आज का दिन ईरानी राष्ट्र के लिए क्यों है ख़ास?
ईरानी राष्ट्र के संघर्ष के इतिहास में 15 ख़ुर्दाद का आंदोलन निर्णायक घटनाओं में से एक है। इस दिन होने वाली घटनाओं की वजह से ईरानी राष्ट्र के लिए आज का दिन बहुत ही ख़ास है।
ईरानी राष्ट्र के संघर्ष के इतिहास में 15 ख़ुर्दाद का आंदोलन निर्णायक घटनाओं में से एक है। इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना का ईरानी राष्ट्र के भविष्य पर गहरा असर पड़ा। इस घटना ने इस्लामी क्रान्ति की सफलता का मार्ग समतल किया। इसलिए ईरानी राष्ट्र की क्रान्ति के इतिहास में 15 ख़ुर्दाद वर्ष 1342 हिजरी शम्सी बराबर 5 जून 1963 को साम्राज्यवादी शक्तियों के मुक़ाबले में ईरानी राष्ट्र की दृढ़ता में निर्णायक मोड़ समझा जाता है। ईरानी की इस्लामी क्रांति के संस्थापक स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी (र.ह) ने 13 ख़ुर्दाद 1342 हिजरी शम्सी बराबर 31 मई 1963 को ईरान के पवित्र नगर क़ुम में स्थित फ़ैज़िया मदरसे में एक ऐतिहासिक भाषण दिया जिसमें उन्होंने शाही शासन के वास्तविक चेहरे और अमरीकी लक्ष्यों का पर्दाफ़ाश किया था। यह ऐतिहासिक भाषण देने की वजह से इमाम ख़ुमैनी (र.ह) को गिरफ़्तार कर लिया गया था। 5 ख़ुर्दाद 1342 बराबर 5 जून 1963 की सुबह शाह के तत्वों ने इस्लामी क्रांति की लहर को दबाने के लिए इमाम ख़ुमैनी (र.ह) को गिरफ़्तार करके तेहरान की एक जेल में क़ैद कर दिया था। लेकिन जैसे ही उनकी गिरफ़्तारी की ख़बर फैली तेहरान, क़ुम और दूसरे शहरों में जनता सड़कों पर निकल कर प्रदर्शन करने लगी। वहीं प्रदर्शन करने वालों के ख़िलाफ़ शाही शासन ने कार्यवाही करना शुरू कर दिया, ईरान भर में इमाम ख़ुमैनी (र.ह) की गिरफ़्तारी के विरोध में प्रदर्शन कर रहे लोगों पर शाही सुरक्षाबलों ने पाश्विक हमले आरंभ कर दिया और इसी परिप्रेक्ष्य में पवित्र नगर क़ुम में स्थित फ़ैज़िया मदरसे पर भी हमला किया और कई लोगों को शहीद और घायल कर दिया।

लोगों के लगातार बढ़ते आक्रोश को देखते हुए कुछ दिनों के बाद इमाम ख़ुमैनी (र.ह) को छोड़ दिया गया लेकिन शाह के विरोध का क्रम जारी रहा और इमाम ख़ुमैनी (र.ह) न केवल यह कि चुप नहीं बैठे बल्कि उन्होंने अधिक जोश के साथ शाह और साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ अपने संघर्ष को जारी रखा। इसके चलते कुछ दिनों बाद फिर उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया और इस बार उन्हें देश से निर्वासित कर दिया गया। वे पहले कुछ दिनों तक तुर्की में निर्वासन का जीवन बिताते रहे और फिर वहां से उन्हें फ़्रान्स भेज दिया गया। फ़ैज़िया मदरसे में इमाम ख़ुमैनी (र.ह) द्वारा दिए गए ऐतिहासिक भाषण का ईरानी राष्ट्र के आंदोलन पर गहरा असर पड़ा जो बाद में वर्चस्ववादी व्यवस्था के ख़िलाफ़ ईरानी राष्ट्र के संघर्ष में निर्णायक मोड़ बना। इमाम ख़ुमैनी (र.ह) ने 15 ख़ुर्दाद के ऐतिहासिक आंदोलन के ज़रिए ईरान से अमरीकी साम्राज्य के संबंध को चुनौती दी। उस समय ईरान में शाही शासन ने ऐसा घुटन का माहौल बना दिया था कि जनता को किसी प्रकार की आलोचना का अधिकार नहीं था। कुल मिलाकर 15 ख़ुर्दाद 1342 बराबर 5 जून 1963 के आंदोलन के जन्म लेने की पृष्ठिभूमि बना और अंततः इसके नतीजे में 11 फ़रवरी 1979 में ईरान में अत्याचारी शाही शासन का अंत हुआ। (RZ)
हमारा व्हाट्सएप ग्रुप ज्वाइन करने के लिए क्लिक कीजिए
हमारा टेलीग्राम चैनल ज्वाइन कीजिए