ईद पर विशेष कार्यक्रम (१)
ईद का नाम सुनते ही मन में खुशियों की कल्पना होती है और निश्चित रूप से ईद में खुशी ही मनायी जाती है।
पूरी दुनिया के मुसलमान, इस्लामी कैलेंडर के रमज़ान के महीने में रोज़ा रखते हैं और एक महीना रोज़ा रखने के बाद जब अगला महीना यानी शव्वाल आता है तो उसकी पहली तारीख को इस बात पर खुशी मनाते हैं कि उन्होंने पूरा एक महीना ईश्वर के आदेश का पालन करते हुए गुज़ारा।
ईद के दिन इस लिए भी खुशी मनायी जाती है क्योंकि इस दिन के इतना इन्सान शायद ही साल के किसी और दिन पवित्र होता हो। एक महीने तक दिनों को भूखा प्यासा रहने के कारण, शरीर पवित्र होता और उसके साथ ही उपासना और ईश्वर को याद करने तथा शरीर की पवित्रता के कारण आत्मा भी धुल जाती है और मनुष्य खुद को हल्का महसूस करता है इसी लिए इस दिन इन्सान को खुशी मिलती है।
आज के दिन हर चीज़ ईश्वर के रंग में रंग जाती है और इंसान ईश्वर के साथ राज़ और नियाज़ करता है, इसलिए कि आज के दिन किसी भी समय से अधिक बदों पर ईश्वरीय अनुकंपा नाज़िल होती है। लोग इस अवसर से लाभ उठाकर अपने मेहरबान ईश्वर की निकटता प्राप्त करते हैं और बंदगी के रास्ते का चयन करते हैं।
ईदुल फ़ित्र एक ऐसा दिन है कि जिसका अनुभव मोमिन और मुसलमान अपने जीवन में अनेक बार कर चुके होते हैं। एक महीना इबादत में गुज़ारने और भौतिक बंधनों से छुटकारा पाने के बाद, प्राप्त होने वाली आंतरिक प्रसन्नता इतनी आनंदनीय होती है कि मानो परलोक में मोमिनों को दी गई शुभ सूचनाओं में से किसी एक का वे आनंद ले रहे हों।
ईदुल फ़ित्र एक अच्छा आध्यात्मिक अनुभव है। ख़ुशियों का यह दिन एक ओर मोमिनों को एक महीने तक ईश्वर का मेहमान बनने की प्रसन्नता प्रदान करता है, दूसरी ओर ईश्वरीय प्रसन्नता की अनुभूति कराता है।
प्रसिद्ध सूफ़ी मलेकी तबरेज़ी ईदुल फ़ित्र के बारे में कहते हैं, ईदुल फ़ित्र ऐसा दिन है जिसे ईश्वर ने अन्य दिनों के बीच से चुना है और इसे अपने बंदों को उपहार देने और इनाम देने के लिए विशेष किया है और उन्हें अनुमति दी है कि इस दिन वे उसके समक्ष इकट्ठे हों और उसकी कृपा के दस्तरख़्वान पर बैठें और बंदगी का नियम पूरा करें, उसकी ओर आशा भरी आँखों से देखें और अपनी ग़लतियों के लिए माफ़ी मांगें, अपनी ज़रूरतों को उसके सामने बयान करें और अपनी इच्छाओं को पूरा करने की दुआ करें, उसने भी उनसे वादा किया है कि जो भी ज़रूरत बयान करेंगे वह उसे पूरा करेगा और जिसकी वह इच्छा कर रहे हैं उससे ज़्यादा उन्हें प्रदान करेगा और अपनी कृपा और बंदा परवरी से उनकी बिगड़ी बनाएगा, जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी।
इस्लामी संस्कृति में ईदुल फ़ित्र का बहुत अधिक महत्व है। इस्लाम के समस्त मत इस महत्व को औपचारिचकता प्रदान करते हैं। यही कारण है कि इस्लामी देशों में इस दिन विभिन्न प्रकार की परम्पराओं का प्रचलन है। इस शुभ अवसर पर हर देश में विशेष समारोह आयोजित किए जाते हैं और मुसलमान इस धार्मिक जश्न में हमेशा बढ़चढ़कर भाग लेते हैं।
रमज़ान का महीना गुज़र जाने के बाद डेढ़ अरब मुसलमान ईद मनाते हैं। ईरानी भी रमज़ान के आध्यात्मिक महीने को श्रद्धा के साथ विदा करते हैं। ईदे फ़ित्र की नमाज़ वैसे तो वाजिब नमाज़ नहीं मुसतहेब नमाज़ है लेकिन सुरज की पहली किरणों के निकलते ही मुसलमान नहा धोकर साफ़ सुथरे कपड़ों में नमाज़े ईद के लिए एकत्रित हो जाते हैं। नमाज़े ईद में क़ुनूत के रूप में पढ़ी जाने वाली दुआ में बंदे कहते हैं।
हे पालनहार इस दिन का वास्ता जिसे तूने मुसलमानों के लिए ईद और हज़रत मोहम्मद तथा उनके परिजनों के लिए पूंजी, महानता और श्रेष्ठता का आधार निर्धारित किया है, तुझसे हम प्रार्थना करते हैं कि हज़रत मुहम्मद और उनके ख़ानदान पर रहमत नाज़िल कर और मुझे उन सभी भलाइयों में शामिल कर जिनमें तूने हज़रत मुहम्मद और उनके ख़ानदान को शामिल किया है और उन सभी बुराइयों से हमें दूर रख जिनसे हज़रत मुहम्मद और उनके ख़ानदान को दूर रखा है।
नमाज़े ईद अदा करने के बाद मुसलमान एक दूसरे से मिलने जाते हैं तथा बंदगी के जश्न की एक दूसरे को मुबारकबाद देते हैं। ईद का दिन मुसलमानों की महान एकता की झलक दिखाता है। उस एकता की झलक जो शत्रुओं को निराश करने वाली और शैतानी ताक़तों को अपमानित करने वाली है।
यूरोप के महान विचारक सर थामस आर्नोल्ड ने इस्लाम का आमंत्रण नामक अपनी पुस्तक में लिखा है कि इस सुनियोजित और सुव्यवस्थित ढंग से मुसलमानों की जमाअत के साथ नमाज़ महान ईश्वर की उपासना जो मुसलमानों को दूसरों से महान बनाती है। जब इंसान देखता है कि हज़ारों लोग दिल्ली की जामा मस्जिद में, रमज़ान महीने के अंतिम जुमे में और ईद के दिन नमाज़ के लिए खड़े होते हैं और ईश्वर की बंदगी में डूब जाते हैं तो यह महान इस्लामी कृत्य का प्रदर्शन होता है।
इस अवसर पर यह संभव नहीं है कि कोई इस नमाज़ को देखे और मोहित न हो जाए। अज़ान की आवाज़ लोगों की मानो कायापलट कर देती है। अज़ान लोगों को नमाज़ के लिए उठ खड़े होने की दावत देती है। इन अवसरों पर ईमान तथा इबादत का वैभव झलकता है तथा इंसान मुसलमानों की आंखों में निष्ठा और अध्यात्म की चमक देखता है और प्रभावित हुए बिना नहीं रहता।
पवित्र रमज़ान के अंत में और ईदे फ़ित्र से पहले मुसलमानों का एक दायित्व यह है कि वह कुछ पैसे ज़कात के रूप में निकालें। अर्थात सामान्य रूप से जो अनाज वह प्रयोग करता है जैसे गेंहू, चावल या जौ इत्यादि उसके साढ़े तीन किलो का मूल्य वह ज़कात के रूप में निकाले। ज़काते फ़ितरा या वह ज़कात जो रमज़ान के अंत में और ईद से पहले निकाला जाता है, इस्लामी समाज से निर्धनता को दूर करने, आर्थिक विकास तथा समाजिक समस्याओं को दूर करने का मूल्यवान कारक है। इसके अतिरिक्त निर्धनों की सहायता के साथ साथ इस्लाम धर्में में वे स्थान भी बयान किए गये हैं जहां पर ज़कात ख़र्च किया जा सकता है। उदाहरण स्वरूप मुसलमानों के कल्याण, उनकी चिकित्सा और सांस्कृतिक सहायता तथा उनकी अनेक प्रकार की सहायता के लिए फ़ितरे का पैसा लगा सकते हैं। ज़काते फ़ितरा से वास्तविक ऋणि लोगों का क़र्ज़ अदा किया जा सकता है। मस्जिदों, स्कूलों, मदरसों, पुलों तथा अस्पतालों के निर्माण और मुसलमानों की आवश्यकता पूरी करने के लिए इस सार्वजनिक बजट का प्रयोग किया जा सकता है।
एक धार्मिक विशेषज्ञ कहते हैं कि इस्लाम एक सामाजिक धर्म है जिसमें मनुष्य के जीवन के विभिन्न आयामों पर ध्यान दिया गया है और निर्धनों की सहायता पर विशेष रूप से ध्यान दिया गया है। मौलाना जाफ़र रेहानी कहते हैं कि ईदे फ़ित्र की समस्त अनुकंपाओं के साथ इस दिन को निर्धनों का दिन भी कहा जाना चाहिए क्योंकि ईश्वर अपने उन बंदों को जिन्होंने रमज़ान में रोज़े रखे, यह समझाना चाहता है कि रमज़ान के महीने में एक दूसरे से समन्वित रहे और ग़रीब व अमीर सभी एक साथ रोज़े रखे, भूख प्यास का कष्ट उठाया, इस महीने के बाद भी अपने समन्वय को जारी रखो, जो लोग निर्धन नहीं हैं वह कुछ पैसों के माध्यम से निर्धन लोगों की सहायता करें।
हज़रत इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम ईदे फ़ित्र के दिन को मुसलमानों के एक दूसरे से ख़ुश होने, एक दूसरे के साथ उठने बैठने और एक दूसरे की सहायता करने का दिन बताते हैं। वे कहते हैं कि हे मेरे पालनहार, हम तेरी ओर पलट रहे हैं, हमारे ईद के दिन को जिसे तूने ईमान वालों के लिए ईद और ख़ुशी का दिन बनाया है, अपने राष्ट्र के लिए सामाजिक व सहयोग का दिन बना।
पवित्र रमज़ान में रोज़े रखने वाले और इस पवित्र महीने में खाने पीने और इसी प्रकार बहुत सी वैध चीज़ों से भी दूर रहने वाले मुसलमान, ईद के दिन अपने ईश्वर से अपना पारितोषिक मांगते हैं, जैसा कि हज़रत अली अलैहिस्सलाम ईद के एक ख़ुतबे में कहते हैं हे लोगो! यह वह दिन है जिस दिन भलाई करने वालों को इनाम मिलता है और पाप करने वाले इस दिन निराश होते है और यह दिन इस लिहाज़ से क़यामत से बहुत मिलता जुलता है तो ईद की नमाज़ के लिए अपने घरों से निकल कर, क़यामत के दिन, अपनी क़ब्रों से निकलने को याद करो और ईद की नमाज़ के लिए खड़े होकर, अपने रब के सामने हिसाब के लिए खड़े होने को याद करो और फिर अपने घरों को वापसी के समय, जन्नत में अपने ठिकाने की ओर जाने की कल्पना करो। हे ईश्वर के दासो! रोज़ा रखने वाली महिलाओं और पुरुषों को दी जाने वाली सब से कम चीज़ यह है कि फरिश्ते रमज़ान के आखिरी दिन उन्हें पुकारते और कहते हैं हे ईश्वर के दासो! तुम्हारे पिछले पाप माफ कर दिये गये इस लिए अब आगे की सोचो कि अपनी आयु के बचे हुए दिन कैसे गुज़ारने हैं।
वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने ईद के महत्व के बारे में कहा है कि ईश्वर ने इस पवित्र महीने के कार्यक्रम कुछ इस प्रकार रखे हैं ताकि वह जल्दी से ख़त्म न हों। उपासना से विशेष इस महीने के आखिर में एक एसा दिन रखा है जिसे ईद कहा जाता है और जो एकत्रित होने का दिन है, यह बहुत बड़ा दिन है।
मुसलमान एक दूसरे को बधाई देते हैं, रमज़ान की सफलताओं का महत्व समझते हैं। अपना हिसाब करते हैं और इस महीने में हाथ आने वाली उपलब्धियों की सुरक्षा करते हैं। इस दिन को ईद फित्र कहते हैं । ईद का दिन तो है लेकिन यह भी ईश्वर को याद करने और उसकी उपासना करने का दिन है। इस दिन की क़द्र करें।