ईदुल फ़ित्र 1- वास्तविक ईद कब है?
दोस्तो रमज़ान का पवित्र महीना बीत गया और आज शव्वाल की पहली तारीख है। कितने भाग्यशाली वे लोग हैं जिन्होंने रमज़ान के पवित्र महीने की बरकतों से खूब लाभ उठाया, महान ईश्वर की उपासना व बंदगी की, पवित्र कुरआन की तिलावत की, अधिक से अधिक परोपकार किया और गुनाहों से परहेज़ किया।
इस प्रकार के लोग मानो एसे हो गये हैं जैसे दोबारा उनका जन्म हुआ है। एक महीने के रोज़े ने उन्हें पूरी तरह बल दिया है। अगर कोई व्यक्ति एक दिन में कई बार नहाता है तो उसके शरीर पर किसी प्रकार का मैल नहीं होता और उसका शरीर पूरी तरह स्वच्छ होता है और वह स्वयं को हल्का महसूस करता है ठीक यही हाल बल्कि इससे भी अच्छी हालत का एहसास वह इंसान करता है जिसने एक महीने तक रोज़ा रखकर अपने पालनहार की उपासना की है।
एक महीने के रोज़े ने उसकी अंतरआत्मा को पूरी तरह स्वच्छ बना दिया। जिस तरह साफ- सुथरा वस्त्र धारण करने वाला इंसान इस बात को बिल्कुल पसंद नहीं करता है कि उसका कपड़ा गंदा हो ठीक उसी तरह एक महीने तक रोज़ा रखने वाला इंसान कभी भी इस बात को पसंद नहीं करता कि वह कोई गुनाह करे और वह गुनाह उसकी अंतरआत्मा को दूषित कर दे। क्योंकि हर गुनाह वास्तव में एक प्रकार का मैल होता है।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम फरमाते हैं मेरे पालनहार! मैंने जो भी गुनाह किया है या जो भी गलत व अनुचित कार्य अंजाम दिया है या जो बुरी सोच मेरे दिल थी उससे तौबा व प्रयाश्चित करता हूं। मैं उस इंसान की तौबा करता हूं जिसके दिल में पाप की तरफ वापसी का इरादा नहीं है। मैं शुद्ध तौबा करता हूं तो हे पालनहार! मुझसे कबूल फरमा और मुझे उस पर बाकी रख।
महान शीया विद्वान शैख मुफीद लिखते हैं शव्वाल महीने की पहली तारीख को ईमानदार लोगों की जो ईद करार दी गयी है उसकी वजह यह है कि वे रमज़ान महीने में अपने कर्मों को स्वीकार किये जाने से खुश हैं और महान ईश्वर ने उनके गुनाहों को माफ कर दिया है और उनकी कमियों पर पर्दा डाल दिया है और महान ईश्वर की ओर से शुभसूचना आयी है कि रोज़ा रखने वालों को बहुत अधिक प्रतिदान दिया जायेगा।
मोमिन इस बात से बहुत प्रसन्न हैं कि रमज़ान महीने की रात और दिन की उपासनाओं के कारण उन्हें महान ईश्वर के सामिप्य का सौभाग्य प्राप्त हो गया है। इस दिन गुस्ल व स्नान निर्धारित कर दिया गया है और यह गुनाहों से पवित्रता की अलामत है। आज के दिन सुगंध लगाना, सुन्दर व अच्छा वस्त्र धारण करना, खुले आसमान के नीचे जाकर नमाज़ पढ़ना, इन सबके पीछे रहस्य हैं।
मुसलमान इंसान के लिए हर दिन वास्तविक अर्थों में एक ईद हो सकता है। जब वह गुनाहों से दूर रहे तो उसके लिए ईद है। रमज़ान का पवित्र महीना समाप्त होने के बाद जो ईद आती है उसे ईदे फित्र कहा जाता है उसकी वजह यह है कि इंसान अपनी मूल प्रवृत्ति की ओर पलटता है यानी गुनाह न करने की ओर पलटता है। शव्वाल की पहली तारीख यानी नये जीवन का शुभारंभ।
अब से इंसान गुनाह नहीं करेगा। उसके कान अर्थहीन बातों को नहीं सुनेंगे, ज़बान से न किसी को कष्ट पहुंचायेगा और न किसी की बुराई करेगा। हाथ से दूसरों की भलाई करेगा। अब वह न केवल पाप नहीं करेगा बल्कि पाप करने की सोचों से भी बचेगा। पाप करने की सोच पाप नहीं है मगर पाप के बारे में अधिक सोच इंसान को पापों की ओर उकसाती व ले जाती है।
पाप करने की सोच उस धूएं की भांति है जो मकान या कमरे को नहीं जलाता है परंतु कमरे या मकान की चमक को ज़रूर धूमिल कर देता है। उसी तरह पापों के बारे में सोचना पाप नहीं है परंतु इंसान के अस्तित्व को धूमिल व प्रदूषित ज़रूर कर देता है।
मोमिन ईश्वरीय प्रकाश से देखता है। ध्यान योग्य बात यह है कि रियावत में कहा गया है कि मोमिन ईश्वरीय प्रकाश से देखता है। कहने का तात्पर्य यह है कि वह इंसान अपने पालनहार के प्रकाश से देखता है जो स्वयं की आत्मशुद्धि कर चुका है, स्वयं को सदगुणों से सुसज्जित कर चुका है। कितनी खुशी की बात है कि महान ईश्वर सच्चे और वास्तविक मोमिन को अपना नूर व प्रकाश प्रदान करता है जिससे वह देखता है और जो इंसान ईश्वरीय प्रकाश से देखता है वह चीज़ों को देखने व समझने में बहुत कम गलती करेगा।
यह चीज़ भी इस बात पर निर्भर करेगी कि वह किस हद तक महान ईश्वर के प्रकाश से देखता है। यही नहीं जो इंसान एक महीने तक रोज़ा रखता और अपने पालनहार की आराधना करता है उसके अंदर अच्छाइयों व भलाइयों के अंकुर फूटते हैं।
रिवायत में है कि अगर कोई इंसान चालिस दिन तक अपनी नियत को शुद्ध कर ले और समस्त कार्यों को महान ईश्वर की प्रसन्नता के लिए अंजाम दे तो उसकी ज़बान से हिकमत व तत्वदर्शिता के सोते जारी होते हैं। जो इंसान जितना अधिक गुनाहों और बुराइयों से स्वयं को दूर कर लेता है महान ईश्वर उसे उतनी ही अच्छाइयों से नवाज़ता है।
जो इंसान यह चाहता है कि महान ईश्वर उस पर विशेष कृपादृष्टि करे तो वह स्वयं को पापों से दूर करने का अभ्यास करता है और यही अभ्यास एक समय में उसे वह स्थान प्रदान करता है जिसकी कल्पना भी वह नहीं किये रहता और महान ईश्वर की कृपा दृष्टि लोक- परलोक में उसकी सफलता व मुक्ति का कारण बनती है।
जो इंसान एक महीने तक रोज़ा रखकर समूचे ब्रह्मांड के रचयिता की उपासना करता है उसके अंदर पापों व गुनाहों से मुकाबले की क्षमता उत्पन्न हो जाती है। उसके अंदर धैर्य व सहनशीलता पैदा हो जाती है। आयतों व रिवायतों में धैर्य की बहुत प्रशंसा की गयी है। महान ईश्वर ने खुद पवित्र कुरआन में कहा है कि वह धैर्य करने वालों के साथ है। ईदुल फित्र वास्तव में महान ईश्वर की नेअमतों की वर्षा का दिन है परंतु इस वर्षा से सही अर्थों में वही लाभान्वित होता है जिसने रमज़ान के पवित्र महीने में रोज़ा रखकर महान ईश्वर की उपासना की हो और गुनाहों से परहेज़ किया हो।
ईरान के एक समकालीन धर्मगुरू आयतुल्लाह मलेकी तबरेज़ी जिन रोज़ेदारों को ईदुल फित्र मनाने का सौभाग्य प्राप्त होता है उन्हें कई भागों में बांटते और कहते हैं कि जो सबसे कम दर्जे के रोज़दार होते हैं वे भी महान ईश्वर की नेअमत से लाभान्वित होते हैं। वह लिखते हैं कुछ लोगों ने केवल अनिवार्य दायित्व अदा करने के लिए रोज़ा रखा है और खाने -पीने और उन चीज़ों से परहेज़ किया जो रोज़े की हालत में हराम हैं और इसे उन्होंने महान ईश्वर की उपासना और उस पर एहसान समझा जबकि गुनाहों से परहेज़ नहीं किया, रोज़े की हालत में झूठ बोला, दूसरों पर आरोप लगाया। दूसरों को बुरा- भला कहा और दूसरों को कष्ट पहुंचाने से परहेज़ नहीं किया।
इस प्रकार के लोग यद्यपि गुनाहकार रोज़ेदार हैं और अगर वे महान ईश्वर के बारे में अच्छा विचार व खयाल रखते हैं तो उन्होंने जितना रोज़ा रखा है महान ईश्वर उसका उन्हें प्रतिदान देगा।
इसी प्रकार आयतुल्लाह मलेकी तबरेज़ी लिखते हैं कि जो रोज़ेदार रोज़े के समय इस बात को दृष्टि में रखते थे कि उनसे कोई गुनाह न होने पाये, दूसरों की बुराई न होने पाये, दूसरों को बुरा- भला न कहें परंतु इसमें वे एसा करने में पूरी तरह सफल नहीं हो पाये कभी गुनाह भी कर बैठे परंतु तौबा किया तो महान ईश्वर इस प्रकार के रोज़ेदारों की बुराइयों को अच्छाइयों में बदल देगा और उनकी उपासना का प्रतिदान उससे भी अच्छा देगा जिसकी वे कल्पना करते थे। इस बीच कुछ एसे भी लोग हैं जिन्होंने प्रेम और श्रद्धा के साथ अपने पालनहार की आवाज़ पर लब्बैक कहा, शौक से भूख- प्यास बर्दाश्त किया और पूरी खुशी के साथ रमज़ान के पवित्र महीने को पूरा किया।
इन लोगों ने पूरी तनमयता के साथ अपने पालनहार की आवाज़ पर लब्बैक कहा। नेक कार्यों को अंजाम देने में जल्दी की। महान ईश्वर इस प्रकार के लोगों को अपना सामिप्य प्रदान करेगा। उन्हें अपनी बारगाह में अपने नेक बंदों के साथ रखेगा। इन लोगों को एसा प्रकाश प्रदान करेगा जिसे किसी ने न देखा होगा और किसी के दिल में उसका विचार तक न आया होगा।
इस प्रकार ईदे फित्र मुसलमानों की एक बड़ी ईद है और कुछ इस्लामी देशों में इसके उपलक्ष्य में कई दिन की छुट्टी होती है और एक महीने के रोज़े के बाद अपनी- अपनी परम्परा के अनुसार उसका स्वागत करते और इस अवसर पर खुशी मनाते हैं। ईद मिलने के लिए एक दूसरे के घर जाते हैं। नये -नये कपड़े पहनते हैं, बच्चों और छोटों को ईदी भी देते हैं, बहुत से लोग दोपहर या शाम के खाने पर अपने दोस्तों और निकट संबंधियों को आमंत्रित करते हैं। कुछ लोग एक दूसरे को बहुत सी चीज़ें भेंट करते हैं। ईद और ईद के मौके पर जो माहौल होता है उससे मुसलमानों के मध्य प्रेम, स्नेह और भाईचारे का एक विशेष प्रकार का वातावरण उत्पन्न हो जाता है। लोगों के मध्य सामाजिक दूरियां कम हो जाती हैं।
ईदे फित्र के दिन की एक विशेषता फित्रा देना है। फित्रा एक नियत धार्मिक राशि होती है जो परिवार के हर सदस्य पर अनिवार्य होती है। जो छोटा बच्चा भी होता है उसकी तरफ से भी फित्रा देना ज़रूरी होता है। इस फित्रे का सबसे बड़ा फायदा व उद्देश्य गरीब परिवारों की सहायता करना होता है।
रोज़ेदार इंसान की खुशी में चार- चांद उस वक्त लग जाता है जब वह यह देखता है कि उसकी सहायता से निर्धन लोग भी खुश हो गये हैं विशेषकर जब रोज़ेदार इंसान यह देखता है कि लोगों की सहायता से अनाथ बच्चों के चेहरों पर भी मुस्कान आ गयी है और वे भी नये वस्त्र पहने हैं और उनके घर में अच्छा पकवान पक रहा है। उस समय दूसरों विशेषकर रोजेदार को जिस आध्यात्मिक खुशी का एहसास होता है उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।
ध्यान योग्य बिन्दु यह है कि ज़काते फित्रा की रक़म दोपहर की नमाज़ से पहले अदा हो जानी चाहिये। जो लोग ज़काते फित्रा के पात्र हैं उन तक यह धार्मिक राशि पहुंच जानी चाहिये। इस बात को भी ध्यान में रखा जाता है कि जो इंसान बीमारी या बुढ़ापे के कारण या बच्चा होने की वजह रोजा नहीं रखा है तो उस पर भी ज़काते फित्रा अनिवार्य है। सारांश यह कि ईदे फित्र खुशियों का त्योहार है और यह खुशी दूसरों विशेषकर गरीबों और अनाथों को खुश करने से अपने शिखर पर पहुंच जाती है। MM
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