गलवान घाटी विवादः क्या भारत को दूसरे कारगिल का सामना है? 20 सैनिकों की मौत के बाद भी रक्षात्मक मुद्रा में क्यों हैं मोदी?
(last modified Fri, 19 Jun 2020 04:52:18 GMT )
Jun १९, २०२० १०:२२ Asia/Kolkata
  • गलवान घाटी विवादः क्या भारत को दूसरे कारगिल का सामना है? 20 सैनिकों की मौत के बाद भी रक्षात्मक मुद्रा में क्यों हैं मोदी?

इस हफ़्ते पूर्वी लद्दाख़ में भारत और चीन के बीच सीमावर्ती झड़प हो गई जिसमें करनल सहित 20 भारतीय सैनिक मारे गए। यह 1962 की जंग के बाद लद्दाख़ सीमा पर इस तरह की पहली हिंसक घटना है।

लद्दाख़ की गलवान घाटी में हालिया तनाव को समझने के लिए उसके स्ट्रैटेजिक महत्व को जानना ज़रूरी है। गलवान घाटी का नाम इसमें बहने वाली नदी के नाम पर है जो ब्रिटिश राज में इस इलाक़े की खोज करने वाले लेह के रिहाइशी ग़ुलाम रसूल गलवान के नाम से जुड़ी है।

गलवान घाटी अकसाई चीन के पास है और यह नदी भी अकसाई चीन से निकलती है। अकसाई चीन का इलाक़ा चीन के अधिकार में है और 60 के दशक में पाकिस्तान और चीन के बीच समझौते के बाद पाकिस्तान ने अकसाई चीन से लगा एक हिस्सा चीन को दे दिय था। इसके बिल्कुल साथ सियाचिन ग्लेशियर है जिस पर पाकिस्तान और भारत की दावेदारी है मगर इस पर भारत का कंट्रोल है।

 

भारत के नियंत्रण वाले लद्दाख़ इलाक़े के उत्तर में सियाचिन ग्लेशियर पर भारत ने 80 के दशक में कंट्रोल किया इस तरह भारत ने चीन और पाकिस्तान के बीच में एक दीवार खड़ी दी। अगर सियाचिन पर पाकिस्तान का कंट्रोल हो जाता है तो नौबरा और लद्दाख़ ख़तरे में पड़ जाएंगे। कारगिल भी अहम इलाक़ा है जिस पर पाकिस्तान भारत जंग हो चुकी है। कारगिल लेह हाईवे पर अगर पाकिस्तान कभी क़ब्ज़ा कर लेता है तो भी लद्दाख़ भारत के हाथ से निकल सकता है।

गलवान नदी के बारे में भारत का दावा है कि चीन 1965 तक गलवान नदी पर हक़ नहीं जताता था और चीन का दावा अकसाई चीन में स्थित लाइन पर नदी के दूसरे किनारे पर था लेकिन 1962 में चीन ने इस पर क़ब्ज़ा कर लिया था। संघर्ष विराम हुआ तो दोनों सेनाएं पीछे हट गईं और गलवान घाटी ख़ाली पड़ी थी। दोनो देशों ने संघर्ष विराम के बाद नक़्शों का तबादला नहीं किया और इलाक़े के बारे में सारे समझौते स्थानीय कमांडरों की हद तक थे।

गलवान का इलाक़ा भारतीय सेना की ओर से सब-सेक्टर नार्थ कहलाने वाले इलाक़े में आता हे और सियाचिन ग्लेशियर के पूरब में स्थित है यानी गलवान घाटी ही अकसाई चीन तक पहुंचने का एकमात्र रास्ता है। गलवान घाटी में तनाव यहां भारत की ओर से सड़क निर्माण से शुरू हुआ। गलवान नाले पर भारत ने एक पुल भी बनाया जिस पर चीन को चिंता हुई। यह पुल शियोक नदी और दौलत बेग ओल्डी के बीच बनाई गई सड़क का हिस्सा है। सड़का का उद्घाटन पिछले साल भारत के रक्षा मंत्री ने किया था।

 

गलवान घाटी में चीन की हालिया गतिविधियों को भारत एक अन्य कारगिल के रूप में देख रहा है लेकिन इस बार उसका मुक़ाबला पाकिस्तान नहीं चीन से है। चीन ने गलवान घाटी और पिंगांग झील के आसपास मज़बूत घेराबंदी बना ली है। गलवान घाटी में भारतीय कंट्रोल वाले इलाक़े में चीन तीन किलोमीटर भीतर तक घुस गया है।

कारगिल पर चढ़ाई करके पाकिस्तान ने श्रीनगर-ज़ोजीलार कारगिल-लेह हाईवे को उत्तर की ओर से लद्दाख़ से काटने की कोशिश की थी। अब चीन गलवान घाटी में नदी के दोनों ओर ऊंची चोटियों पर बैठा है और दारबक, शियोक और दौलतबेग ओल्डी हाईवे के ठीक ऊपर चीन की चौकियां बन चुकी हैं जिसके बाद भारतीय सेना को सब सेक्टर नार्थ से जोड़ने वाली सड़क अब ख़तरे में पड़ गई है।

लद्दाख़ में चीन के हज़ारों सैनिकों के मुक़ाबले में भारत के सैनिकों की संख्या कम है इसलिए वह भारतीय सैनिकों को सोते में धर दबोचने में कामयाब हो गए। भारत आम तौर पर साल के इन दिनों में उधमपुर की उत्तरी कमांड से दस्ते फ़ारमेशन एरिया में भिजवाता था लेकिन इस साल कोरोना वायरस के डर से दस्तों की गतिविधियां रोक दी गईं और चीन ने मौक़े का फ़ायदा उठा लिया।

भारतीय सेना के साथ कारगिल में भी यही हुआ था और इंटेलीजेन्स की नाकामी को ज़िम्मेदार ठहराया गया था।

भारत के पूर्व सैन्य अधिकारियों का कहना है कि लद्दाख़ में इंटेलीजेन्स के साथ आप्रेशनल नाकामी भी इन हालात की वजह बनी। इन अधिकारियों का कहना है कि जब हमने 225 किलोमीटर सड़क बनाई तो हमारी सेना ने शियोक नदी के साथ इस सड़क की रक्षा के लिए दस्ते क्यों नहीं तैनात किए?

हालिया झड़प के बाद सैनिक और कूटनैतिक स्तर पर संपर्क जारी है लेकिन चीनी सेना वार्ता के बावजूद गतिविधियां जारी रखे हुए है। गलवान और शियोक नदियों के बीच दीसपांग के मैदानी इलाक़े में चीन की सेना ने 2 सड़कों का निर्माण शुरू कर दिया है और भारत इन सड़कों के निर्माण को अपनी सीमा में दख़लअंदाज़ी समझता है।

 

भारत के प्रधानमंत्री मोदी 2 दिन तक ख़ामोश रहे जिसके बाद उन्होंने कहा कि भारत शांति चाहता है लेकिन अगर आक्रोश दिलाया गया तो भारत उचित जवाब देगा। मगर ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि लद्दाख़ पर तैनात भारतीय इनफ़ैन्ट्री डिवीजन के मेजर जनरल अभिजीत चीनी समकक्ष के साथ तनाव कम करने के लिए वार्ता कर रहे हैं और चीन का सैनिक नेतृत्व वार्ता के दौरान क़ब्ज़े में लिए गए 60 वर्ग किलोमीटर के इलाक़े में अपनी पोज़ीशन मज़बूत करने में लगा हुआ है जिससे साफ़ ज़ाहिर है कि चीन इस इलाक़े से वापसी का इरादा नहीं रखता।

सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि जनरल अभिजीत ने चीनी समकक्ष के साथ वार्ता भारतीय दावेदारी के इलाक़े के तीन किलोमीटर भीतर की और अब स्थिति यह है कि पिंगांगसो में चीन के सैनिक झील में मोटर बोट्स पर गश्त कर रहे हैं।

भारत को दबाव में लाने के लिए चीन ने आम तौर पर शांत रहने वाले हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड बार्डर पर भी सैनिक गतिविधियां बढ़ा दी हैं।

पिंगांगसो से 200 किलोमीटर दूर स्थित एयरपोर्ट पर भी चीनी सेना इंफ़्रास्ट्रक्चर को बेहतर बना रही है। 14 हज़न किलोमीटर भीतर की और अबर फ़ुट की ऊंचाई पर स्थित यह एयरपोर्ट तिब्बत में स्थित 4 हवाई अड्डों में से एक है। 2017 में डोकलाम में झड़प के बाद से चीन इस एयरपोर्ट पर युद्धक विमान तैनात कर चुका है। चीन ने तिब्बत के इलाक़े में किए गए सैन्य अभ्यास की वीडियो भी जारी की जिसमें युद्धक विमानों, राकेट फ़ोर्सेज़, एयर डिफ़ेन्स राडार सहित हर डिपार्टमेंट ने हिस्सा लिया। यह भी चीन की ओर से एक संदेश है।

अब भारतीय मीडिया में यह रिपोर्टें प्रकाशित की जा रही हैं कि भारत एलएसी पर सैनिक एसओपीज़ बदलने पर विचार कर रहा है। इससे पहले तक दोनों देशों की सेनाएं बग़ैर हथियार के गश्त करती थीं लेकिन अब भारतीय मीडिया की रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि 20 सैनिकों की मौत के बाद हथियारों के बग़ैर गश्त की परम्परा समाप्त कर दी जाएगी। अगर भारत इस परम्परा को छोड़ता है तो एलएसी पर हिंसक घटनाएं बढ़ सकती हैं।

आसिफ़ शाहिद

लेखक पाकिस्तान के सीनियर पत्रकार हैं और उनका यह लेख उर्दू भाषा में डान अख़बार की वेबइसाट पर प्रकाशित हुआ है।

 

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