कश्मीर की उस काली रात की कहानी जब अंधेरे कमरे में लगाए गए बिजली के झटके!
भारत प्रशासित कश्मीर में जारी तनाव और हिंसा का उद्देश्य केवल कश्मीर की जनता में डर और भय का माहौल पैदा करना है। आम लोगों को विरोध-प्रदर्शनों से दूर रखा जा रहा है। कश्मीर की आम जनता इस समय बहुत ही दबाव में जीवन गुज़ारने के लिए मजबूर है और यह मजबूरी उन्होंने ने चुनी है बल्कि यह इस देश की सरकार की ओर से थोपी गई मजबूरी है। यह सब कहना है एक भारतीय अधिकारी का।
भारत प्रशासित कश्मीर में भारतीय सेना ने 5 अगस्त को इस राज्य के विशेष दर्जे की समाप्ति के बाद जम्मू-कश्मीर के सैकड़ों राजनीतिक नेताओं और कर्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर लिया था और इस गिरफ़्तारी का सिलसिला अभी भी जारी है। गिरफ़्तार किए गए लोगों में एक आबिद ख़ान नामक कश्मीरी व्यक्ति भी शामिल था। आबिद ख़ान ने अपनी उस ख़ौफ़नाक रात की कहानी दुनिया को बताई है और यह केवल एक कहानी नहीं है बल्कि दर्जनों ऐसी कहानियां हैं जो अभी दुनिया के सामने आनी बाक़ी हैं। कश्मीर में भारतीय सेना की हिंसात्मक कार्यवाही में अत्याचार का शिकार हुए दर्जनों लोगों में से एक आबिद ख़ान ने समाचार एजेंसी एएफ़पी को अपनी आपबीती सुनाई, आपबीती सुनाते समय उनके हाथ ख़ौफ़ से कांप रहे थे और वह कह रहे थे कि देर रात सेना के जवान आए थे।
कश्मीर के ज़िला शुपियां के हिरापूर गांव से संबंध रखने वाले 26 वर्षीय आबिद ख़ान ने बताया कि, उन्हें 14 अगस्त को भाई के साथ घसीटकर घर से निकाला और आंखों पर पट्टी बांध दी गई। उन्होंने अपने शरीर पर गहरे चोट के निशान दिखाते हुए कहा कि, भारतीय सैनिकों ने घर से बाहर ही हमारे भाई को बिजली के झटके देने शुरू कर दिए थे और मेरा भाई मेरी आंखों के सामने दर्द से चिल्ला रहा था और मैं उसके चीखों से टूटा जा रहा था। आबिद ने बताया कि सैन्य कैम्प के पास पहुंचते ही सेना के जवानों ने मेरे कपड़े उतार दिए, हाथ-पांव बांधकर मुझे उलटा लेटा दिया और फिर जो मेरे साथ किया उसे मैं केवल दिखा सकता हूं बता नहीं सकता। पीड़ित आबिद ने कहा कि सेना मेरे ऊपर घाटी में सक्रिय छापामार गुटों का सदस्य होने की बात स्वीकार करने के लिए लगातार दबाव डाल रही थी और मेरे बार-बार मना करने पर वह मुझे बिजली के झटके दे रहे थे। उन्होंने कहा कि सेना ने मेरे पूरे शरीर यहां तक कि मेरे विशेष अंगों पर भी करंट लगाया। आबिद का कहना था जब वह अंधेरी रात ख़त्म हुई और सुबह हुई तो मुझे रिहा कर दिया गया लेकिन मैं मुश्किल से खड़ा हो पा रहा था, मुझे 10 दिन तक मतली होती रही और 20 दिन बाद मैं चलना फिरना शुरू कर सका।
स्थानीय लोगों का कहना था कि इस समय जो कश्मीर का माहौल है उसके पीछे भी भारत सरकार की एक सोची समझी साज़िश है। लोगों का कहना है कि क़ब्रिस्तान की तरह घाटी में छाई ख़ामोशी को देखकर दिल्ली सरकार और भारतीय सेना कश्मीरी जनता को मुर्दा समझ रही है, लेकिन उन्हें यह जान लेना चाहिए कि यह ख़ामोशी क़ब्रिस्तान की ख़ामोशी नहीं है बल्कि यह तुफ़ान के आने से पहले की ख़ामोशी है। कश्मीरी लोगों का कहना था कि, जिस ज़ोर और ज़बरदस्ती से हमारे राज्य का विशेष दर्जा समाप्त किया गया है वह तो कोई भी देश अपनी सेना और ताक़त के बल पर कर सकता है लेकिन ऐसा करने वाला देश कभी लोकतांत्रिक देश नहीं कहलाएगा। इन लोगों के बीच कुछ भारत समर्थक भी थे। उनका कहना था कि हम तो हमेशा से भारत के साथ थे और रहना भी चाहते हैं लेकिन इस बार जो दिल्ली सरकार ने किया है उससे हमारे विश्वास के साथ-साथ हमारी दिल को भी चोट पहुंची है। (RZ)