इलाहाबाद हाईकोर्ट से आया मोहब्बत का संदेश, कट्टरपंथी सोच वालों को लगा झटका
(last modified Tue, 24 Nov 2020 08:20:35 GMT )
Nov २४, २०२० १३:५० Asia/Kolkata
  • इलाहाबाद हाईकोर्ट से आया मोहब्बत का संदेश, कट्टरपंथी सोच वालों को लगा झटका

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फ़ैसले में कहा है कि अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ जीने का अधिकार जीवन एवं व्यक्तिगत आज़ादी के मौलिक अधिकार का महत्वपूर्ण हिस्सा है। कोर्ट ने कहा कि इसमें धर्म आड़े नहीं आ सकता है।

प्राप्त रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत में इन दिनों कुछ कट्टरपंथी मानसिकता के लोग, संगठन और संवैधानिक पदों पर बैठे मानीय मनगढ़त तौर पर बनाए गए लव जिहाद नामक काल्पनिक जिहाद को लेकर पूरे समाज के धार्मिक सौहार्द को बिगाड़ने का काम कर रहे हैं। केवल इतना ही नहीं बल्कि इस मनगढ़त लव जिहाद को लेकर कुछ प्रदेशों के मुख्यमंत्री इतना ज़्यादा गंभीर हैं कि वे इसको लेकर कड़ा क़ानून बनाने का भी एलान कर चुके हैं। इस बीच ऐसी सभी कट्टरपंथी सोच वालों को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फ़ैसले से ज़ोर का झटका दिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस पंकज नक़वी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की पीठ ने विशेष रूप से कहा, ‘हम यह समझने में असमर्थ हैं कि जब क़ानून दो व्यक्तियों, चाहे वह समलैंगिक ही क्यों न हों, को एक साथ रहने की इजाज़त देता है, तो फिर न तो कोई व्यक्ति, न ही परिवार और न ही सरकार को दो लोगों के संबंधों पर आपत्ति होनी चाहिए, जो कि अपनी इच्छा से एक साथ रह रहे हैं।’ साथ ही कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की एकल पीठ द्वारा दिए गए उस आदेश को भी ख़ारिज कर दिया, जिसमें न्यायालय ने कहा था कि केवल शादी के लिए धर्म परिवर्तन स्वीकार्य नहीं है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एकल पीठ द्वारा आदेश को ख़ारिज करते हुए कहा कि, ‘इस फ़ैसले में दो वयस्क लोगों के जीवन एवं स्वतंत्रता के मुद्दे को नहीं देखा गया है कि उन्हें पार्टनर चुनने या अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार है।’ पीठ ने आगे कहा, ‘हम इस फ़ैसले को अच्छे क़ानून के रूप में नहीं मानते हैं।’ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, ‘अपनी पसंद के किसी व्यक्ति के साथ रहने का अधिकार, भले ही उनका कोई भी धर्म हो, जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का अभिन्न हिस्सा है। व्यक्तिगत संबंध में हस्तक्षेप करना दो व्यक्तियों के चुनने की आज़ादी में रुकावट डालना है।’ सुप्रीम कोर्ट के एक फ़ैसले का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने लगातार बालिग़ व्यक्तियों की आज़ादी का सम्मान किया है। उच्चतम न्यायालय के फ़ैसले को दोहराते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि पार्टनर चुनने में जाति, धर्म, संप्रदाय जैसी चीज़ें आड़े नहीं आ सकती हैं।

उल्लेखनीय है कि, एक विवाहित जोड़े ने अदालत से पुलिस और युवती के पिता को उनकी वैवाहिक ज़िंदगी में बाधा नहीं डालने का निर्देश देने की गुहार लगाई थी। इसके साथ ही याचिकाकर्ता ने पॉक्सो समेत विभिन्न धाराओं में दर्ज एफआईआर को ख़ारिज करने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि दोनों (पति एवं पत्नी) बालिग़ हैं और अपनी शादी का फ़ैसला लेने के हक़दार हैं। सलामत अंसारी ने प्रिंयका खरवार से मुस्लिम रीति रिवाज के आधार पर शादी की थी, जिसमें लड़की ने हिंदू धर्म छोड़कर इस्लाम कबूल कर लिया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एफआईआर को ख़ारिज करने का आदेश देते हुए कहा कि दो बालिग़ लोगों को अपने मन-मुताबिक़ जीने का पूरा अधिकार है। (RZ)

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