Mar १७, २०२३ २०:२८ Asia/Kolkata

2023 समुद्री सुरक्षा बेल्ट समग्र सैन्य अभ्यास गुरुवार रात उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र में इस्लामी गणराज्य ईरान की नौसेना, आईआरजीसी की नेवी यूनिट, रूसी नौसेना और चीनी नौसेना की उपस्थिति के साथ शुरू हो गया है। क्षेत्रीय सुरक्षा की स्थापना के स्लोगन के साथ आरंभ हुआ यह सैन्य अभ्यास ईरान, चीन और रूस की भागीदारी वाला चौथा सैन्य अभ्यास है।

इस सैन्य अभ्यास के आयोजन का उद्देश्य क्षेत्र में सुरक्षा और इसकी नींव को मज़बूत करना और साथ ही तीन देशों के बीच बहुपक्षीय सहयोग का विस्तार करना है। साथ ही इस अभ्यास में भाग लेने वाले देशों की नौसेनाओं के बीच व्यावहारिक सहयोग को गहरा करने में मदद मिलेगी और क्षेत्रीय शांति और स्थिरता में सकारात्मक ऊर्जा की प्राप्त होगी। वहीं इस सैन्य अभ्यास पर अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगी देश नज़र जमाए हुए हैं। जबकि अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जॉन कर्बी का कहना है कि व्हाइट हाउस संयुक्त प्रशिक्षण अभ्यास से चिंतित नहीं है। कर्बी ने कहा कि अमेरिका और अन्य देश हर समय प्रशिक्षण अभ्यास करते हैं और यह पहली बार नहीं होगा जब रूस, चीन और ईरान एक साथ सैन्य अभ्यास कर रहे हैं। लेकिन उन्होंने कहा कि हम इस सैन्य अभ्यास पर पूरी नज़र रखे हुए हैं। कर्बी के अनुसार,  हम यह सुनिश्चित करने के लिए इसकी निगरानी कर रहे हैं कि इस प्रशिक्षण अभ्यास से हमारे राष्ट्रीय सुरक्षा हितों या क्षेत्र में हमारे सहयोगियों और भागीदारों को कोई ख़तरा न हो।"

इस बीच 2023 समुद्री सुरक्षा बेल्ट सैन्य अभ्यास के प्रवक्ता मुस्तफ़ा ताजुद्दीनी ने कहा कि उत्तरी हिंद महासागर दुनिया के पांच रणनीतिक जलडमरूमध्य में से तीन रणनीतिक जलडमरूमध्य के बीच है, जो वास्तव में दुनिया के ऊर्जा स्रोतों को घेरे हुए है। वहीं इस संवेदनशील क्षेत्र में वाणिज्यिक जहाज़ों और तेल टैंकरों के आवागमन के कारण समुद्री व्यापार सुरक्षा स्थापित करने की आवश्यकता दोगुनी हो गई है। इस बीच तीनों देशों,  ईरान, चीन और रूस के मध्य बढ़ता सहयोग भी अमेरिका के लिए एक संदेश है, क्योंकि उसके द्वारा क्षेत्र में किए जाने वाले निरंतर हस्तक्षेप के कारण इन देशों को जटिलताओं का सामना करना पड़ रहा है। फोर्ब्स पत्रिका ने इस ओर इशारा करते हुए लिखा है कि चीन जल्द ही एक नए औकस (AUKUS) विरोधी सैन्य गठबंधन का प्रस्ताव पेश कर सकता है। पत्रिका के अनुसार, यदि ईरान भी इसका हिस्सा बनता है  तो रूसी परमाणु पनडुब्बियों की तकनीक का दायरा भारतीय और प्रशांत महासागरों और पश्चिम एशिया और यूरोप तक फैलाया जा सकता है। स्टिमसन स्ट्रेटेजिक थिंक टैंक ने भी लिखा है कि रूस के साथ ईरान के बढ़ते सैन्य सहयोग के साथ-साथ चीन के साथ मज़बूत होते उसके आर्थिक संबंध वैश्विक और क्षेत्रीय व्यवस्था में बदलाव के लिए ईरान की अन्य प्रतिक्रियाएं हैं।

कुल मिलाकर त्रिपक्षीय नौसेना अभ्यास का एक लक्ष्य, ईरान, रूस और चीन के बीच अनुभवों का आदान प्रदान करना बताया गया है। रक्षा जानकारों का मानना है कि विदेशी चुनौतियों का मुक़ाबला करने के लिए ईरान आवश्यक क्षमता व शक्ति से सम्पन्न है परंतु इसके बावजूद सामूहिक सुरक्षा को सुनिश्चित बनाने के लिए क्षेत्रीय देशों के मध्य सहकारिता ज़रूरी है। वहीं इस समय विश्व की जो स्थिति है उसको देखते हुए तीनों देशों द्वारा किया जाने वाला सैन्य अभ्यान उन देशों के लिए एक ख़ास संदेश भी लिए हुए है, जो ईरान, रूस और चीन के सामने हर दिन एक नई चुनौती खड़ा करने की कोशिश में लगे रहते हैं। माना जा रहा है कि इस बार बीजिंग, तेहरान और मास्को की नौसेना के संयुक्त सैन्य अभ्यास बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि इस सैन्य अभ्यास की समाप्ति पर कई तरह की नई घोषणाएं भी हो सकती हैं। (RZ)

 

 

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