Jul २६, २०२३ ०८:३५ Asia/Kolkata
  • आठवीं मोहर्रम के संबंध में विशेष कार्यक्रम 1402

हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के बारे में अनसुनी बातें

दोस्तो मोहर्रम का महीना जारी है और आज मोहर्रम महीने की आठ तारीख है। यह वह महीना है जिसमें इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके वफादार साथियों को तीन दिन का भूखा- प्यास कर्बला में बड़ी ही निर्ममता से शहीद कर दिया गया। कर्बला की महाघटना पूरे मानव इतिहास के लिए अविस्मरणीय पाठ है जिससे सीख लेकर हर इंसान मानवता व परिपूर्णता के शिखर को बड़ी आसानी से सर कर सकता।

कर्बला वह जगह है जहां इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के वफादार साथियों ने कुर्बानियां देकर परिपूर्णता का मार्ग तय किया। कर्बला की महात्रासदी का अध्ययन किया जाये तो वहां पर वफादारी, त्याग व बलिदान, निष्ठा, समय के इमाम का अनुपालन, दायित्वबोध आदि का वह चीज़ें देखने को मिलेंगी जिसकी पूरे इतिहास में शायद ही कहीं मिसाल मिले। अगर यह कहा जाये कि कर्बला इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के वफादार साथियों के मेराज की जगह है तो गलत न होगा।

जिन लोगों इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम पर अपनी जान कुर्बान कर दी उनमें हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम का नाम सर्वोपरि है। हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सौतले भाई थे। आपकी मां को उम्मूल बनीन यानी बेटों की मां कहा जाता है। आपके चार भाई थे और सबके सब कर्बला में शहीद हो गये। हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम इमाम हुसैन अलैहिस्लाम का इतना सम्मान करते थे जिसकी पूरे इतिहास में कहीं मिसाल नहीं मिलती। हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम जिस समय कर्बला में शहीद हुए उस समय उनकी उम्र 32 या 35 साल थी मगर उनकी 35 हदीसें भी नहीं मिलेगी। उसकी वजह इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का सम्मान था। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सम्मान में उन्होंने कोई हदीस बयान नहीं की।

हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम बहुत बहादुर थे। उनकी बहादुरी का आलम यह था कि कोई उनके मुकाबले का साहस नहीं करता था। जंगे सिफ्फीन में हज़रत अब्बास की बहादुरी के नमूने को उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है। रिवायत में है कि इब्ने शासा नाम का एक अरब था। उसे और उसके सात बेटों को जनाब अब्बास अलैहिस्सलाम ने मौत के घाट उतार दिया।

कुछ रिवायतों में है कि शाम के लोग इब्ने शासा को बहुत बड़ा पहलवान मानते थे और उनका मानना था कि वह एक हज़ार सवारों से अकेले लड़ता था। इस बात से बात से हज़रत अब्बास की बहादुरी का अंदाज़ा लगाया जा सकता है। यह हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम की बहादुरी की एक छोटी सी झलक देखी थी। हज़रत अब्बास इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के सम्मान में कभी भी उनके आगे नहीं चलते थे। उनके सामने सिर झुका बात करते थे। इमाम हुसैन हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम के भाई थे परंतु उन्होंने कभी भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का नाम नहीं लिया और हमेशा आक़ा व स्वामी कह कर पुकारा।

वह इतना विनम्र थे कि स्वयं को इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम का दास समझते थे और कभी भी भाई नहीं कहा इस प्रकार से कि इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के दिल में बड़ी अभिलाषा थी कि काश हज़रत अब्बास उन्हें एक बार भाई कह दें और इमाम हुसैन अलैहिस्लाम की यह मनोकामना कर्बला के रणक्षेत्र में उस समय पूरी हुई जब हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम अपने जीवन के अंतिम क्षण थे।

इतना ही नहीं हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम ने कभी भी हज़रत ज़ैनब को बहन कह कर नहीं पुकारा और अपने आपको दास ही कहते रहे। हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की छोटी सी सेना और अहलेहरम की जान थे। हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम को कमरे बनी हाशिम अर्थात बनी हाशिम का चांद कहा जाता था। हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम बहादुरी, साहस, शिष्टाचार जैसे सदगुणों के साथ- साथ स्वाभिमानी की प्रतिमूर्ति थे।

आशूर के दिन हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की सेना के कमांडर थे। कूफा के गवर्नर उबैदुल्लाह बिन ज़ियाद की ओर ओर दो बार हज़रत अब्बास के लिए अमान नामा अर्थात सुरक्षा पत्र आया और इन अमान नामों को शिम्र लेकर आया था मगर जनाब अब्बास ने दोनों अमान नामों को रद्द कर दिया और शिम्र से कहा कि तुझ पर और तेरे अमान नामे पर लानत हो। कुछ रिवायतों में है कि नवीं मोहर्रम की रात थी शिम्र ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम साथियों के सामने खड़ा होकर कहा मेरे भांजे कहां हैं? उसके बाद जनाब अब्बास और उनके दूसरे भाई खैमे से बाहर आये और शिम्र से कहा क्या काम है? इस पर शिम्र ने कहा तुम लोग अमान में हो।

इस पर उन लोगों ने कहा अगर तू हमारा मामू है तो तुझ पर और तेरे अमान नामे पर लानते हो। केवल हमारे लिए अमान नामा लेकर आया है और पैग़म्बर के बेटे को छोड़ दिया है जबकि इसी बात को दूसरी तरह भी बयान किया गया है। दूसरी रिवायत में इसी बात को इस प्रकार बयान किया गया है। शिम्र आया और उसने जनाब उम्मुल बनीन के बेटों को आवाज़ दी जब किसी ने भी उसका जवाब नहीं दिया तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने जनाब अब्बास और उनके भाइयों से कहा कि उसका जवाब दो यद्यपि वह भ्रष्ट है वह तुम्हारा मामू है।

इस पर हज़रत अब्बास और उनके भाइयों ने शिम्र से कहा क्या कह रहा है? वह कहता है हे मेरी बहन के बेटों! तुम सब अमान में हो। तुम लोग हुसैन के साथ अपनी जान मत दो और अमीरुल मोमिनीन यज़ीद का अनुसरण करो। उस वक्त हज़रत अब्बास ने कहा हे शिम्र तुझे मौत आ जाये! खुदा तुझ पर और तेरे अमान नामे पर लानत करे।  खुदा के दुश्मन तू हमसे कह रहा है कि दुश्मन का अनुसरण करूं और अपने भाई की मदद से पीछे हट जाऊं?

हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम की बहादुरी के बारे में रिवायतों में मिलता है कि दसवीं मोहर्रम की रात को जब इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के एक निष्ठावान साथी ज़ुहैर बिन क़ैन को पता चला कि शिम्र अमान नामा लेकर आया था तो उन्होंने जनाब अब्बास से कहा कि हे अमीरुल मोमिनीन के बेटे जब आपके पिता विवाह करना चाहते थे तो उन्होंने आपके चाचा अक़ील से कहा था कि उनकी शादी किसी बहादुर खानदान की महिला से करायें ताकि उससे एक बहादुर बेटा पैदा हो जो कर्बला में हुसैन की मदद करे।

रिवायतों में मिलता है कि हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम कई बार मश्कों अर्था छागरों में पानी भरकर अहलेहरम के खैमों में लाये। हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम को सक़्क़ा अर्थात पानी पिलाने वाला भी कहा जाता है और यह उनकी एक उपाधि है। हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम का जन्म पवित्र नगर मदीना में हुआ।

रिवायतों में है कि जब उनका जन्म हुआ तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने अपनी आगोश में लिया और उनका नाम अब्बास रखा और उनके दाहिने कान में अज़ान और बायें कान में इकामत कही और उसके बाद उनके हाथों को चुका और उसके बाद रो पड़े। हज़रत अब्बास की मां हज़रत उम्मूल बनीन ने रोने की वजह पूछी तो हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने कहा अब्बास के दोनों हाथ हुसैन की मदद की राह में अलग किये जायेंगे और ईश्वर दोनों हाथों के बजाये स्वर्ग में उन्हें दो पर प्रदान करेगा।

कितना अजीब संयोग है कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बड़े भाई जनाब जाफर को जाफरे तय्यार कहा जाता है और महान ईश्वर उन्हें भी स्वर्ग में दो पर अता करेगा।

आठवीं हिजरी कमरी में मूता नाम की जंग हुई थी और उस जंग के कमांडर हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बड़े भाई जनाब जाफर बिन अबीतालिब थे। उन्होंने इतनी जंग की कि जंग में उनके दोनों हाथ कलम कर दिये गये पर जनाब जाफर बहुत बहादुर थे दोनों कट जाने के बावजूद उन्होंने अपनी दोनों भुजाओं से अपने सीने में इस्लामी सेना के परचम को उठाये रखा ताकि मुसलमानों का मनोबल बना रहे और वे भयभीत न हों। उसके बाद जनाब जाफर को शहीद कर दिया गया।

जब पैग़म्बरे इस्लाम को जनाब जाफर की शहादत की खबर मिली तो आप बहुत दुःखी हुए और रोकर फरमाया महान ईश्वर ने उनके दोनों हाथों के बदले स्वर्ग में दो पर अता किया है और उसके ज़रिये से वह स्वर्ग में उड़ेंगे। इसी कारण उन्हें जाफरे तय्यार कहा जाता है। जनाब जाफरे तय्यार के दोनों हाथ पैग़म्बरे इस्लाम की मदद में काट दिये गये और कर्बला के मैदान में जनाब अब्बास के दोनों हाथ इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मदद में कलम दिये गये।

पैग़म्बरे इस्लाम ने एक स्थान पर यह कहा था कि हुसैन मुझसे है और मैं हुसैन से हूं। इस बात को समझना बहुत आसान है कि इमाम हुसैन अलैहिस्लाम पैग़म्बरे इस्लाम से हैं यानी उनके प्राणप्रिय नवासे हैं किन्तु पैग़म्बरे इस्लाम की हदीस का जो आखिरी भाग है जिसमें आप ने फरमाया है कि मैं हुसैन से हूं तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने इस्लाम को बचाने के लिए जो महाबलिदान दिया है उसकी जानकारी के बाद पैग़म्बरे इस्लाम के कथन का आखिरी भाग समझ में आता है।

जनाब जाफरे तय्यार ने पैग़म्बरे इस्लाम की मदद में अपनी जान कुर्बान कर दी तो कर्बला के मैदान में इमाम हुसैन अलैहिस्लाम ने अपनी और अपने वफादार साथियों की कुर्बानी देकर इस्लाम को बचा लिया। कर्बला की महाघटना में इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के समस्त साथियों की कुर्बानी अपना एक अलग व विशेष महत्व रखती है मगर कर्बला की अमर व हृदय विदारक घटना में जनाब अब्बास की कुर्बानी अपना एक अलग स्थान रखती है।

कर्बला के मैदान में जब जनाब अब्बास अलैहिस्सलाम घोड़े से नीचे गिरे और उन्होंने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम को आखिरी सलाम किया तो इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने कहा कि अब मेरी कमर टूट गयी। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के इस वाक्य से जनाब अब्बास के मक़ाम को समझा जा सकता है।

इसी प्रकार जनाब अब्बास अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा ने कहा था कि भाई तुम्हारी शहादत के बाद अब वह आखें सोयेंगी जो पहले जागती थीं और अब वह आखें जागेंगी जो पहले सोती थीं। हज़रत ज़ैनब सलामुल्लाह अलैहा के इस जुमले से भलीभांति समझा जा सकता है कि हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम जब तक ज़िन्दा थे तब तक न केवल इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के परिजन बल्कि जो लोग भी इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के काफिले में शामिल थे सबको सुकून था और वे सबकी ढारस थे। यह हज़रत अब्बास अलैहिस्सलाम ही थे जिनकी शहादत के बाद दुश्मन ने इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम की मां का नाम लेकर उन्हें ताना दिया। MM

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