के लोग जो आग जलाये होते हैं उसमें छोटा छोटा आलू भूनकर खाते और तराने व स्थानीय गीत गाते और जश्न मनाते हैं। इसे कुलूखक परम्परा कहा जाता है।
बहरहाल दोस्तो नौरोज़ वह पर्व है जो सुन्दर और नये वस्त्र की भांति है और यह वह वस्त्र है जिसके साथ ईरानी बड़े हुए हैं, परवान चढ़े हैं और उनका मानना है कि यह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, खुशी व स्फूर्ति भरने वाली सुन्दर ईरानी परम्परा है। इस सुन्दर ईरानी परंमरा की सुन्दर व आकर्षक विशेषतायें हैं जिन्होंने हज़ारों साल से इसे बाकी रखा है। कभी भी यह सुनने को नहीं मिलता है कि नौरोज़ का प्रभाव ईरानियों के जीवन में कम हो रहा है। नौरोज़ वह राष्ट्रीय पर्व है जो समस्त ईरानियों के अस्तित्व में रच- बस गया है मानो यह उनके अस्तित्व का अभिन्न अंग व अंश है। समस्त ईरानी नौरोज़ को जश्न मनाते हैं चाहे उनका संबंध किसी भी जाति व धर्म से हो। MM