Mar १६, २०२३ १८:३५ Asia/Kolkata
  • देश के मुसलमानों से नफ़रत, विदेशी मुसलमानों से दोस्ती, नए भारत की नई तस्वीर!

एक ओर भारत में आए दिन धर्म के आधार पर मुसलमानों के साथ मारपीट, लिंचिंग और बुल्डोज़र से उनके घरों को ध्वस्त कर देने की ख़बरे सामने आती रहती हैं तो दूसरी ओर विश्व में मौजूद मुस्लिम और इस्लामी देशों से भारत की सरकार लगातार दोस्ती बढ़ाने का प्रयास करती रहती है। जिसकी बुनियाद पर यह सवाल पैदा होता है कि आख़िर देश के मुसलमानों से नफ़रत क्यों और विदेशी मुसलमानों से इतनी मोहब्बत के पीछे राज़ क्या है?

यूक्रेन के ख़िलाफ़ विशेष सैन्य अभियान आरंभ करने के बाद से रूस को अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगी लगातार घेरने की कोशिश कर रहे हैं। अमेरिका के नेतृत्‍व में पश्चिमी देशों ने रूस पर बेहद कठोर आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं। संकट की इस घड़ी में भारत ने रूस का साथ नहीं छोड़ा। चीन और ईरान की तरह भारत ने भी रूस के साथ अपनी आर्थिक गतिविधियों को जारी रखा। इस बीच भारत और रूस के बीच आर्थिक लाइफलाइन को जोड़े रखने में फ़ार्स की खाड़ी के मुस्लिम देश अहम भूमिका निभा रहे हैं। इन्हीं देशों में से एक देश का नाम है संयुक्‍त अरब इमारात। भारत ने यूक्रेन युद्ध के बाद बहुत बड़े पैमाने पर रूस के साथ व्‍यापार शुरू कर दिया है। भारत ने अरबों डॉलर का तेल रूस से मंगाया है। वहीं भारत को से व्‍यापार में अमेरिकी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है और इस संकट से निकलने में संयुक्त अरब इमारात अहम भूमिका निभा रहा है। जबकि यह भी माना जा रहा है कि यूएई में मौजूद भारतीय प्रधानमंत्री के दोस्त गौतम अडानी की कई कंपनियां इस व्यापारिक लेने-देन को अंजाम देने में लगी हुई हैं। साथ ही फ़ार्स की खाड़ी के अरब देशों में भारतीय उद्योगपति गौतम अडानी ने अपना व्यापारिक साम्राज्य फैला रखा है और उनका यह प्रयास रहता है कि भारत और अरब देशों में, जहां-जहां उनका व्यापार है, दोस्ती मज़बूत रहे। इससे उनका व्यापार फलता-फूलता रहेगा। जबकि इस बात को पूरी दुनिया जानती है कि भारतीय प्रधानमंत्री मोदी की छवि आरंभ से ही मुस्लिम विरोधी नेता के तौर पर रही है।

इस बीच अमेरिकी प्रतिबंधों के बाद भारत और रूस का व्‍यापार डॉलर में नहीं हो पा रहा है। रूस जहां चीनी मुद्रा में व्‍यापार को बढ़ावा दे रहा है, वहीं भारत को चीन की करंसी के साथ कड़ी आपत्ति है। भारत के संकट का हल यूएई की मुद्रा दिरहम से निकला है। भारत ने सभी बैंकों और व्‍यापारियों को निर्देश दिया है कि वे रूस से आयात का भुगतान चीन की मुद्रा युआन में नहीं करें। भारत इस समय रूसी तेल का सबसे बड़ा ख़रीदार बन गया है और कम दाम में कोयला भी मंगा रहा है। भारत ने यूएई की मुद्रा दिरहम को भुगतान में प्राथमिकता देना शुरू किया है। वहीं भारतीय अधिकारियों ने भी यह दावा किया है कि आने वाले महीने में रूस से ज्‍यादातर व्‍यापार दिरहम में किया जाएगा। वहीं संयुक्त अरब इमारात भारत प्रशासित कश्मीर में भी निवेश करने जा रहा है। उसके इस निवेश पर जहां मोदी सरकार ख़ुश है वहीं कुछ कट्टरपंथी हिन्दू संगठनों ने इसपर नाराज़गी भी जताई है। उनकी नाराज़गी की वजह मुस्लिम देश का कश्मीर में निवेश करना है। वहीं यह बात बिल्कुल समझ से दूर है कि जहां विदेशों में भारत सरकार और मोदी के मित्र गौतम अडानी अपना ज़्यादातर कारोबार मुस्लिम और इस्लामी देशों के साथ मिलकर आगे बढ़ा रहे हैं वहीं भारत में मुसलमानों के ख़िलाफ़ हर दिन ज़ुल्म बढ़ता जा रहा है। (रविश ज़ैदी R.Z)

नोटः लेखक के विचारों से पार्स टुडे हिन्दी का सहमत होना ज़रूरी नहीं है।

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