स्वतंत्रता प्रभात (6)
(last modified Sat, 05 Feb 2022 13:59:44 GMT )
Feb ०५, २०२२ १९:२९ Asia/Kolkata

इस्लामी कला जैसा कि उसके नाम से ही ज़ाहिर है, सातवीं शताब्दी ईसवी में इस्लाम के उदय के बाद विभिन्न ऐतिहासिक कालों और विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में वजूद में आई। बड़ी संख्या में अध्ययनकर्ताओं ने अपनी रचनाओं में इस कला का उल्लेख किया है और लगभग समान उदाहरणों के ज़रिए इसके विभिन्न सिद्धांत और परिभाषाएं प्रस्तुत किए हैं।

ईरान उन देशों में से एक है, जहां इस्लाम का तेज़ी से विस्तार हुआ। इस देश की प्राचीन सांस्कृतिक और कलात्मक पृष्ठभूमि के कारण, यहां के कलाकारों ने इस्लामी विचारधारा के मुताबिक़, रचनाओं को प्रस्तुत किया। इसीलिए आज यह दावा किया जा सकता है कि इस्लामी कला, ईरानी पहचान का एक भाग है और उसने ईरानी सभ्यता की स्थापना में काफ़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कुछ अध्ययनकर्ताओं ने इस्लामी कला को एक ऐसी कला बताया है, जो इस्लामी और ईश्वरीय विषयों को बयान करती है। इसलिए इस कला को इस्लामी शिक्षाओं के मुताबिक़ होना चाहिए, ताकि उसे इस्लामी कहा जा सके। दूसरे शब्दों में धार्मिक कला विभिन्न शैलियों और विभिन्न तरीक़ों से पवित्रता का एक सौंदर्य अनुभव है और यही धार्मिक कला का सार है। इस तरह की परिभाषा के आधार पर इस्लामी कला, लोक और परलोक में श्रेष्ठ विषयों की अभिव्यक्ति का ज़रिया है। हालांकि इस्लामी कला की परिभाषा की पृष्ठभूमि में ऐतिहासिक अध्ययनों और विश्लेषणों के आधार पर यह नतीजा हासिल किया जा सकता है कि यह कला, इस्लामी देशों की कला नहीं है, हां, इनमें से अधिकांश की रचना मुस्लिम शासकों के दौर में की गई है।  

 

इतिहास पर नज़र डालने से पता चलता है कि इस्लामी क्रांति ने ऐसे दौर में सफलता हासिल की जब मार्क्सवाद और उदारवाद जैसी धर्म-विरोधी और आध्यात्मिक विरोधी विचारधाराओं का डंका बज रहा था। ऐसे समय में इस्लामी क्रांति ने दुनिया को मनुष्य और धर्म के बीच संबंध का एक नया संदेश दिया। उस समय कला के लिए कला जैसे विचार और नारे हाशिए पर डाल दिए गए थे और ईरानी क्रांतिकारी और मुस्लिम समाज और कलाकारों का कोई महत्व नहीं था।

इस्लामी क्रांति की सफलता के प्रारम्भिक वर्षों में लोक कला को प्रोत्साहित किया गया और उसे बढ़ावा दिया गया, क्योंकि यह कला क्रांतिकारी संस्कृति को आगे बढ़ाने वाली थी। लोक कला एक ऐसी कला थी, जिसने उस समय आधुनिक कला की जगह ली थी। इसमें यथार्थवाद और कभी-कभी अभिव्यक्तिवाद शामिल होता था। इस कला ने राजनीतिक विषयों के साथ क्रांतिकारी विषयों को बढ़ावा देने और प्रचारित करने की कोशिश की और आम लोगों ने विशेष रूप से पीड़ित वर्ग के लिए यह समझने योग्य थी।

विदेशी संस्कृति को जड़ से उखाड़ फेंकने के साथ ही स्थानीय संस्कृति के सुदृढ़ीकरण का उन वर्षों में ईरानी कला पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा। स्थानीय संस्कृति को सुदृढ़ करते हुए एक ओर तो इसे सांस्कृतिक क्षति से बचाया और सार्वजनिक संस्कृति के स्तर में वृद्धि की तो दूसरी ओर ईरानी कला को दुनिया में अनोखी कला बना दिया। उदाहरण के लिए हम ईरानी सिनेमा और उसके आश्चर्यजनक परिवर्तनों का उल्लेख किया जा सकता है, जिसकी किसी भी तरह से क्रांति से पहले के वर्षों से तुलना नहीं की जा सकती। विशेषज्ञों के अनुसार, सिनेमा की कला पहलवी शासन के जीवन के अंतिम दिनों में मर चुकी थी, लेकिन क्रांति के 40 वर्षों के दौरान उसने इतनी ऊंचाई हासिल की और विकास किया कि न केवल घरेलू स्तर पर क्रांतिकारी और प्रतिबद्ध सिनेमा का एक उदाहरण बन गई, बल्कि पूरी दुनिया में अपनी नैतिकता और मानवता के लिए पहचानी जाने लगी।

किसी भी अन्य सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक घटना की तरह, इस्लामी क्रांति के पास भी ख़ुद को प्रकट करने और स्थापित करने के लिए कलात्मक के अलावा कोई विकल्प नहीं था, ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्शों को सुरक्षित रखा जा सके। जैसा कि इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता का कहना है कि कोई भी विचार और कोई भी क्रांति जो कला के रूप में फ़िट नहीं बैठती है, वह स्थायी नहीं हो सकती।

बीसवीं सदी की क्रांतियों के इतिहास में कोई आदर्श समाज नहीं था और वे समाजवादी मान्यताओं और आदर्शों पर निर्भर थीं, जबकि इस्लामी क्रांति ने अपने भविष्य, अतीत और पहचान को परिभाषित करने के लिए धार्मिक परंपराओं को पुनर्जीवित करने पर ध्यान केंद्रित किया। हालांकि, इस्लामी क्रांति की कला अपने आदर्शों की दृष्टि से अन्य कलाओं की तरह ही थी और क्रांति के शुरूआती वर्षों में ईरानी कलाकारों ने दूसरे देशों के कलाकारों की रचनाओं से मिलती जुलती कलाओं की रचना की।

 

क्रांति के दौरान, कला विद्यालयों के कई छात्र आंदोलन में शामिल हो गए और क्रांति के बाद उन्होंने क्रांतिकारी-इस्लामी कला नामक एक कलात्मक आंदोलन की नींव रखी। कलाकारों के इस समूह की पहली प्रदर्शनी तेहरान में हुसैनिए इरशाद में आयोजित की गई। तेहरान के बाद, इस प्रदर्शनी के संस्थापक ने ईरान के अन्य शहरों में इसका प्रदर्शनी का आयोजन किया। 1979 में तेहरान स्थित समकालीन कला संग्रहालय में उनके कार्यों और रचनाओं की एक बड़ी प्रदर्शनी का आयोजन भी किया गया।

इराक़-ईरान युद्ध की शुरुआत के साथ ही कलाकारों ने इस पर अनपी प्रतिक्रियाएं व्यक्त कीं और दो मुख्य लक्ष्य निर्धारित किए। पहला युद्ध के मोर्चे पर घटने वाली घटनाओं से लोगों को जोड़ना और उन्हें इसमें शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करना, दूसरा यह कि शहादत जैसे विश्वासों को प्रतीकात्मक रूप से पेश करना, जो युद्ध के मोर्चे को सुन्दरता प्रदान करते हैं। इस दौरान क्रांतिकारी कलाकारों ने प्रत्यक्ष रूप से मोर्चे पर होने वाली लड़ाई और ख़ूनी दृश्यों को पेश करने के बजाए प्रतीकात्मक तरीक़े से संघर्ष और साहस की अवधारणाओं को चित्रित करने का प्रयास किया। इस तरह, शहरों की दीवारें उन शहीदों और नायकों की बड़ी-बड़ी तस्वीरों से भर गईं, जो कभी ख़ुद उनके बीच रहते थे, उनकी मौत का दर्दनाक और दुखद विवरण दिए बिना और यह शैली कला के इतिहास में एक मिसाल बन गई।

इस्लामी क्रांति की सफलता के शुरूआती वर्षों में, कई मामलों में प्राचीन ईरानी कला के पारंपरिक तत्व और पैटर्न कला के कार्यों में देखे जा सकते हैं। क्रांति के बाद के वर्षों के दौरान ईरानी कलाकार, अपनी कलात्मक विरासत को सुरक्षित रखते हुए पश्चिमी कला पर भी एक नज़र डालते हैं। इस तरह इस्लामी क्रांति के कलाकारों ने पूरी समझदारी से इस पद्धति को चुनकर एक नए अनुभव के साथ प्रयोग किया और दुनिया की समकालीन कला में एक विशेष स्थान प्राप्त किया।

इस्लामी क्रांति की एक दूसरी विशेषता, उसका स्थायित्व और उसकी निरंतरता है। क्रांति की जीत के 43 साल बाद भी यह क्रांति लोगों को प्रभावित कर रही है। इसका कारण क्या है? अयातुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई क्रांति की इस विशेषता को वास्तविकता और सत्य का परिणाम मानते हैं, यह सत्य ही है कि जिसकी वजह से क्रांति मज़बूत और स्थितर है। इस्लामी क्रांति की कला में भी एक निरंतरता है।

इस्लामी क्रांति की कला मानव जीवन और उसकी ज़रूरतों और आकांक्षाओं को चित्रित करने के साथ ही इस विशेषता में इस्लामी क्रांति की भाषा बनने में सक्षम रही है। इस कला ने कार्यों और सामग्री के रूप में इस्लाम और इंसानों पर ध्यान दिया है और एक-आयामी होने की कमी से दूर रही है। आध्यात्मिक विषयों के चित्रण ने कला और कलाकार को कभी यथार्थवादी विषयों पर ध्यान देने से नहीं रोका है, क्योंकि इसके अलावा भी कलाकारों ने वर्तमान दुनिया के मुद्दों पर नज़रें डाली हैं और जीवन के सभी पहलुओं के लिए कला का उपयोग किया है।

आख़िरी बात यह कि इस्लामी क्रांति की उपलब्धियों में से एक कलाकारों का नैतिक और इस्लामी मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध होना है। ईरानी कलाकारों ने अपने समय की परिस्थितियों के मद्देनज़र, मानवता और मानव समाज के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी को महसूस किया है और समाज में न्याय, करुणा, आत्म-बलिदान, नैतिकता और मानवीय विषयों को पेश किया है। ईरान में इस्लामी शासन की स्थापना के बाद ईरानी कलाकारों ने धीरे-धीरे महसूस किया कि इन कार्यों में प्रतिबद्धता से उनके कलात्मक और साहित्यिक मूल्यों को नुक़सान नहीं पहुंचता है।

यह बात पूरे विश्वास से कही जा सकती है कि क्रांतिकारी मूल्यों और मानदंडों की दृढ़ता ईरानी जनता के कला और क्रांति से गहरे जुड़ाव का नतीजा है। क्योंकि अगर यह मज़बूत रिश्ता नहीं होता, तो क्रांति के सभी आयामों का चित्रण नहीं किया जाता और दूसरे राष्ट्रों के लिए इसे प्रस्तुत करना संभव नहीं होता। इसी वजह से आज यह बात कही जा सकती है कि ईरानी कला और कलाकारों की प्रगति का श्रेय इस्लामी क्रांति को जाता है। इस्लामी क्रांति ने भी कठिन वैश्विक परिस्थितियों और कड़े प्रतिबंधों के दौरान, विचार, क़लम और कैमरे के ज़रिए दुनिया के कोने-कोने तक अपनी आवाज़ पहुंचाई।

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