Mar २१, २०२३ ०८:२४ Asia/Kolkata
  • नए हिजरी शम्सी साल सन 1402 के आग़ाज़ के मौक़े पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता का नौरोज़ का पैग़ाम

नए हिजरी शम्सी साल सन 1402 (21 मार्च 2023-19 मार्च 2024) के आग़ाज़ पर इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनई ने बीते बरसों की तरह नौरोज़ का पैग़ाम जारी किया जिसमें उन्होंने बीते साल के हालात का सरसरी जायज़ा लिया और नए साल के अहम लक्ष्यों और बुनियादी नारे की निशानदेही की।

पैग़ाम पेश हैः  

बिस्मिल्लाह-अर्रहमान-अर्रहीम

ऐ दिलों और निगाहो को पलटने वाले! ऐ रात और दिन का नेज़ाम चलाने वाले! ऐ साल और हालात को बदलने वाले! हमारी हालत को सबसे अच्छी हालत में बदल दे।

ईरानी क़ौम के एक एक शख़्स को नौरोज़ की मुबारकबाद पेश करता हूं, ख़ास तौर पर शहीदों के सम्मानीय घरवालों को, जंग में अपने अंगों की क़ुरबानी पेश करने वाले जांबाज़ों को, जंग में त्याग के जज़्बे के साथ शरीक होने वाले सिपाहियों को, अवाम को सेवाएं देने वालों को और इसी तरह उन दूसरी क़ौमों को भी जो नौरोज़ मनाती हैं और इसे अहमियत देती हैं। इंशाअल्लाह आप सभी को यह शानदार ईद मुबारक हो।

इस साल प्रकृति की बहार का आध्यात्मिक व रूहानियत की बहार यानी रमज़ान मुबारक के साथ आगमन हुआ है। जिस तरह बहार के बारे में कहा गया है कि ʺबहार की हवा से अपने जिस्म को न बचाओʺ इसी तरह रमज़ान मुबारक की रूहानियत की बहार के बारे में भी हमें इस जुमले को मद्देनज़र रखना चाहिएः ʺबेशक तुम्हारी ज़िन्दगी में कुछ मुनासिब मौक़े हैं, उनसे ज़रूर फ़ायदा उठाओ।ʺ रमज़ान के मुबारक महीने में अध्यात्म की बहार सभी के शामिले हाल है और हमें इसके लिए ख़ुद को तैयार करना चाहिए। हमें अपने मन को इस आध्यात्मिक, पवित्र व सुगंधित हवा के झोंके के सामने रखना चाहिए।

इस वक़्त मैं अपनी इस गुफ़्तगू में साल 1401 (हिजरी शम्सी) पर एक सरसरी नज़र डालूंगा और इसी तरह इस वक़्त शुरू होने वाले इस साल 1402 के बारे में भी संक्षेप में कुछ अर्ज़ करुंगा। सन 1401 (हिजरी शम्सी) अनेक वाक़यात व परिवर्तनों का साल था, चाहे वे आर्थिक हों, राजनैतिक हों, चाहे सामाजिक हों। इनमें कुछ मीठे थे तो कुछ कड़वे, इंसान की ज़िन्दगी के सभी बरसों, ख़ास तौर पर एक व्यापक नज़र में इस्लामी इंक़ेलाब के बाद के ईरानी क़ौम के अन्य बरसों की ही तरह। मेरे ख़्याल में सन 1401 (हिजरी शम्सी) में क़ौम के सामने जो सबसे अहम मुद्दा था वह मुल्क की अर्थव्यवस्था का मुद्दा था जिसका अवाम की रोज़ी रोटी से सीधा संपर्क है। इम मामले में भी, अर्थव्यवस्था के मामले में भी कुछ कड़वे अनुभव थे तो कुछ मीठी बातें भी थीं। कुछ क्षेत्रों में, जिनकी ओर इशारा करुंगा, एक कड़वाहट थी, कुछ मामलों में मिठास भी थी जिनका अर्थव्यवस्था से संबंध था। इन सबको एक साथ रख कर देखना चाहिए और इनका सामूहिक तौर पर जायज़ा लेना चाहिए। ज़्यादातर कड़वी बातों का तअल्लुक़ इंफ़्लेशन और महंगाई से था जो हक़ीक़त में कड़वी है। ख़ास तौर पर खाद्य पदार्थ और ज़िन्दगी की बुनियादी ज़रूरत की चीज़ों की महंगाई। जब खाद्य पदार्थ और ज़िन्दगी की बुनियादी चीज़ों की क़ीमत बहुत बढ़ जाती है तो सबसे ज़्यादा दबाव समाज के सबसे निचले तबक़ों पर आता है क्योंकि उनकी फ़ैमिली बास्केट में खाद्य पदार्थ सहित ज़िन्दगी की बुनियादी ज़रूरतों का हिस्सा बड़ा अहम होता है, इसलिए उन पर सबसे ज़्यादा दबाव पड़ता है। ये कड़वी चीज़ों में थी। मेरे ख़्याल में मुल्क के अहम आर्थिक मुद्दों में यह चीज़ ज़्यादा बुनियादी और ज़्यादा अहम थी जो कड़वी थी।

अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में भी अच्छे काम अंजाम पाए और ऐसे कंस्ट्रक्टिव काम भी हुए हैं जिनका नतीजा अर्थव्यवस्था में नज़र आएगा, उनकी ओर मैं इशारा करुंगा। इन कंस्ट्रक्टिव कामों को जारी रहना चाहिए यहाँ तक कि अवाम की ज़िन्दगी और उनकी रोज़ी रोटी पर उनका असर हो और उनसे जुड़ जाए। प्रोडक्शन का सपोर्ट हुआ, सन 1401 (हिजरी शम्सी) में, जहाँ तक मेरे पास जानकारी है, मुल्क में प्रोडक्शन का सपोर्ट हुआ। कई हज़ार बदं पड़े और क्षमता से कम काम करने वाले कारख़ाने खुल गए। नॉलेज बेस्ड कंपनियों की तादाद बढ़ी, अलबत्ता जितनी तादाद की मैंने पिछले साल सिफ़ारिश की थी, उतनी तादाद तो नहीं बढ़ी लेकिन इन कंपनियों की तादाद में बड़ी हद तक इज़ाफ़ा हुआ। इन कंपनियों के प्रोडक्ट्स की क़ीमत में भी इज़ाफ़ा हुआ। रोज़गार के क्षेत्र में कुछ बेहतरी हुयी, यानी बेरोज़गारी में कुछ फ़ीसदी -कुछ फ़ीसदी ही सही- कमी हुयी और रोज़गार में किसी हद तक बेहतरी आई जो ग़नीमत है। वह प्रदर्शनी जो सरकारी और प्राइवेट सेक्टर के उद्योगपतियों ने लगाई थी और इसी तरह वह बैठक भी जिसमें मुल्क के अहम उद्योगपतियों ने हिस्सा लिया और उनमें से कुछ ने अपनी बातें पेश कीं, हक़ीक़त में ख़ुश करने वाली थी।

मुल्क के उद्योगपतियों के प्रोडक्शन्ज़ के बारे में मेरी राय, सार्थक है। अच्छा काम अंजाम पाया है। कुछ आर्थिक इंडीकेटर्ज़ ऊपर की ओर बढ़े, इंश्योरेंस में हमारा इंडेक्स अच्छा है। कंस्ट्रक्शन में, पानी, गैस, सड़क, पर्यावरण वग़ैरह के क्षेत्र में अच्छे काम हुए हैं। अलबत्ता जैसा कि मैंने कहा और अब ताकीद के साथ कह रहा हूं, इन कामों का अवाम की ज़िन्दगी में असर दिखाई देना चाहिए, अवाम की ज़िन्दगी में बेहतरी की शक्ल में ज़ाहिर हो। यह काम कब होगा? कब ऐसी स्थिति आएगी? जब यह सिलसिला जारी रहे, जब इन कामों के सिलसिले में ठोस व गहरी प्लानिंग होगी, इंशाअल्लाह इस साल, सन 1401 (हिजरी शम्सी) में ये काम जारी रहेंगे ताकि इन कंस्ट्रक्टिव कामों का नतीजा, अवाम की ज़िन्दगी और अवाम में ख़ास तौर पर कमज़ोर तबक़ों के दस्तरख़ान पर रौनक़ की शक्ल में सामने आए। अलबत्ता यह बात भी मद्देनज़र रहनी चाहिए कि आर्थिक मुद्दों और आर्थिक मुश्किलों का सामना सिर्फ़ हमारे मुल्क को नहीं है। आज दुनिया के बहुत से मुल्क, शायद कहा जा सकता है कि दुनिया के सभी मुल्कों को ख़ास आर्थिक मुश्किलों का सामना है। यहाँ तक कि दौलतमंद मुल्क, मज़बूत और विकसित अर्थव्यवस्था के मालिक मुल्कों को भी। हक़ीक़त में उनके सामने बहुत ज़्यादा सख़्त मुश्किलें हैं। इस लेहाज़ से तो कुछ मुल्कों की हालत हमसे भी कहीं ज़्यादा ख़राब है। मज़बूत अर्थव्यवस्था वाले मुल्कों में बैंक दिवालिया हो रहे हैं जिसकी ख़बर आपने अभी हाल में सुनी है। अलबत्ता कुछ मुल्कों की ख़बरें दी गयीं और कुछ की नहीं दी गयीं लेकिन वे ख़बरें सामने आ ही जाएंगी। कुछ मुल्कों में बैंक दिवालिया हो गए हैं, खरबों के क़र्ज़े हैं। ये सब मुश्किलें हैं, वहाँ भी हैं, यहाँ भी हैं। वे भी उनसे निपटने की कोशिश कर रहे हैं, हमें भी कोशिश करनी चाहिए, काम करना चाहिए, अधिकारियों को काम करना चाहिए। मेरा मतलब यह है कि सरकारी ओहदेदारों को पूरी कोशिश, उनके अलावा आर्थिक क्षेत्र में काम करने वालों, राजनैतिक व सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं की पूरी कोशिश यह होनी चाहिए कि हम सन 1402 (हिजरी शम्सी) को, ईरानी क़ौम के लिए मीठा साल बना दें, कड़वाहट कम हों, मिठास बढ़े और इंशाअल्लाह हम कामयाबियों पर कामयाबियां हासिल करते जाएं।

अब सन 1402 (हिजरी शम्सी) की बात करते हैं। मेरे ख़्याल में सन 1402 में भी हमारा अस्ली मुद्दा अर्थव्यवस्था है। मतलब यह कि हमारे सामने मुद्दे कम नहीं हैं, अनेक तरह की मुश्किलें हैं, संस्कृति के क्षेत्र में, राजनीति के क्षेत्र में। लेकिन इनमें हमारी अस्ली व बुनियादी मुश्किल अर्थव्यवस्था ही है। यानी अगर हम इंशाअल्लाह आर्थिक मुश्किलों को कम कर सके और इंशाअल्लाह अधिकारियों ने इस मसले में हिम्मत से काम लिया, ग़ौर व फ़िक्र से काम किया और कोशिशें कीं तो मुल्क के बहुत से दूसरे मसले भी हल हो जाएंगे। सरकार भी, संसद भी, आर्थिक क्षेत्र में काम करने वाले भी और जोश व जज़्बे से भरे जवान अवामी संगठन भी, जिनमें से कुछ गिरोहों को मैं पहचानता हूं और उनसे दिली लगाव रखता हूं, मैं जानता हूं कि वे इसी अर्थव्यवस्था के अनेक क्षेत्रों में बड़े अच्छे काम कर रहे हैं, इन सबकी कोशिश, मुल्क की मुश्किलों और अवाम की मुश्किलों को दूर करने पर केन्द्रित होनी चाहिए। इन मुश्किलों को दूर करने का काम कभी बुनियादी आर्थिक कामों के ज़रिए होता है जैसे प्रोडक्शन जो अर्थव्यवस्था का एक बुनियादी काम है, यानी प्रोडक्शन, अर्थव्यवस्था में एक बुनियादी काम है, या मानवताप्रेमी व इस्लामी कामों के ज़रिए होता है जैसे समाज के कमज़ोर तबक़ों की मदद, उनके लिए अवाम की ओर से मदद व सपोर्ट।

अलबत्ता मैंने जो प्रोडक्शन कहा और पैदावार पर ज़ोर दिया तो प्रोडक्शन के साथ इन्वेस्टमेंट भी अहम है। इस बारे में सरकारी अधिकारी भी ध्यान दें और प्राइवेट सेक्टर के लोग भी ध्यान दें, हम 2010 के दशक में पूंजीनिवेश के लेहाज़ से बहुत पीछे रहे। हमारे मुल्क की एक बड़ी मुश्किल पूंजीनिवेश का न होना है। पूंजीनिवेश होना चाहिए यह भी एक अहम काम है।   

तो मैं सभी पहलुओं को मद्देनज़र रखते हुए, इंफ़्लेशन को भी, मुल्क की पैदावार को भी। ये चीज़ें जो अहम हैं, इंफ़्लेशन जो अस्ली मुश्किल है, मुल्क की पैदावार जो निश्चित तौर पर आर्थिक मुश्किलों से मुल्क को निकालने की कुंजियों में से एक है, इन सबको मद्देनज़र रख कर नए साल के नारे का इस तरह एलान करता हूँ: ʺइंफ़्लेशन पर कंट्रोल, प्रोडक्शन में वृद्धिʺ यह इस साल का नारा है। मतलब यह कि अधिकारियों को सारी कोशिश इन दो विषयों पर केन्द्रित करनी चाहिए। पहले सरकारी अधिकारी और उसके बाद जैसा कि मैंने अर्ज़ किया आर्थिक क्षेत्र के लोग, सामाजिक कार्यकर्ता, वे लोग जो कुछ कर सकते हैं, सांस्कृतिक कार्यकर्ता, रेडियो व टेलीविजन विभाग जिसे इन मामलों में माहौल बनाना चाहिए, ये सभी इन दो अस्ली मामलों पर ध्यान दें, पहले इंफ़्लेशन पर कन्ट्रोल यानी मुद्रास्फीति को हक़ीक़त में कंट्रोल करें और कम करें, जहाँ तक मुमकिन हो, कम करें और फिर प्रोडक्शन बढ़ाएं। इसलिए नारा हुआः इन्फ़लेशन पर कंट्रोल, प्रोडक्शन में वृद्धि।

अल्लाह से सभी के लिए तौफ़ीक़ की दुआ करता हूं, अपना सलाम, अक़ीदत और ख़ुलूस, सृष्टि की आत्मा हज़रत इमाम महदी की सेवा में -उन पर हमारी जानें क़ुरबान- पेश करता हूं। अल्लाह से हमारे महान नेता इमाम ख़ुमैनी की पाकीज़ा रूह और प्रिय शहीदों की आत्माओं के लिए बुलंदी की दुआ करता हूं और ईरानी क़ौम के लिए अल्लाह से कामयाबी, ख़ुशी और नई ज़िन्दगी की दुआ करता हूं।

कुछ और बातें भी हैं जो इंशाअल्लाह अपनी तक़रीर में पेश करुंगा।

आप सब पर अल्लाह की रहमत व बरकत हो।

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