इमाम महदी अपने चाहने वालों से क्या चाहते हैं?
9 रबीउल अव्वल, हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम की इमामत के शुरु होने का दिन है। हज़रत इमाम महदी दुनिया के कमज़ोर और अत्याचार ग्रस्त लोगों की उम्मीदें हैं।
जब वह दुनिया में प्रकट होंगे तो दुनिया को न्याय और इंसाफ़ से भर देंगे जबकि वह अत्याचार और अन्याय से भरी हुई होगी। 15 शाबान को पैग़म्बरे इस्लाम के अंतिम उत्तराधिकारी हज़रत इमाम मेहदी अलै. पैदा हुए थे और जन्म के कुछ वर्षों के बाद से आज तक महान व सर्वसमर्थ ईश्वर के आदेश से लोगों की नज़रों से ओझल हैं और अंतिम समय में महान ईश्वर के आदेश से लोगों के समक्ष प्रकट होंगे और पूरी दुनिया को न्याय व शांति से भर देंगे।
8 रबीउल अव्वल 260 हिजरी को 11वें इमाम हज़रत हसन असकरी (अ) की शहादत के बाद उनके बेटे हज़रत मेहदी इमामत के दर्जे पर आसीन हुए। भारतीय उपमहाद्वीप में शिया मुसलमानों के लिए 8 रबीउल अव्वल की तारीख़ मोहर्रम से शुरू हुए सोग की आख़िरी तारीख़ होती है और लोग 9 रबीउल अव्वल को जश्न मनाते हैं।
इमामे ज़माना इमाम मेहदी अपने पिता की नमाज़े जनाज़ा पढ़ाने के बाद, लोगों की आंखों से ओझल हो गए थे, जिसे ग़ैबते सुग़रा कहा जाता है। 260 हिजरी से शुरू होने वाली ग़ैबते सुग़रा 329 हिजरी तक जारी रही। इस दौरान इमाम मेहदी अपने चार विशेष प्रतिनिधियों के माध्यम से लोगों के संपर्क में रहे। उसके बाद ग़ैबते कुबरा यानी लम्बी अवधि के लिए लोगों की आंखों से ओझल होने का दौर शुरू हुआ, जो आज तक जारी है और ईश्वर जब चाहेगा दुनिया वालों को मुक्ति प्रदान करने के लिए उन्हें फिर से इसी दुनिया में प्रकट करेगा।
अब्बासी ख़लीफ़ा, इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की इमामत के काल में भी, इमाम महदी को तलाश करने और उनके उतराधिकारी के रूप में उनके बेटे हज़रत इमाम महदी को शहीद करने के प्रयास में थे, यही कारण है कि इमाम महदी अलैहिस्लाम का जन्म लोगों से गुप्त रखा गया और इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के कुछ ख़ास लोगों के अलावा किसी को भी इसके बारे में पता नहीं था। यही वजह है कि इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम की शहादत के बाद कुछ शीया मुसलमान शंका का शिकार हो गये और शीया समाज में कुछ नये पंथ अस्तित्व में आ गये, यहां तक कि कुछ लोग हज़रत इमाम महदी अलैहिस्सलाम के चाचा जाफ़र कज़्ज़ाब का अनुसरण करने लगे लेकिन ईश्वर का कुछ और ही इरादा था और हज़रत इमाम महदी ने अपने पिता की नमाज़े जनाज़ा पढ़ी और यहीं से जाफ़र कज़्ज़ाब की इमामत का झूठा दावा ख़ारिज हो गया।
महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्लाम महान ईश्वर के अंतिम प्रतिनिधि हैं। 15 शाबान 255 हिजरी कमरी को उनका जन्म हुआ था। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम आपके पिता हैं। किसी को भी उनके पैदा होने की सूचना नहीं थी परंतु उनके पिता यानी इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम को यह बात ज्ञात थी। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने महान ईश्वर का शुक्र अदा किया और कहा कि खुदा का शुक्र है कि उसने मुझे दुनिया से नहीं उठाया मगर यह कि अपने प्रतिनिधि को मुझे दिखा दिया जो सीरत और सूरत में सबसे अधिक पैग़म्बरे इस्लाम से मिलता- जुलता है। ईश्वर लोगों की नज़रों से ओझल होने के काल में उसकी रक्षा करेगा और उसके बाद उसे प्रकट करेगा और जिस तरह से दुनिया में अत्याचार व भ्रष्टाचार व्याप्त होगा उसी तरह वह उसे न्याय से भर देगा।
समय के अत्याचारी अब्बासी शासकों ने रिवायतों के माध्यम से इस बात को सुन रखा था कि महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्लाम के प्रकट होने के बाद अत्याचार और अत्याचारियों का सफाया जा जायेगा। इन अत्याचारी शासकों ने यह भी सुन रखा था कि महामुक्तिदाता इमाम महदी इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के बेटे होंगे इसलिए उन्होंने इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम पर कड़ी निगरानी रखी और इस बात की पूरी कोशिश की कि इमाम महदी अलैहिस्सलाम पैदा ही न होने पायें।
अब्बासी शासकों ने इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम के घर को सैनिक छावनी के बीच में करार दिया और इमाम के घर में आना- जाना बिल्कुल न के बराबर था परंतु महान व सर्वशक्तिमान ईश्वर जब किसी चीज़ का इरादा कर लेता है तो पूरी दुनिया मिलकर भी उस चीज़ को होने से नहीं रोक सकती। अब्बासी शासक और उनके कारिन्दों को महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्लाम के जन्म की भनक भी न लगी। उसकी एक बहुत बड़ी वजह यह थी जब महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्लाम अपनी माता के गर्भ में थे तो गर्भ का लेशमात्र भी चिन्ह दिखाई नहीं दिया। इसलिए दुश्मन निश्चिंत थे और उनका ध्यान ही उधर नहीं गया कि इमाम महदी अलैहिस्सलाम दुनिया में आने वाले हैं।
महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्लाम बहुत ही कम समय तक अपने पिता की छत्रछाया में थे। इमाम हसन अस्करी अलैहिस्सलाम ने इस दौरान अपने बहुत ही विश्वस्त और भरोसेमंद लोगों को महामुक्ति इमाम महदी अलैहिस्सलाम का परिचय कराया और उन्हें उज्जवल व प्रकाशमयी भविष्य की सूचना दी। जब इमाम हसन अलैहिस्सलाम शहीद हुए तो उस वक्त महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्लाम की उम्र मात्र 5 साल थी। उसी समय से उनकी इमामत का काल आरंभ हो गया। जिस कारण दुश्मनों और अब्बासी शासकों ने महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्लाम के जन्म का पता नहीं चला उसी कारण वह बहुत शीघ्र लोगों की नज़रों से ओझल हो गये। इस प्रकार से कि अपने कुछ विशेष प्रतिनिधियों के माध्यम से इमाम लोगों से संपर्क में थे और लोगों के प्रश्नों का जवाब देते थे।
जब इमाम लोगों की नज़रों से ओझल हुए तो कुछ समय के लिए वह अपने विशेष चार प्रतिनिधियों के माध्यम से लोगों से संपर्क में थे और इस समय को ग़ैबते सुग्रा कहा जाता है और उसके बाद इमाम पूरी तरह लोगों की नज़रों से ओझल हो गये और अब कोई भी उनके संपर्क नहीं है और इस काल को ग़ैबते कुब्रा कहा जाता है और अब लोग वरिष्ठतम धर्मशास्त्री के आदेशों और उसके फत्वों पर अमल कर रहे हैं। रिवायतों में है कि 69 वर्षों तक ग़ैबते सुग़्रा का काल चला और उसके बाद ग़ैबते कुब्रा का काल आरंभ हुआ जो अब तक चल रहा है और यह ज्ञात नहीं है कि यह काल अभी कितने और दिनों या सालों तक चलेगा।
इस्हाक़ बिन याक़ूब के सवालों के जवाब में इमाम महदी अलैहिस्सलाम के हवाले से रिवायत में मिलता है कि किस तरह से लोग ग़ैबते कुब्रा के काल में इमाम महदी अलैहिस्सलाम से लाभ उठा सकते हैं। इमाम महदी अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि मेरी ग़ैबत के काल में मुझसे फ़ायदा उसी तरह उठाया जा सकता है जैसे सूरज से फ़ायदा उठाया जाता है जब वह बादलों के पीछे होता है। इस हदीस के अनुसार जिस तरह से बादल पूरी तरह से सूज को नहीं छिपा सकता और सूरज की रोशनी ज़मीन और पृथ्वीवासियों तक पहुंचती है, इसीलिए जिस तरह से लोग हर क्षण बादलों के पीछे से सूरज के निकलने की उम्मीद करत हैं ताकि उसके पूरे वजूद से पूरी तरह से लाभ उठा सकें इसीलिए तरह इमाम महदी अलैहिस्सलाम की ग़ैबत के काल में भी लोग उनके प्रकट होने की उम्मीद लगाए हुए हैं और उनके प्रकट होने से निराश नहीं हुए हैं।
निसंदेह इमाम महदी अलैहिस्सलाम के ग़ैबते कुब्रा का काल, जनता के इम्तेहान का सबसे कठिन काल है और आख़िरी काल में पैदा होने वाले फ़ित्ने और फ़साद से लोग घिरे हुए हैं। इस काल में इंसान असमंजस का शिकार हो जाता है और उसके लिए सत्य और असत्य के बीच पहचान करना मुश्किल हो जाता है। इंसान इस कठिन काल में ईश्वर की मुख्य शिक्षाओं की ओर अनदेखी करने की वजह से गुमराह हो जाता है लेकिन इमाम महदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने का इंतेज़ार करके और पवित्र क़ुरआन और पैग़म्बरे इस्लाम व उनके परिजनों की शिक्षाओं पर अमल करके इमाम महदी के प्रकट होने की भूमि प्रशस्त करने की कोशिश कर सकता है।
वास्तव में महामुक्तिदाता इमाम महदी अलैहिस्सलाम का ज़ुहूर समस्त खूबियों व अच्छाइयों का प्रकट होना है। उस समय समाज में व्याप्त बुराइयां खत्म हो जायेंगी। उस समय ईश्वरीय धर्म इस्लाम के अलावा दूसरे धर्मों में जो कमियां होंगी वे पहले से अधिक स्पष्ट हो जायेंगी और इस्लाम की अच्छाइयां सब पर स्पष्ट हो जायेंगी। दूसरे शब्दों में समस्त लोगों की जीवन शैली एक हो जायेगी, समस्त लोग ईश्वरीय धर्म इस्लाम के अनुयाइ हो जायेंगे। समस्त लोग महान ईश्वर की उपासना करेंगे। कोई भी ग़ैर इस्लाम धर्म का अनुयाई नहीं होगा। मूर्तिपूजा का नामो व निशान नहीं होगा।
वह मुसलमान जो इमाम महदी अलैहिस्सलाम के प्रकट होने की प्रतिक्षा कर रहे हैं, इमाम महदी के काल में उनके कंधों पर बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी है। हर मुसलमान इंतेज़ार करने वाले पर सबसे पहली और सबसे अहम ज़िम्मेदारी, इमाम महदी अलैहिस्सलाम के पवित्र अस्तित्व के बारे में जानकारी और पहचान हासिल करना है। यह विषय इतना ज़्यादा महत्वपूर्ण है कि इमामों के हवाले से रिवायत बयान की गयी है कि जो कोई मर जाए और उसे अपने ज़माने के इमाम की पहचान न हो तो उसकी मौत अज्ञानता की मौत होगी।
इंतेज़ार करने वाले मुसलमानों पर दूसरी अहम ज़िम्मेदारी, ख़ुद को बेहतरीन शिष्टाचार और नैतिकता से सुसज्जित करना और बुराई से दूर रहना है। इमाम महदी अलैहिस्सलाम ने भी अपने चाहने वालों से अपने ग़ैबत के काल में अच्छे काम अंजाम देने और बुरे कामों से बचने की अपील की है। इमाम महदी अलैहिस्सलाम कहते है कि तुम में से हर एक वह काम अंजाम दे जो मुझसे दोस्ती और मुहब्बत का कारण बने और हर उस काम से दूर रहे जिससे मैं नाराज़ हूं यानी वह काम अंजाम दे जिससे इमाम ख़ुश हों और वह काम अंजाम न दे जिससे इमाम नाराज़ हों।
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