ईदुल फ़ित्र, बंदगी का जश्न-2
तकबीर रोज़े ईद
ईश्वर इससे कहीं अधिक महान है कि उसका शब्दों में बयान किया जाए, अनन्य ईश्वर के अलावा कोई पूज्य नहीं है। ईश्वर इससे अधिक महान है कि उसकी विशेषताओं को बयान किया जा सके। प्रशंसा और आभार उस ईश्वर के लिए जो हर कमी से पवित्र है। वह महान हस्ती जो हमें सही रास्ता दिखाती है। उसका शुक्र उन चीज़ों पर जो उसने हमें प्रदान कीं। एक महीने की इबादत के बाद आने वाले ईद के दिन यह वाक्य मुसलमानों की ज़बान से बुलंद होते हैं। इसमें ईश्वर की महानता का उल्लेख है और साथ ही ईश्वर की ओर से दी गई दावत में शामिल होने पर आभार की प्रस्तुति भी है।
ईदे फ़ित्र एसे लोगों का जश्न है जिन्होंने बंदगी का पहला चरण सफलता के साथ पूरा कर लिया है और उन्हें आशा है कि रमज़ान के महीने में उन्होंने जो आध्यात्मिक पूंजी एकत्रित की है वह बंदगी के रास्ते पर आगे बढ़ते हुए ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने में मदद करेगी। ईदुल फ़ित्र उन बंदों की ईद है जिन्होंने रमज़ान के पवित्र महीने में अपने संघर्ष और सहनशीलता से अपनी आत्मा को विदित और निहित प्रदूषणों से पवित्र किया और फिर सत्य के प्रकाश की ओर चल पड़े हैं। ईदे फ़ित्र के दिन मानो उनका नया जन्म हुआ है। एक महीने के अभ्यास के बाद रोज़ादार की आंखें अब लक्ष्यहीन होकर ईधर उधर भटक नहीं रही हैं बल्कि उसके आंखों की ज्योति सत्य के दर्शन और उसकी पहचान का माध्यम बन गई है। उसके कान अब हर आवाज़ पर केन्द्रित होने के बजाए केवल सत्य सुनने के लिए तैयार हैं। उसकी ज़बान ने निर्रथक बातें बिल्कुल बंद कर दी हैं और सत्य के अलावा उससे कुछ और नहीं निकल रहा है। वास्तव में उन्होंने एक महीना इबादत में बसर करने के बाद अपनी क्षमताओं को समझा है तथा महान लक्ष्यों की ओर अग्रसर हो गए हैं।
इस महान दिन लोग अपने घरों से निकलकर खुले आसमान के नीचे जाते हैं और पवित्र धरती की गोद में खड़े होकर नमाज़ अदा करते हैं। हर नमाज़ में एक विशेष दुआ पढ़ी जाती है जिसे क़ुनूत कहा जाता है। ईद की नमाज़ में यह क़ुनूत बार बार दोहराया जाता है ताकि जिन चीज़ों की दुआ मांगी जा रही है वह मन मस्तिष्क की गहराई तक उतर जाए। नमाज़ के बाद इमाम ख़ुतबा देता है जिसमें ज़िम्मेदारियों का उल्लेख किया जाता है और विचारों को अधिक सतर्क किया जाता है कि वह उत्थान के रास्ते पर आगे बढ़ सकें। एक रोचक बिंदु यह है कि ख़ुतबा देते समय इमाम अपने हाथ में हथियार लेकर खड़ा होता है। इस तरह ईद की नमाज़ से यह संदेश मिलता है कि धर्म व ईमान और ज्ञान व प्रशिक्षण के साथ ही समकालीन हथियारों का भी सहारा लेना चाहिए।
इमाम के लिए पवित्र और सदाचारी होने के साथ ही बहादुर और साहसी होना भी ज़रूरी है ताकि अपने पैग़म्बर की भांति वह भी नमाज़ और मस्जिद में भी और संघर्ष के मैदान में भी एक सशक्त और अग्रिणी व्यक्ति नज़र आए। ख़ुतबे ख़त्म हो जाने के बाद लोग एक दूसरे से गले मिलते हैं, एक दूसरे को ईद की बधाइयां देते हैं और इस तरह अपनी दोस्ती को मज़बूत बनाते हैं। यह सुंदर संस्कार वास्तव में मोमिन बंदों की एकता व एकजुटता का दर्पण है।
ईदे फ़ित्र को उपहार का दिन भी कहा जाता है। इस्लामी रवायतों में आया है कि ईश्वर ने ईद के दिन का चयन किया है ताकि इस दिन अपने बंदों को उपहार बांटे और लोग ईश्वर की ओर से दिए जाने वाले उपहार लेने के लिए एकत्रित हों। ईश्वर ने रमज़ान के महीने को ईश्वर का सामिप्य प्राप्त करने का लघु रास्ता बताया है। इस महीने में रोज़ेदार की सांसें ईश्वर का गुणगान, उनकी नींद उपासना बन जाती है और दुआएं क़ुबूल होती हैं। इस महीने में रोज़ेदार ईश्वर की बंदगी करते हैं, अपने गुनाहों से तौबा करते हैं और ईश्वर की सेवा में उपस्थित होते हैं। ईश्वर सभी दुआओं को क़ुबूल करता है और उन्हें उनकी आशा से बढ़कर देता है। इसी लिए इस महीने में जिन लोगों को रोज़ा रखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है वह इस दिन ईश्वर से उपहार पाते हैं। जिन लोगों ने नरक की आग से मुक्ति पाने की नीयत से रोज़े रखे हैं उन्हें आग से मुक्ति मिल जाती है। जिन लोगों ने जन्नत पाने के लिए रोज़ा रखा है उन्हें ईश्वर के फ़रिश्तों की ओर से बहिश्त के रूप में इनाम मिलता है।
जिन लोगों ने ईश्वर के प्रेम में रोज़ा रखा है और भूख प्यास की पीड़ा सहन की है उन्हें ईश्वर की ओर से विशेष उपहार मिलता है। यह वह लोग हैं जिन्हें ईश्वर की दावत के तुफ़ैल में भूख और प्यास की तकलीफ़ से मुक्ति प्राप्त हो गई है। उन लोगों ने ईश्वर की दावत स्वीकार करते हुए अपनी निश्चेतना तोड़ने का इरादा किया है। ईश्वर उनके कर्मों को स्वीकार करता है तथा उन्हें अपना सामिप्य प्रदान करता है और उन्हें अपने मित्रों वाला स्थान देता है तथा उन्हें मनमोहक पेय से तृप्त करता है। वह ज्योति, हर्ष और उल्लास में उस महान स्थान पर पहुंच जाती है जिसके बारे में न किसी कान ने सुना होगा और न किसी आंख ने देखा होगा।
ईद से पहले वाली रात भी बहुत महान रात है। इसी लिए पैगम्बरे इस्लाम के पौत्र हज़रत इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम ने कहा है कि यह रात क़द्र की रात से कम नहीं है। अतः हौसले बुलंद रखो ताकि अधिक उपहार प्राप्त कर सको। यह बड़ी रोचक बात है कि रमज़ान महीने की अंतिम रात में इमाम ज़ैनुल आबेदीन अलैहिस्सलाम अपने सभी सेवकों और सेविकाओं को एकत्रित करते थे और फिर उस डायरी को जिसमें उनकी ग़लतियां लिखी रहती थीं पढ़कर सुनाते थे और उनसे ग़लती स्वीकार करवाते थे। वह हर दास को बताते थे कि तुमने फ़ुलां दिन ग़लती थी और मैंने कुछ नहीं कहा था। क्या तुम्हें याद है। वह जबाद देता कि जी हां मुझे याद है।
जब सारे लोग अपनी ग़लितियां मान लेते तो फिर इमाम उनसे कहते थे कि ऊंची आवाज़ में कहो कि हे अली तुम्हारा पालनहार तुम्हारे हर कृत्य को जानता है। जबकि आप हमारे कर्मों को जानते हैं। ईश्वर सभी कर्मों का ज्ञान रखता है। इंसान ने जो कुछ किया है वह ईश्वर के सामने मौजूद है और हम अपने कर्म अपनी आंख से देखेंगे। तो हे ईश्वर तू हमें क्षमा कर दे उस तरह जिस तरह क्षमा करना तुझे पसंद है।
इमाम ज़ैनुल आबेदीन यह प्रार्थना करते थे और सारे सेवक सेविकाएं उसे दोहराते थे। इसके बाद इमाम ज़ैनुल आबेदीन ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। हे पालनहार तूने हमसे कहा कि हमारे ऊपर जिसने अत्याचार किया है उसे माफ़ कर दें जबकि हमने तो खुद ही अपने ऊपर अत्याचार किया है। जिस तरह तूने कहा है कि हम अपने ऊपर अत्याचार करने वाले को क्षमा कर दें उसी तरह तू हमें माफ़ कर दे कि तू माफ़ करने में हमसे और कारिंदों से श्रेष्ठ है। तूने हमसे कहा कि मांगने वाले को ख़ाली हाथ न लौटाएं आज मैं खुद भिखारी बनकर तेरी सेवा में आया हूं और तूझसे उपकार की विनती कर रहा हूं। हम पर उपकार कर, हमें वंचित न कर हे उपकारी व दानी।
इसके बाद इमाम ज़ैनुल आबेदीन अपने सेवक और सेविकाओं से कहते थे मैंने तुम्हें क्षमा कर दिया क्या तुम मेरे कुप्रबंधन को माफ़ करोगे। मैं बुरा मालिक और महान, दानी, न्याय व श्रेष्ठ हस्ती का बंदा हूं। इसके बाद वह सब एक आवाज़ होकर कहते हे पालनहार अली इब्दुन हुसैन को क्षमा कर दे जिस तरह उन्होंने हमें क्षमा कर दिया। हे ईश्वर तू उन्हें नरक की आग से मुक्ति दे दे जिस तरह उन्होंने हमें आज़ाद कर दिया। वह दुआ करते थे और इमाम सज्जाद अलैहिस्सलाम आमीन कहते थे। इसके बाद वह कहते जाओ मैंने तुम्हें माफ़ किया और तुम्हें आज़ाद कर दिया है इस आशा के साथ कि ईश्वर भी मुझे क्षमा कर दे।
ईद का दिन बंदगी के जश्न का दिन होने के साथ ही मानवता के मोक्षदाता हज़रत इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम को याद करने का भी दिन है। इस दिन दुनिया भर में हज़रत इमाम ज़माना अलैहिस्सलाम के प्रकट होने की दुआ की जाती है। इस दिन मुसलमान दुनिया में फैले अत्याचार की शिकायत ईश्वर से करते हैं विशेषकर आज के हालात में जब ग़ज़्जा, यमन, बहरैन, सीरिया, नाईजेरिया और इराक़ आदि देशों में जारी जनसंहार पर पूरी मानवता दुखी है। केवल इमाम ज़माना के प्रकट होने से ही अत्याचार और बुराइयों का समूल अंत होगा तथा दुख ख़ुशियों में बदल जाएंगे।
तो आईए हम सब मिलकर दुआ करते हैं कि हे इंसाफ़ मांगने वालों को इंसाफ़ दिलाने वाले अपने पीड़ित बंदों की मदद कर। हे सबसे दयालु! हमारे इमाम को भेज और उनकी मदद से अत्याचार और अन्याय तथा नास्तिकों के वर्चस्व का अंत कर। धरती को न्याय और अच्छाइयों से भर दे। सत्य का बोलबाला कर दे और असत्य को मिटा दे। उस वादे को पूरा करने में जल्दी कर जो तूने भले लोगों से किया है।