आज़ाद भारत की ग़ुलाम पुलिस, दिल्ली दंगा जांच ‘संवेदनाहीन और हास्यास्पद’ क़रार
भारत की राजधानी दिल्ली दंगा मामले में जांच को ‘संवेदनाहीन और हास्यास्पद’ क़रार देते हुए अदालत ने दिल्ली पुलिस पर 25 हज़ार रुपये का जुर्माना लगाया है।
दिल्ली पुलिस ने मजिस्ट्रेट अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें दंगों के दौरान गोली लगने से अपनी एक आंख गंवाने वाले मोहम्मद नासिर नामक पीड़ित व्यक्ति की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया गया था। अदालत ने पुलिस को फटकारते हुए कहा कि वह अपना संवैधानिक दायित्व निभाने में बुरी तरह से विफल रही है। जांचकर्ताओं ने कहा कि अलग से प्राथमिकी दर्ज करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि पुलिस ने पूर्व में ही प्राथमिकी दर्ज कर ली थी और कथित तौर पर गोली मारने वाले लोगों के ख़िलाफ़ कोई सुबूत नहीं हैं क्योंकि घटना के समय वे दिल्ली में नहीं थे। न्यायाधीश ने पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा कि जांच प्रभावशाली और निष्पक्ष नहीं है क्योंकि यह ‘बहुत ही लापरवाह, संवेदनाहीन तथा हास्यास्पद’ तरीक़े से की गई है। अदालत ने 13 जुलाई के अपने आदेश में कहा कि इस आदेश की एक प्रति दिल्ली पुलिस आयुक्त को भेजी गई है ताकि मामले में जांच और निरीक्षण के स्तर को संज्ञान में लाया जा सके और उचित कार्यवाही की जा सके।
न्यायाधीश ने कहा कि मोहम्मद नासिर अपनी शिकायत के संबंध में प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए क़ानून के अनुरूप अपने पास उपलब्ध उपाय का सहारा लेने को स्वतंत्र है। नासिर ने अपनी शिकायत में कहा था कि दिल्ली दंगे के दौरान नरेश त्यागी नामक व्यक्ति ने उन पर फायरिंग की थी, जिसके चलते एक गोली उनके आंख में लगी थी। बाद में उन्हें जीटीबी आस्पताल ले जाया गया, जहां ऑपरेशन करने के बाद 20 मार्च 2020 को डिस्चार्ज किया गया था। उन्होंने 19 मार्च को भजनपुरा के एसएचओ को दिए गए अपने शिकायतपत्र में आरोप लगाया था कि नरेश त्यागी, सुभाष त्यागी, उत्तम त्यागी, सुशील, नरेश गौर एवं अन्य मामले में आरोपी हैं। हालांकि पुलिस ने इस संबंध में कोई एफ़आईआर दर्ज नहीं की। पुलिस के इस रवैये से निराश होकर नासिर ने मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कोर्ट का रुख़ किया और अपने मामले में एफ़आईआर दर्ज करने की मांग की है। इस संबंध में कई राजनैतिक टीकाकारों और क़ानून के जानकारों का मानना है कि अगर दिल्ली दंगे की सही से जांच हो जाए तो इसमें सबसे ज़्यादा दोषी पुलिसकर्मी पाए जाएंगे। इसका कारण बताते हुए टीकाकारों का कहना है कि चूंकि पुलिस सत्ता के दबाव में काम करती है इसलिए यह कह सकते हैं कि भारत तो वर्ष 1947 में आज़ाद हो गया था लेकिन भारतीय पुलिस आज भी ग़ुलाम है। (RZ)
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