Jul २६, २०२३ ०८:१५ Asia/Kolkata
  • 6 मोहर्रम का विशेष कार्यक्रम 1402

वे कौन सी विशेषतायें हैं जो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथियों को दूसरों से भिन्न बनाती हैं?

दोस्तो जैसाकि आप सबको ज्ञात है कि दुनिया के कोने व क्षेत्र में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से श्रद्धा रखने वाले उनका और उनके वफादार साथियों की महाकुर्बानी व महाबलिदान का शोक मना रहे हैं। यह वह महीना है जिसमें इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके 72 वफादार साथियों को तीन दिन का भूखा- प्यासा शहीद कर दिया।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके पवित्र परिजन कर्बला पहुंच चुके हैं और उनके साथ- साथ उनके कुछ वफादार साथी भी कर्बला पहुंच चुके हैं और वे सब एक पल के लिए भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को अकेला छोड़ने के लिए तैयार नहीं हैं। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के वफादार साथियों ने जिस निष्ठा, प्रेम और कुर्बानी का परिचय दिया है वह बेमिसाल है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के चाहने वालों का दिल समय के इमाम यानी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के प्रेम से भरा हुआ था और हर एक इमाम हुसैन पर अपनी जान कुर्बान के लिए व्याकुल था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के वफादार साथियों की एक विशेषता यह थी कि उनमें से हर एक दूसरे से पहले अपनी जान इमाम पर कुर्बान कर देना चाहता है।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के वफादार साथियों की तुलना पैग़म्बरे इस्लाम, हज़रत अली और इमाम हसन अलैहिमुस्सलाम के साथियों से नहीं की जा सकती। दूसरे शब्दों में जैसे साथी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को मिले वैसे साथी न पैग़म्बरे इस्लाम को, न हज़रत अली को और न इमाम हसन अलैहिस्सलाम को मिले और इस बात को खुद इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने फरमाया है कि जैसे साथी मुझे मिले न नाना को मिले और न बाबा और भाई हसन को मिले।

इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथियों में कुछ एसी विशेषतायें थीं जो उन्हें दूसरों से भिन्न करती हैं। जो इंसान इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का सच्चा चाहने वाला बनना चाहता है उसे चाहिये कि वह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के साथियों की जीवनी का अध्ययन करे और उनकी जीवनी से वफादारी, निष्ठा और त्याग आदि की सीख ले।

जिन लोगों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर अपनी जान कुर्बान कर दी उनमें से एक मुस्लिम बिन औसजा हैं। मुस्लिम बिन औसजा वह हस्ती हैं जिन्हें पैग़म्बरे इस्लाम के साथ रहने का भी सौभाग्य प्राप्त हुआ था। उनका संबंध बनी असद क़बीले से था और हिजरी कमरी से लगभग 20 साल पहले उनका जन्म हुआ था और वह कूफा में रहते थे। उनकी गणना हदीस बयान करने वालों में होती है।

इसी प्रकार मुस्लिम बिन औसजा उन लोगों में से हैं जिन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को पत्र लिखा और यज़ीद बिन मोआविया के खिलाफ आंदोलन करने का आह्वान किया था। अलबत्ता कूफा के बहुत से लोगों ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को पत्र लिखकर कूफा आने के लिए कहा था मगर गिने चुने लोगों के अलावा सब अपनी बातों से पलट गये थे। जैसाकि जब मुस्लिम बिन अक़ील को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपना दूत बनाकर कूफा भेजा तो कूफा के बहुत से लोगों ने उनकी बैअत की पर बाद में अधिकांश पलट गये और जनाब मुस्लिम बिन अक़ील का साथ छोड़ दिया।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार मुस्लिम बिन औसजा का घर वह पहला स्थान था जहां हज़रत मुस्लिम बिन अक़ील कूफा पहुंचने पर ठहरे थे। इसी प्रकार जब जनाब मुस्लिम बिन अक़ील गोपनीय ढंग से कूफा में कार्यों को अंजाम देने पर बाध्य हो गये तब भी मुस्लिम बिन औसजा उनके साथ थे और उन्होंने बैअत करने वाले अधिकांश लोगों के विपरीत जनाब मुस्लिम का साथ नहीं छोड़ा और अपने समूचे अस्तित्व के साथ उनकी सेवा में रहे। जैसे हथियार इकट्ठा करने और जन समर्थन जुटाने में पूरे तन मन से हज़रत मुस्लिम की सेवा में रहे।

समय नहीं गुज़रा था कि उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद कूफा में दाखिल हो गया और उसने हज़रत मुस्लिम बिन अक़ील को गिरफ्तार करके उन्हें शहीद कर दिया। जब जनाब मुस्लिम बिन अकील शहीद कर दिये गये तो कूफावासी तितर- बितर हो गये और मुस्लिम बिन औसजा ने अपने आपको उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद के सैनिकों से छिपा लिया और रात को अपने परिजनों के साथ कूफा से बाहर निकल गये और कर्बला में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से जा मिले।

शबे आशूर यानी दसवीं मोहर्रम की रात को जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने साथियों को जमा किया और उनसे कहा कि रहने या चले जाने का फैसला करो तो मुस्लिम बिन औसजा ने इमाम के जवाब में जो बातें कहीं वह महान ईश्वर और अहलेबैत के प्रेम से ओतप्रोत हैं।

उन्होंने इस प्रकार कहा कि क्या हम आपकी मदद करने से पीछे हट जायें? और हम आपको अकेले छोड़ दें? खुदा की कसम कदापि एसा नहीं करेंगे और आप से दूर नहीं होंगे यहां तक कि दुश्मनों के सीनों में भाला तोड़ दूं और जब तक तलवार मेरे हाथ में है तब तक उनके सिरों पर वार करूंगा और आपसे अलग नहीं हूंगा और अगर मेरे हाथ में हथियार नहीं होगा तो आपकी मदद की राह में पत्थरों से उन पर हमला करूंगा और इस शैली को जारी रखूंगा यहां तक कि आपकी राह में जान दे दूं और अगर मैं यह जान जाऊं कि मुझे कत्ल कर दिया जायेगा और दोबारा ज़िन्दा किया जायेगा और उसके बाद जला दिया जायेगा फिर मेरी राख हवा में उड़ा दिया जाये और यह कार्य 70 बार अंजाम दिया जाये तब भी आपसे अलग नहीं हूंगा। क्योंकि इस तरह से मारे जाने के बाद हमेशा हमेशा रहने वाला कल्याण है।

मुस्लिम बिन औसजा की एक अन्य विशेषता स्वाभिमानी होना है। उन्हें लेशमात्र भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का अपमान बर्दाश्त नहीं था। दसवीं मोहर्रम के दिन जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफादार साथियों ने खैमों की रक्षा के लिए खंदक खोदकर उसमें आग जला दी थी तो शिम्र बिन ज़िलजौशन जलती हुई आग को देखकर बड़े घमंड से और मज़ाक उड़ाते हुए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम से दुस्साहस करता और चिल्लाकर कहता है हे हुसैन क्या प्रलय की आग से पहले दुनिया की आग में जलना चाहते हो?

उसकी इस बात पर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने फरमाया यह कौन है? जैसे शिम्र बिन ज़िलजौशन है। इस पर इमाम के साथियों ने कहा हां मौला खुद वही है। इसके बाद इमाम ने सूरे मरियम की आयत नंबर 70 की तिलावत की और कहा हे बकरी चराने वाले के बेटे तू नरक की आग के योग्य है। मुस्लिम बिन औसजा इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और शिम्र के बीच होने वाली बात को सुन रहे थे पर उनके अंदर बर्दाश्त करने की ताकत नहीं थी और उन्होंने शिम्र पर हमला करके उसे मौत के घाट उतारना चाहा परंतु इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने उन्हें हमला करने से रोक दिया और फरमाया मैं युद्ध आरंभ नहीं करना चाहता।

मुस्लिम बिन औसजा की बातों को सुनकर इस बात को समझा जा सकता है कि वह अहले बैत अलैहिमुस्सलाम से कितनी निष्ठा रखते थे। उन्होंने रणक्षेत्र में दुश्मन के सामने अपना परिचय इस प्रकार कराया। अगर जानना चाहते हो कि मैं कौन हूं तो जान लो कि मैं बनी असद कबीले से हूं मैं रणक्षेत्र का शेर हूं जो लोग हम पर अत्याचार कर रहे हैं वे कमाल व परिपूर्णता से दूर हैं और काफिर हो चुके हैं। अपना परिचय कराने के बाद वह दुश्मन पर हमला करते हैं। इब्ने साद के कुछ सैनिकों ने फुरात नदी की ओर से इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की छोटी सी सेना की ओर हमला किया।

इस बीच मुस्लिम बिन औसजा ने बड़ी बहादुरी व शूरवीरता का परिचय दिया और बड़ी बहादुरी से जंग की यहां तक कि वह घायल हो गये और शहीद होने के निकट थे कि इमाम हुसैन अलैहिस्लाम और हबीब इब्ने मज़ाहिर उनके सिराहने पहुंच गये। उस वक्त भी मुस्लिम बिन औसजा को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के जान की चिंता थी। इस आधार पर उन्होंने हबीब बिन मज़ाहिर को संबोधित करते हुए इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की ओर संकेत करके कहा मैं तुम्हें वसीयत करता हूं कि इस हस्ती के साथ रहना। अल्लाह तुम पर रहम करे उनसे पहले तुम उन पर अपनी जान कुर्बान कर देना।

कुछ इतिहासकारों के अनुसार उस समय इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने मुस्लिम बिन औसजा को इस प्रकार संबोधित करके कहा हे मुस्लिम ईश्वर तुम पर रहम करे कुछ मोमिन हैं जिन्होंने अपने वचनों पर अपने जीवन की अंतिम तक अमल किया और ईश्वर की राह में वीरगति को प्राप्त हुए और कुछ दूसरे मोमिन हैं जो शहादत की प्रतीक्षा में हैं और वे लेशमात्र भी अपने वचनों में असमंजस का शिकार नहीं हुए।

उसके बाद उनके पुराने दोस्त हबीब बिन मज़ाहिर उनके निकट हुए और कहा मेरे लिए कितना सख्त है कि तुम्हें ज़मीन पर पड़ा देख रहा हूं, तुम्हें स्वर्ग की खुशखबरी दे रहा हूं। मुस्लिम बिन औसजा ने भी धीमी आवाज़ में जवाब दिया। ईश्वर तुम्हारा भला करे। उसके बाद उन्होंने अपना प्राण त्याग दिया।

कुछ इतिहासों में कहा गया है कि दसवीं मोहर्रम को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की सेना की ओर से पहले शहीद मुस्लिम बिन औसजा हैं। कुछ रिवायतों में यह भी कहा गया है कि कर्बला के मैदान में मुस्लिम बिन औसजा की संतान और पत्नी भी मौजूद थी।

इतिहासकार कहते हैं कि मुस्लिम बिन औसजा के सबसे बड़े बेटे का नाम खलफ बिन मुस्लिम था और जब मुस्लिम बिन औसजा अपने प्राण त्याग रहे थे तो उस समय वह अपने बाप के पास मौजूद था और वह भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर अपनी जान कुर्बान करने वालों में शामिल है। नाहिया नामक ज़ियारत में मुस्लिम बिन औसजा को इस प्रकार याद किया गया है। अल्लाह की लानत हो उन लोगों पर जो लोग तुम्हें शहीद करने में शामिल थे। हे मुस्लिम बिन औसजा असदी तुम पर सलाम हो तुम ईश्वर की राह में पहले शहीद हो।

दोस्तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के वफादार साथियों ने जो कुर्बानी दी है उसका महत्व व मूल्य केवल मासूम ही बता सकते हैं और उसका प्रतिफल केवल अल्लाह ही दे सकता है। कितने खुशनसीब वे लोग हैं जिन्होंने अपनी जान अपने समय के इमाम पर कुर्बान कर दी और हमेशा हमेशा के लिए अमर हो गये। mm

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