कौन सी चीज़ परमाणु समझौते को अच्छा और टिकाऊ बना सकती है?
ईरान के विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान ने कहा है कि वियना वार्ता की समाप्ति के दौर में अमेरिकी विशिष्टता पर आधारित मांग कर रहे हैं।
विदेशमंत्री ने कहा कि विशिष्टता पर आधारित अमेरिकी मांग ऐसी स्थिति में की जा रही है जब तीन यूरोपीय देशों ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी ने भी उस पर आपत्ति जताई है।
अभी हाल ही में यूरोपीय संघ की विदेशनीति आयुक्त जोसेफ बोरेल ने दोहा में कहा था कि हम परमाणु समझौते के बहुत निकट पहुंच गये हैं। जोसेफ़ बोरेल ने ईरान के विदेशमंत्री हुसैन अमीर अब्दुल्लाहियान के साथ हालिया टेलिफोनी वार्ता में कहा था कि यूरोपीय संघ ईरान की उस मांग का समर्थन करता है जिसमें तेहरान इस बात की गैरेन्टी चाहता है कि अमेरिका दोबारा परमाणु समझौते से नहीं निकलेगा।
उन्होंने कहा कि वियना वार्ता संवेदनशील बिन्दु पर पहुंच गयी है और अब ईरान और अमेरिका को अधिक लचक दिखानी चाहिये।
इसी प्रकार उन्होंने कहा कि ईरान के लिए आर्थिक गैरेन्टी का विषय महत्वपूर्ण है और हम इसके व्यवहारिक होने का समर्थन करते हैं और परमाणु समझौते तक पहुंचने के लिए हम अपना प्रयास जारी रखेंगे क्योंकि हमने लंबा रास्ता तय कर लिया है।
इस्लामी गणतंत्र ईरान के अनुसार जो चीज समझौते को अच्छा और स्थाई बना सकती है वह वास्तविकता पर आधारित अमेरिकी दृष्टिकोण है। तेहरान के अनुसार अमेरिका को ऐसी मांग नहीं करनी चाहिये जो अतार्किक और परमाणु समझौते के परिप्रेक्ष्य से बाहर हो।
अमेरिकी विदेशमंत्रालय के प्रवक्ता नेड प्राइस ने 22 मार्च को कहा था कि अब ईरान की ज़िम्मेदारी है कि वह परमाणु समझौते के बारे में निर्णय ले।
ज्ञात रहे कि अमेरिका ने न केवल परमाणु समझौते में अपने वचनों पर अमल नहीं किया बल्कि वह आठ मई वर्ष 2018 को एक पक्षीय रूप से परमाणु समझौते से निकल गया और ईरान के खिलाफ उसने अधिकतम दबाव की नीति अपनाई पर अब स्वंय अमेरिकी अधिकारी भी इस नीति की नाकामी को स्वीकार कर रहे हैं।
बहरहाल जानकार हल्कों का मानना है कि अगर अमेरिका और यूरोपीय देश परमाणु समझौते में उल्लेखित अपने वचनों पर अमल करते तो दोबारा वियना वार्ता की ज़रूरत ही न पेश आती। MM
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