हज़रत ख़दीजा के स्वर्गवास के अवसर पर विशेष कार्यक्रम
(last modified Sun, 02 Apr 2023 03:12:30 GMT )
Apr ०२, २०२३ ०८:४२ Asia/Kolkata
  •     हज़रत ख़दीजा के स्वर्गवास के अवसर पर विशेष कार्यक्रम

आज वह दिन है जब पैग़म्बरे इस्लाम की सबसे अच्छी और धर्मपरायण पत्नी हज़रत ख़दीजा स. का स्वर्गवास हुआ था।

  आज रमज़ान महीने की 10 तारीख है। आज वह दिन है जब पैग़म्बरे इस्लाम की सबसे अच्छी और धर्मपरायण पत्नी हज़रत ख़दीजा स. का स्वर्गवास हुआ था। आज के कार्यक्रम में हम हज़रत ख़दीजा स. के जीवन के कुछ पहलुओं पर प्रकाश डालेंगे। हज़रत ख़दीजा स. पैग़म्बरे इस्लाम की प्राणप्रिय सुपुत्री हज़रत फातेमा ज़हरा स. की मां थीं। हज़रत ख़दीजा स. को मलेकतुल अरब यानी अरब की रानी कहा जाता था। हज़रत ख़दीजा स. ने इस्लाम के प्रचार- प्रसार और मुसलमानों के कल्याण के लिए अपनी सारी दौलत लुटा दी।

हज़रत ख़दीजा स. का संबंध अरब के क़ुरैश क़बीले से था। वह अपने समय की एक महान महिला थीं। उनका बहुत बड़ा व्यापार था। इस प्रकार से कि व्यापार के लिए क़ुरैश कबीले के जितने भी कारवां शाम अर्थात वर्तमान सीरिया जाते थे हज़रत ख़दीजा स. का व्यापारिक कारवां अकेले ही सबके बराबर था। आचरण की दृष्टि से वह एक महान महिला थीं। इस बात को समझने के लिए इतना ही काफी है कि वह हज़रत फातेमा ज़हरा स. की मां थीं और हज़रत फातेमा ज़हरा कौन हैं इसे आप सब जानते हैं।

हज़रत ख़दीजा स. सदगुणों से प्रेम करने वाली महान महिला थीं। वह पैग़म्बरे इस्लाम पर उस समय ईमान लायीं जब दूसरे उनका इंकार करते थे। क़ुरैश क़बीले के बहुत से लोग उनसे विवाह के इच्छुक थे पर उन्होंने किसी के साथ भी विवाह नहीं किया किन्तु जब वह पैग़म्बरे इस्लाम और उनके सदगुणों से परिचित हुईं  तो उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम को दूसरों से भिन्न पाया और खुद उन्होंने पैग़म्बरे इस्लाम को विवाह का प्रस्ताव दिया।

हज़रत ख़दीजा जब पैग़म्बरे इस्लाम के सदगुणों से अवगत हुईं तो बहुत खुश हुईं इस प्रकार से कि वह कहती हैं हे मोहम्मद! आपकी प्रतिष्ठा, अमानतदारी, अच्छा व्यवहार और आपके सच बोलने के कारण मेरा झुकाव आपकी ओर हो गया है।“ इस प्रकार एक वह समय भी आया जब पैग़म्बरे इस्लाम का विवाह हज़रत ख़दीजा से हो गया और उनका निकाह हज़रत अबू तालिब अलैहिस्सलाम ने पढ़ा। विवाह हो जाने के बाद हज़रत ख़दीजा स. ने अपनी सारी दौलत और समस्त दास और दासियां पैगम्बरे इस्लाम के कदमों में डाल दी।

हज़रत खदीजा ने अपने सदाचरण से सिद्ध कर दिया कि बुरे से बुरे माहौल में भी बुराइयों से दूर रहा जा सकता है। इसी प्रकार हज़रत ख़दीजा स. ने अपने आचरण से यह भी सिद्ध कर दिया कि हमेशा रहने वाले जीवन पर दुनिया की हर चीज़ को कुर्बानी कर देना चाहिये। हज़रत ख़दीजा स. पैग़म्बरे इस्लाम के साथ विवाह से इतना खुश थीं कि एक स्थान पर वह कहती हैं हज़रत मोहम्मद स. की एक मुस्कान से मैं पूरी दुनिया को नहीं बदल सकती।

इसी प्रकार उन्होंने अपने सदाचरण से यह भी सिद्ध कर दिया कि परलोक की मुक्ति व कल्याण प्राप्त करने के बारे में सोचना चाहिये और इसके लिए महान ईश्वर की राह में धन- दौलत खर्च करने में लेशमात्र भी संकोच से काम नहीं लेना चाहिये। रिवायत में है कि जिसने एक मोमिन को खुश किया उसने पैग़म्बरे इस्लाम को खुश किया और जिसने पैग़म्बरे इस्लाम को खुश किया उसने अल्लाह को खुश किया और जिसने अल्लाह को खुश किया अल्लाह उसे स्वर्ग में दाखिल करेगा।

रोचक बात यह है कि यह उस इंसान का सवाब है जो एक आम मोमिन को खुश करे मगर उसके बारे में क्या कहा जा सकता है जिसने महान ईश्वर के समस्त दूतों से श्रेष्ठ दूत को न केवल एक बार बल्कि पूरे जीवन खुश किया और खुश रखा। पैग़म्बरे इस्लाम अपनी पत्नियों में सबसे अधिक हज़रत ख़दीजा स. को चाहते थे और  उनकी हमेशा प्रशंसा करते थे यहां तक कि हज़रत ख़दीजा स. के स्वर्गवास के बाद उनकी सहेलियों के लिए मांस भेजते थे और यह कहते थे कि यह हज़रत खदीजा की सहेली थी।

पैग़म्बरे इस्लाम और हज़रत ख़दीजा का संयुक्त जीवन 25 वर्षों तक चला। इन वर्षों में हज़रत ख़दीजा स. ने पैग़म्बरे इस्लाम के लिए अविस्मरणीय सेवायें और कार्य अंजाम दिये। मिसाल के तौर पर हज़रत ख़दीजा स. ने अपनी पूरी सम्पत्ति पैग़म्बरे इस्लाम के हवाले कर दिया, उन्होंने उस समय पैग़म्बरे इस्लाम की मदद की जब न केवल कोई पैग़म्बरे इस्लाम की मदद नहीं करता था बल्कि दूसरे उन्हें कष्ट पहुंचाते और पागल और जादूगर जैसे अभद्र शब्दों से पुकारते थे।

पैग़म्बरे इस्लाम स. जहां सर्वश्रेष्ठ ईश्वरीय दूत थे वहीं वह परिपूर्ण इंसान थे और उन्हें भी दूसरों की भांति दुःख-सुख का आभास होता था। जब पैग़म्बरे इस्लाम महान ईश्वर के धर्म का प्रचार- प्रसार करते थे तो उन्हें काफिर और अनेकेश्वरवादी भांति- भांति से कष्ट पहुंचाते थे यहां तक कि उन्हें पत्थर भी मारते थे इन सबसे पैग़म्बरे इस्लाम को पीड़ा पहुंचती और कष्ट होता था परंतु महान ईश्वर की प्रसन्नता के लिए पैग़म्बरे इस्लाम सबको बर्दाश्त करते थे। इस प्रकार के हालात में हज़रत ख़दीजा स. पैग़म्बरे इस्लाम को दिली सुकून पहुंचाती और उनकी थकावटों को दूर करती थीं।

एक अध्धयनकर्ता मिस्री महिला “बिन्तुश्शाती” कहती हैं क्या हज़रत ख़दीजा स. के अलावा पैग़म्बरे इस्लाम की किसी अन्य पत्नी के अंदर इस बात की योग्यता थी कि ग़ारे हेरा से लौटने के बाद मज़बूत ईमान के साथ वह खुले दिल से अपने पति का स्वागत करती और इस बात के पक्के विश्वास के साथ कि महान ईश्वर उसे अकेला नहीं छोड़ेगा। हज़रत ख़दीजा स.के अलावा कोई और नहीं था जो सुख- सम्पन्न जीवन बिताया हो और बहुत अधिक माल की अनदेखी कर दी हो और उसे महान ईश्वर की राह में खर्च कर दिया हो और कठिन से कठिन घड़ी में अपने पति के साथ खड़ी रहे। हज़रत ख़दीजा स. के अलावा कोई और नहीं था और जो भी महिलाएं हैं उनका दर्जा हज़रत ख़दीजा स. के बाद है।  

हज़रत ख़दीजा स. पैग़म्बरे इस्लाम से बहुत प्रेम करती थीं। उनके प्रेम का आधार पैग़म्बरे इस्लाम के प्रति निष्ठा और महान ईश्वर पर गूढ़ ईमान था। उन्होंने इस्लाम के प्रचार- प्रसार में किसी प्रकार के संकोच से काम नहीं लिया। इस प्रकार से कि इस राह में उन्होंने अपनी सारी सम्पत्ति खर्च कर दी। यही नहीं जब काफिरों ने पैग़म्बरे इस्लाम का कड़ा आर्थिक परिवेष्टन कर दिया और तीन वर्षों तक वह, उनके चाचा हज़रत अबूतालिब और कुछ दूसरे मुसलमान शेबे अबूतालिब में थे तो वहां पर हज़रत ख़दीजा स. भी पैग़म्बरे इस्लाम के साथ थीं। उन्होंने उस कठिन से कठिन घड़ी में भी पैग़म्बरे इस्लाम का साथ दिया जबकि हज़रत ख़दीजा स. कुरैश की वह महिला थीं जिन्हें अरब की रानी कहा जाता था और कोई धन- दौलत में उनके बराबर नहीं था। तीन वर्षों तक पैग़म्बरे इस्लाम, हज़रत अबूतालिब और दूसरे मुसलमान कड़े आर्थिक परिवेष्टन में थे और उन कठिन व विषम हालात में हज़रत ख़दीजा स. अपनी दौलत से मुसलमानों की ज़रूरतों को पूरा करती थीं। दूसरे शब्दों में इन तीन वर्षों को हज़रत ख़दीजा स. के त्याग व बलिदान के वर्ष का नाम दिया जाना चाहिये।

पैग़म्बरे इस्लाम ने स्वर्ग की जिन चार सर्वश्रेष्ठ महिलाओं का नाम लिया है उनमें से हज़रत ख़दीजा स. एक हैं। हज़रत ख़दीजा स. का स्थान महान ईश्वर की नज़र में बहुत ऊंचा है। इस बात को समझने के लिए बस इतना ही जानना काफी है कि जब हज़रत फातेमा का जन्म होने वाला था तो कुरैश की महिलाओं ने हज़रत ख़दीजा स. को अकेला छोड़ दिया था तो महान ईश्वर ने हज़रत आसिया और हज़रत मरियम जैसी महिलाओं को उनकी सहायता के लिए भेजा था। महान ईश्वर ने अपने इस कार्य से दर्शा दिया कि जो भी उस पर भरोसा करेगा और उसकी राह में कुर्बानी देगा वह कभी भी उसे अकेला नहीं छोड़ेगा और उस मौके पर उसकी सहायता करेगा जिसकी इंसान कल्पना भी नहीं कर सकता। खुद महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन में कहा है कि जिसने अल्लाह पर भरोसा किया अल्लाह उसके लिए काफी है।

इस्लाम से पहले अज्ञानता के काल में अरब समाज में महिलाओं को कोई इज़्ज़त व प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं थी। वे अपने सामाजिक अधिकारों से न केवल वंचित थीं बल्कि बहुत से लोग अपनी लड़कियों को ज़िन्दा ज़मीन में दफ्न कर देते थे और वे इस घिनौने कृत्य पर गर्व भी करते थे परंतु पैग़म्बरे इस्लाम ने महिलाओं को इज़्ज़त दी और उनके सामाजिक अधिकारों को दिलाने का यथासंभव प्रयास किया और अमल से यह बात समझा दी कि महान ईश्वर की दृष्टि में महिला और पुरूष में कोई अंतर नहीं है और महिला और पुरूष में श्रेष्ठ वही है जिसका तकवा ज़्यादा हो। दोनों परिपूर्णता का मार्ग व शिखर तय कर सकते हैं।

अरब समाज में हज़रत ख़दीजा स. ने अपनी योग्यताओं और अमल से सिद्ध कर दिया कि महिला को न केवल जीवन का अधिकार है बल्कि वह अपने क़ानूनी अधिकारों की मांग भी कर सकती है। यही नहीं हज़रत ख़दीजा स. ने अपनी अच्छी आस्था और अच्छे अमल से वह स्थान प्राप्त कर लिया जिसकी वजह से पैग़म्बरे इस्लाम ने उनकी गणना स्वर्ग की चार श्रेष्ठ महिलाओं में किया और महान ईश्वर ने बारमबार हज़रत जिब्रईल के माध्यम से अपना विशेष सलाम हज़रत ख़दीजा स. को भेजा है। यह कोई सामान्य बात नहीं है जिसे महान ईश्वर ने अपना सलाम भेजा है।

पैग़म्बरे इस्लाम फरमाते हैं जिस रात मैं मेराज पर था और वापसी के समय जिब्रईल मेरे पास आये तो मैंने उनसे कहा हे जिब्रईल! क्या तुम्हें कोई ज़रूरत है? इस पर उन्होंने कहा मेरी हाजत व ज़रूरत यह है कि अल्लाह की ओर से और मेरी तरफ से खदीजा को सलाम कहियेगा। यह बात जब पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत ख़दीजा स. से बतायी तो उन्होंने कहा बेशक अल्लाह सलाम है और सलाम व सलामती उससे है और सलाम उसकी तरफ है और जिब्रईल पर मेरा सलाम हो।  

हज़रत ख़दीजा स. हिजरत से तीन साल पहले बीमार हो गयीं। पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें संबोधित करके फरमाया हे खदीजा क्या तुम जानती हो कि अल्लाह ने स्वर्ग में भी तुम्हें मेरी पत्नी करार दिया है? उन्हें ढ़ारस बंधाया और स्वर्ग की शुभसूचना दी। पैग़म्बरे इस्लाम ने उन्हें यह भी बताया कि उन्होंने इस्लाम की राह में जो कुर्बानियां दी हैं उसके कारण अल्लाह ने उन्हें स्वर्ग में विशेष स्थान प्रदान किया है।

अंततः 65 साल की उम्र में हज़रत ख़दीजा स. रमज़ान के पवित्र महीने में इस नश्वर संसार से परलोक सिधार गयीं। पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत ख़दीजा स. को गुस्ल दिया और उस कपड़े का कफन दिया जो हज़रत जिब्रईल महान ईश्वर की ओर से उनके लिए लाये थे। पैग़म्बरे इस्लाम स्वयं क़ब्रे में उतरे और उसके बाद हज़रत ख़दीजा को अपने पावन हाथों से ज़मीन पर लिटाया और सजल नेत्रों से उन्हें विदा किया और उनके लिए दुआ की।

दोस्तो यहां इस बिन्दु को बयान करना जरूरी है और वह यह है कि उसी साल कुछ समय पहले पैग़म्बरे इस्लाम के निष्ठावान चाचा हज़रत अबूतालिब अलैहिस्सलाम का भी स्वर्गवास हुआ था। इन दोनों महान हस्तियों के स्वर्गवास से पैग़म्बरे इस्लाम को बहुत दुःख पहुंचा था इस प्रकार से कि पैग़म्बरे इस्लाम ने उस वर्ष का नाम ही आमुल हुज़्न अर्थात दुःखों के साल का नाम रख दिया।

हज़रत ख़दीजा स. के स्वर्गवास के बाद जब भी उनके नाम का उल्लेख होता था तो पैग़म्बरे इस्लाम की आंखें सजल हो जाती थीं, उन पर दुरूद व सलाम भेजते और फरमाते थे ख़दीजा ने उस समय मेरी मदद की जब सब मुझे इंकार करते थे। MM

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