हाई रिस्क’ मानी गई कंपनियों ने भी चुनावी बॉन्ड खरीदे,
भारत के चुनाव आयोग की वेबसाइट पर जारी चुनावी बॉन्ड के डेटा से राजनीतिक दलों को बॉन्ड के ज़रिये चंदा देने वाली कंपनियों के नाम सामने आए हैं। इसमें कई ऐसी कंपनियां भी शामिल हैं जिन्होंने अपनी कमाई यानी आमदनी से अधिक का चंदा राजनीतिक पार्टियों को दिया है।
टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, चुनावी बॉन्ड के ज़रिये सबसे ज़्यादा चंदा देने वाली कंपनी फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड ने 12 अप्रैल, 2019 से 24 जनवरी, 2024 के बीच किसी भी दूसरी कंपनी के मुकाबले सबसे अधिक 1,368 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे। इससे भी ज्यादा ध्यान देने वाली बात ये है कि इस कंपनी का बीते तीन सालों का लाभ मात्र 215 करोड़ रुपये था।
इस जानकारी से ये स्पष्ट है कि कंपनी ने अपने लाभ के छह गुना से अधिक का चंदा राजनीतिक दलों को दिया।
फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के अलावा भी कई ऐसी कॉरपोरेट संस्थाएं हैं, जिन्होंने बीते पांच सालों के दौरान चुनावी बॉन्ड के माध्यम से 50 करोड़ रुपये से अधिक का चंदा दिया, लेकिन उनका मुनाफा चंदे की रकम से कम था।
चुनावी बॉन्ड के खरीदारों की सूची में कई ऐसी कंपनियां भी शामिल हैं, जिन्होंने अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा चंदा कर दिया है. उदाहरण के तौर पर आईएफबी एग्रो इंडस्ट्रीज को 2019-20 से 2022-23 तक 175 करोड़ रुपये का नेट प्रॉफिट हुआ था, लेकिन इस कंपनी ने इस राशि के 53 प्रतिशत यानी 92 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे।
एक और कंपनी हल्दिया एनर्जी के डेटा को देखें, तो इस कंपनी ने तीन वर्षों में 1,013 रुपये का नेट प्रॉफिट कमाया और इस दौरान 377 करोड़ रुपये यानी अपनी कमाई के लगभग 37 प्रतिशत का चुनावी चंदा दिया.
चंदा देने वालों में कुछ कंपनियां ऐसी भी हैं, जिन्होंने अपने लाभ का दो से चार प्रतिशत हिस्सा बॉन्ड के जरिये राजनीतिक पार्टियों को दिया है।
राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने में दूरसंचार कंपनी भारती एयरटेल का नाम भी शामिल है, जिसने घाटे के बावजूद चुनावी बॉन्ड खरीदे।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक, भारती एयरटेल साल 2019-20 से लेकर 2022-23 के दौरान घाटे में रही, लेकिन बावजूद इसके उसने 198 करोड़ रुपये का चंदा दिया.
ज्ञात हो कि बीते 15 फ़रवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार द्वारा साल 2018 में लाई गई चुनावी बॉन्ड योजना को संवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था और योजना के तहत अधिकृत सार्वजनिक क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक- भारतीय स्टेट बैंक को बॉन्ड के सभी विवरण निर्वाचन आयोग को सौंपने का निर्देश दिया था. आयोग ने 14 मार्च की शाम इस डेटा को सार्वजनिक किया।
चुनावी बॉन्ड के बड़े खरीददारों के रूप में सूचीबद्ध कई कंपनियां केंद्रीय एजेंसियों की जांच के दायरे में हैं और उन्हें दर्ज मामलों और छापों का सामना करना पड़ा है। साथ ही, 2018 में वित्त मंत्रालय द्वारा ‘हाई रिस्क’ मानी गई कम से कम तीन कंपनियों ने भी चुनावी बॉन्ड खरीदे हैं। (AK)
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