स्वतंत्रता प्रभात 10     
(last modified Wed, 09 Feb 2022 12:45:38 GMT )
Feb ०९, २०२२ १८:१५ Asia/Kolkata

ईरान की इस्लामी क्रांति 11 फरवरी 1979 को सफल हुई। इस क्रांति के सफल हो जाने से ईरान में एसी सरकार की आधारशिला रखी गयी जो अपने आप में बेमिसाल थी और है।

इस सरकार का आधार ईश्वरीय धर्म इस्लाम की जीवनदायक शिक्षायें हैं। स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. इस्लामी व्यवस्था की स्थापना करके बड़े और महान लक्ष्यों को हासिल करना चाहते थे। इस वक्त उनके उत्तराधिकारी इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई भी उन्हीं उद्देश्यों को प्राप्त करना चाह रहे हैं। उन बड़े उद्देश्यों में से एक समाज में नई इस्लामी सभ्यता को प्रचलित करना है।

इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली ख़ामनेई इस बारे में फरमाते हैं हमारी क्रांति का एक बड़ा व महत्वपूर्ण संदेश इस्लामी राष्ट्रों, समाजों और मुसलमान राष्ट्रों में इस्लामी पहचान को जीवित करना, इस्लामी शिक्षाओं की ओर लौट आना और मुसलमानों को जागरुक करना है। मुसलमान राष्ट्रों को यह हमारी क्रांति का बड़ा संदेश है और स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. इस रास्ते के मार्गदर्शक थे। पूरे इतिहास में बहुत से विचारकों, विद्वानों और बुद्धिजीवियों ने सभ्यता के बारे में बात की है। एक फ्रांसीसी बुद्धिजीवी व समाजशास्त्री पाल राबर्ट कहते हैं कि सभ्यता वह चीज़ है जिसमें धार्मिक, नैतिक, सुन्दरता और कला आदि के मूल्यों का मिश्रण होता है और ये मूल्य एक बड़े समाज में परवान चढ़ते हैं किन्तु शब्दकोष में सभ्यता का अर्थ शहर में रहना है।

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सवाल यह है कि स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. और इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाहिल उज़्मा सैयद अली खामनेई का नई इस्लामी सभ्यता से तात्पर्य क्या है और वे किस चीज़ को इस्लामी क्रांति का एक संदेश व उद्देश्य मानते हैं? इसका जवाब स्पष्ट है। एसी सभ्यता जिसका आधार इस्लामी शिक्षायें हों और इंसान का लालन- पालन उस सभ्यता में हो। इस्लाम की जीवनदायक शिक्षायें हैं जिनका अनुपालन करके इंसान परिपूर्णता के शिखर पर पहुंच सकता है।

स्वर्गीय इमाम खुमैनी रह. और इस्लामी क्रांति के सर्वोच्च नेता की नज़र उस इस्लामी सभ्यता की ओर इशारा करती है जिसका संबंध इतिहास से है और उस सभ्यता का गठन पैग़म्बरे इस्लाम के जीवन में हुआ और उसके बाद वह विस्तृत हुई। महान ईश्वर के आदेश से जब पैग़म्बरे इस्लाम ने अपनी पैग़म्बरी की घोषणा की और खुलकर इस्लाम का प्रचार- प्रसार करना आरंभ किया तो उन्होंने अपनी जीवन शैली से नई इस्लामी सभ्यता का नमूना पेश किया। दूसरे शब्दों में पैग़म्बरे इस्लाम स. और उनके पवित्र परिजनों के सदाचरण से जो शैली व परम्परा अस्तित्व में आयी उसे इस्लामी सभ्यता कहा जाता है।

सबसे पहले इस्लामी सभ्यता अरब समाज में फैली। उसके फैलने की एक वजह यह थी कि वह हर इंसान की आंतरिक इच्छा के अनुसार थी। कोई भी इंसान एसी कोई सभ्यता व परम्परा नहीं पेश कर सका जो इस्लामी परम्परा और शैली से अधिक तार्किक हो। मिसाल के तौर पर जब किसी इंसान के सामने दो या दो से अधिक चीज़ें पेश की जायें तो इंसान उसी चीज़ को लेगा जो सबसे अच्छी होगी।

इस्लामी सभ्यता का आधार इस्लामी शिक्षायें हैं। इस्लामी शिक्षा यानी ईश्वरीय शिक्षा। समस्त इंसान को पैदा करने वाला और उनकी रचना करने वाला महान व सर्वसमर्थ ईश्वर है और कोई भी इंसान बल्कि समस्त इंसान मिलकर भी इस्लामी कानून और शिक्षा जैसी दूसरी शिक्षा पेश नहीं कर सकते जो इंसान की अस्ल प्रवृत्ति के अनुरूप हो। इंसान को पैदा करने वाले और बनाने वाले से बेहतर कौन जानता है कि इंसान की अस्ल प्रवृत्ति क्या है।

महान ईश्वर ने उन शिक्षाओं को इस्लामी शिक्षा बनाकर भेजा है जो सबसे अधिक उसकी अस्ल प्रवृत्ति के अनुरूप हैं और दूसरे इंसान जो इस्लाम को गले लगा रहे हैं उसकी वजह यह है कि वे उसे अपनी अस्ल प्रवृत्ति के अनुरूप पाते हैं और यह वह वजह है जिसके कारण बड़ी तेज़ी से इस्लाम अरब प्रायद्वीप में फैला और उसके बाद दुनिया के दूसरे क्षेत्रों में फैल गया। इस प्रकार से कि आज दुनिया में ईसाईयों के बाद सबसे बड़ी जनसंख्या मुसलमानों की है और इस समय डेढ़ अरब से अधिक मुसलमान हैं।

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कुछ अनभिज्ञ लोग जो यह कहते हैं कि इस्लाम तलवार के बल पर फैला है तो उनसे पूछना चाहिये कि आज जो लोग यूरोप और ग़ैर यूरोप में इस्लाम धर्म स्वीकार कर रहे हैं वे किस तलवार की वजह से इस्लाम स्वीकार कर रहे हैं।? दूसरे शब्दों में इस्लाम कभी भी तलवार या बंदूक के बल पर न फैला है और न फैल रहा है बल्कि यह खुद इस्लाम धर्म की जीवनदायक शिक्षायें हैं जो इंसानों को अपनी ओर खींच रही हैं।

जो भी इंसान इस्लाम को स्वीकार कर रहे हैं उनसे पूछना चाहिये कि उन्होंने क्यों इस्लाम स्वीकार किया है तो उनमें लगभग सभी का जवाब होगा कि हमने इस्लाम को दूसरे धर्म से बेहतर पाया और इसकी शिक्षायें तार्किक हैं। इस्लाम धर्म की एक विशेषता यह है कि उसमें जीवन के हर आयाम की शिक्षायें मौजूद हैं। इंसान के पैदा होने से लेकर मरने तक की शिक्षायें उसमें मौजूद हैं और जीवन का कोई भी आयाम नहीं है जिसके बारे में इस्लाम की शिक्षायें न हों जबकि दुनिया के किसी भी धर्म में एसा नहीं है।

इस्लामी सभ्यता व इस्लामी शिक्षाओं की एक विशेषता यह है कि वे हर समय के इंसान की ज़रूरत के मुताबिक हैं। कोई यह नहीं कह सकता है कि इस्लाम की इन शिक्षाओं पर अब अमल नहीं किया जा सकता। अगर इन शिक्षाओं को किसी इंसान ने बनाया होता तो यह समस्या ज़रूर पेश आती। जैसाकि हम देखते हैं कि हर देश के संविधान में कुछ सालों में संशोधन किया जाता है जबकि इस्लाम के कानूनों को महान ईश्वर ने इस प्रकार से बनाया है कि प्रलय तक उसे बदलने की कोई ज़रूरत नहीं है।

इस्लामी सभ्यता की एक विशेषता यह है कि इस सभ्यता ने कभी भी स्वंय को किसी जाति व कौम से विशेष नहीं किया। यानी इस सभ्यता का दरवाज़ा हर कौम व जाति के लिए खुला हुआ है और कोई भी इस सभ्यता को अपना सकता   है। इस्लामी सभ्यता की एक विशेषता यह है कि वह ज्ञान हासिल करने को बहुत महत्व देती है। इस प्रकार से कि पवित्र कुरआन में महान ईश्वर कहता है कि क्या ज्ञानी व अज्ञानी बराबर हैं? इसी प्रकार पैग़म्बरे इस्लाम की मशहूर हदीस है जिसमें आप फरमाते हैं कि ज्ञान हासिल करना हर मुसलमान महिला और पुरूष पर अनिवार्य है।

ज्ञान ताकत है। आज की दुनिया में उन्हीं लोगों का बोलबाला है जिनके पास ज्ञान व तकनीक है। तकनीक वास्तव में ज्ञान की उपज है। यहां कोई यह सवाल कर सकता है कि इस्लामी सभ्यता में जब ज्ञान हासिल करने पर इतना बल दिया गया है तो बहुत से मुसलमान अज्ञानी क्यों हैं? उसका जवाब स्पष्ट है। आज जो मुसलमान पीछे हैं उसकी एक बहुत बड़ी वजह उन्होंने स्वंय को इस्लामी सभ्यता से दूर कर लिया है और जो मुसलमान इस्लामी सभ्यता व उसकी शिक्षाओं पर अमल कर रहे हैं उनके जीवन में अंतर को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। उदाहरण के तौर पर ईरानी जवानों को देखा जा सकता है।

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आज ईरान को अधिकतम दबावों का सामना है परंतु ईरानी जवान इन्हीं दबावों के साये में ज्ञान- विज्ञान की सीढ़ियों को तय कर रहे हैं। यह वही ईरान है जो 43 साल पहले एक बंदूक भी नहीं बनाता था पर आज बैलेस्टिक मिसाइलों का निर्माण कर रहा है, अंतरिक्ष में सेटेलाइट भेज रहा है, परमाणु तकनीक के क्षेत्र में ध्यान योग्य प्रगति कर रहा है इस प्रकार से कि विभिन्न क्षेत्रों में उसकी प्रगति दुश्मनों की आंखों की किरकिरी बन गयी है और वे उसे प्रगति से रोकने के लिए नित- नये षडयंत्र रचते और निराधार दावे करते रहते हैं परंतु ईरानी राष्ट्र अदम्य साहस के साथ अपने मार्ग पर अग्रसर है।

साम्राज्य और वर्चस्ववादी ईरान को अपने वर्चस्ववादी लक्ष्यों के मार्ग की सबसे बड़ी रुकावट समझ रहे हैं। वे इस बात को बहुत अच्छी तरह जानते हैं कि अगर ईरान इसी तरह से प्रगति करता रहा तो दुनिया के दूसरे देशों के लिए आदर्श हो जायेगा और जब दूसरे देश भी ज्ञान विज्ञान में मज़बूत हो जायेंगे तो अमेरिका और ब्रिटेन जैसे वर्चस्वादी देशों के लिए दूसरे देशों पर अपने दृष्टिकोणों को थोपना बहुत कठिन हो जायेगा। इसलिए वे दूसरे देशों व राष्ट्रों को ज्ञान विज्ञान से दूर रखने में ही अपनी भलाई देख रहे हैं। क्योंकि जो देश ज्ञान विज्ञान से दूर होंगे स्वाभाविक है कि वे कमज़ोर रहेंगे और जो देश कमज़ोर होंगे वे वर्चस्ववादी देशों से मुकाबले का साहस नहीं कर पायेंगे। 

ज्ञान के इतिहास के बहुत बड़े ज्ञाता जार्ज सार्टन कहते हैं इतना अधिक ज्ञान पर ध्यान दिये जाने का नतीजा यह था कि 6वी हिजरी कमरी शताब्दी में मुसलमान ज्ञान में दुनिया का नेतृत्व कर रहे थे। मुसलमान दूसरी शताब्दी से पांचवीं शताब्दी तक वैज्ञानिक दृष्टि से दुनिया का नेतृत्व करे रहे। यानी लगभग 350 सालों तक ज्ञान- विज्ञान की पताका मुसलमानों के हाथ में रही।

इस्लामी सभ्यता की एक विशेषता यह है कि वह मुसलमानों और गैर मुसलमानों के मध्य अच्छे व्यवहार का प्रचलन चाहती है। पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में आया है कि मुसलमान वह है जिसके हाथ और ज़बान से दूसरे मुसलमानों और इंसानों को कष्ट न पहुंचे। आज ऐसे बहुत से मुसलमान हैं जिनके नाम केवल मुसलमान हैं और इस्लाम धर्म की शिक्षाओं से उनका कोई लेना- देना नहीं है और जो लोग मुसलमान नहीं हैं जब वे तथाकथित मुसलमानों और उनके कर्मों को देखते हैं तो समझते हैं कि यही इस्लाम है जबकि वास्तविकता और सच्चाई कुछ और है।

आज के तथाकथित मुसलमान भी वही काम कर रहे हैं जो इस्लाम के दुश्मन कर रहे हैं यानी दोनों इस्लाम को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इराक और सीरिया में दाइश जैसे खूंखार आतंकवादी गुटों के कृत्यों और मानवता विरोधी अपराधों को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा सकता है। इराक और सीरिया में आतंकवादी गुटों के कृत्यों पर ध्यान दिया जाये तो यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जायेगी कि ये गुट न केवल मानव नहीं बल्कि दानव हैं। इस्लामी सभ्यता भाई चारे और प्रेम का संदेश देती है।

इस्लामी सभ्यता लोगों को घुल-मिलकर रहने का संदेश देती है, इस्लामी सभ्यता दुश्मन के साथ भी न्याय से काम लेने का संदेश देती है, इस्लामी सभ्यता जानवर के साथ भी अच्छे बर्ताव का संदेश देती है। इस्लामी सभ्यता कहती है कि जब किसी जानवर को ज़िब्ह करो तो पहले उसे पानी पिला लो और दूसरे जानवरों के सामने उसे ज़िब्ह न करो जबकि आतंकवादी गुटों ने हज़ारों बेगुनाह लोगों की गर्दनें लोगों के सामने मारी हैं। आज दुनिया में बहुत से लोग इस्लाम और मुसलमानों से जो नफरत करते हैं वह इन्हीं आतंकवादी गुटों के कृत्यों का दुष्परिणाम है।

बहरहाल इस्लामी सभ्यता समस्त लोगों के साथ घुल-मिलकर और प्रेमपूर्ण तरीक़े से रहने का संदेश देती है।

 

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