इस्लामी क्रांति जिसने ईरान को हर पहलू से बदल दिया
11 फ़रवरी 1979 को ईरान में इमाम ख़ुमैनी के नेतृत्व में इस्लामी क्रांति सफल हुई और देश की जनता का ढाई हज़ार साल से चली आ रही ज़ालिम शाही व्यवस्था के खिलाफ़ संघर्ष कामयाब हुआ।
नतीजे में इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित हुई। राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और सामरिक क्षेत्रों में ईरानी क़ौम की ज़बरदस्त कामयाबी इस्लामी क्रांति की सफलता और इस्लामी गणराज्य व्यवस्था की छाया में संभव हो पायी।
दरअस्ल 11 फ़रवरी की क्रांति ईरान के कई हज़ार साल पर फैले इतिहास का बहुत बड़ा मोड़ है। इस क्रांति ने ईरानी समाज में अलग अलग अलग मैदान में बुनियादी बदलाव कर दिए। इमाम ख़ुमैनी जिनके नेतृत्व में यह क्रांति सफलता की मंज़िल तक पहुंची बेमिसाल व्यक्तित्व के मालिक थे। इमाम ख़ुमैनी के स्वर्गवास को तीन दशक से अधिक समय बीत चुका है मगर आज भी इमाम ख़ुमैनी के विचार और सिद्धांत इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था की राह के दीपक हैं और उनकी यादें ईरानी क़ौम के दिलों में ताज़ा हैं। इमाम ख़ुमैनी बड़ी गहरी सोच रखने वाले दूरदर्शी नेता थे जिन्होंने बिल्कुल अलग अंदाज़ में इस्लामी क्रांति का आंदोलन चलाया। वो इस आंदोलन के दौरान विश्व स्तर पर कैरिज़मेटिक हस्ती के तौर पर नज़र आए। उन्होंने केवल ईरान में ही बुनियादी बदलाव नहीं किया बल्कि पूरे इस्लाम इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जुड़ने का ज़रिया बने। यही वजह है कि सारी दुनिया में ईरान की इस्लामी क्रांति को इमाम ख़ुमैनी की क्रांति के रूप में जाना जाता है।
11 फ़रवरी की इस्लामी क्रांति की सफलता को सारी दुनिया के लिए भी एक हैरतअंगेज़ घटना के रूप में देखा जा सकता है। बीसवीं शताब्दी की यह महान घटना एक तरफ़ तो विश्व स्तर पर साम्राज्यवादी समीकरणों के सामने चुनौती बन गई और दूसरी तरफ़ इसने पश्चिम विशेष रूप से अमरीका के स्ट्रैटेजिक घटक यानी ईरान की शाही सरकार को उखाड़ फेंका।
इस क्रांति ने इस्लाम को विश्व स्तर पर एक निर्णायक शक्ति के रूप में परिचित करवाया। इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई कहते हैं कि अगर इस्लामी क्रांति और इमाम ख़ुमैनी न होते, अगर इस्लाम इस क्रांति की पहचान न बनता तो अमरीका के अत्याचारपूर्ण वर्चस्व से मुक्ति मिल पाना संभव न होता।
ईरान की इस्लामी क्रांति ने इस्लामी दुनिया की एकता की बात की और अमरीकी साम्राज्यवाद के चंगुल से निकलकर अपनी प्रतिष्ठा बहाल करने और इस्लामी दुनिया को एक सक्षम ब्लाक के रूप में पेश करना का सुझाव रखा। इस क्रांति का मानना है कि इस्लामी दुनिया के पास अपनी समस्याओं के समाधान और सारे मामलों के संचालन की क्षमता मौजूद है और यह भी सच्चाई है कि इस्लामी दुनिया के भीतर पायी जाने वाली अनेक समस्याएं और विवाद बाहरी ताक़तों के हस्तक्षेप और साज़िशों का नतीजा हैं।
इस्लामी क्रांति और इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था के यह विचार विश्व साम्राज्यवाद और विशेष रूप से अमरीका के लिए बड़ी चुनौती हैं। अमरीका दरअस्ल वर्चस्व की व्यवस्था में विश्वास रखता है। उसे पारस्परिक सहयोग और बराबरी के आधार पर दो तरफ़ा संबंधों और रिश्तों में कोई ख़ास दिलचस्पी नहीं है। इसलिए उसे इस्लामी क्रांति और इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था के विचारों और नीतियों से हमेशा आपत्ति रहती है। यहीं से यह भी समझ में आ जाता है कि ईरान और इस्लामी लोकतांत्रिक व्यवस्था से अमरीका की दुश्मनी की वजह क्या है।
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