Dec १३, २०२३ १२:३१ Asia/Kolkata
  • नोबल पुरस्कार कमेटी अपने घोषित लक्ष्य से भटक गई

नरगिस गुल मुहम्मी को नोबल पुरस्कार देने का समारोह ओस्लो में आयोजित हुआ जिस पर बहुत ज़्यादा टिप्पणियां की गईं।

नोबल कमेटी ने वर्ष 2023 का नोबल पुरस्कार नरगिस गुल मुहम्मदी को दिया है। नरगिस गुल मुहम्मदी ने वर्ष 2009 में ईरान में हुए हंगामों के दौरान मानवाधिकारों के ख़िलाफ़ ज्ञ ईरानी राष्ट्र के हितों के विपरीत गतिविधियों के नतीजे में मई 2010 में गिरफ़तार कर ली गई थी।

मई 2021 में भी गुल मुहम्मदी को देश की व्यवस्था के ख़िलाफ़ प्रचार करने, जेल के कार्यालय में धर्ना देने, जेल के अधकारियों के आदेशों का विरोध करने और खिड़कियां तोड़ने के आरोप में दोबारा गिरफ़तार करके जेल में डाल दिया गया।

इन हालात में नोबल पुरस्कार उस महिला को देना जो एक देश के क़ानून की नज़र में अपराधी है और इस समय जेल में अपनी सज़ा काट रही है राजनैतिक कार्यवाही के अलावा और क्या हो सकता है, यह मानवाधिकार के राजनीतिकरण का सीधा मामला है।

शांति का नोबल पुरस्कार दिए जाने के समारोह में मेज़बानों और मेहमानों ने शांति की बात करने के बजाए देश को तोड़ने और अलगाववाद की बातें कीं।

नार्वे ने इस समारोह के लिए अलगाववादी आतंकी संगठन कूमले के सरग़नाओं को आमंत्रित किया जिसने ईरान के कुर्दिस्तान को अलग करने के लिए आतंकी गतिविधियां कीं और इराक़ की बास सरकार का साथ देता रहा है। इस संगठन ने 2010 में महाबाद में बेगुनाहों का क़त्ले आम किया।

ओस्लो में ईरान के दूतावास ने इस समारोह की आलोचना करते हुए अपने बयान में कहा कि नोबल पुरस्कार कमेटी का ओस्लो में ईरान के ख़िलाफ़ राजनैतिक ड्रामा यह साबित करता है कि शांति और मानवाधिकार जैसे पाकीज़ा विषयों को राजनैतिक स्वार्थों के लिए बड़े निंदनीय रूप से इस्तेमाल किया जा रहा है।

बयान में आगे कहा गया है कि नोबल पुरस्कार कमेटी इससे पहले ही मनाख़िम बेगिन, इस्हाक़ राबिन और शेमून पैरिज़ जैसे अपराधियों को भी शांति का नोबल पुरस्कार दे चुकी है जिन्होंने कई हज़ार बेगुनाह फ़िलिस्तीनियों का जनरसंहार किया। इन हरकतों से इस कमेटी की राजनैतिक छवि ज़ाहिर हो जाती है जबकि इस बात की भी पूरी संभावना है कि यह कमेटी नेतनयाहू जैसे दुर्दांत क़ातिल को भी शांति के नोबल पुरस्कार के लिए नामज़द कर सकती है।

ईरान के दूतावास ने अपने बयान में लिखा है कि यह समारोह तब आयोजित हुआ जब सारी दुनिया ग़ज़ा पट्टी में ज़ायोनी शासन के हाथों 18 हज़ार से अधिक फ़िलिस्तीनियों का क़त्लेआम देख चुकी है और सरकारें इस पर ख़ामोश हैं यह दोहरे रवैए के अलावा और क्या हो सकता है।

समारोह में कूमले जैसे आतंकी संगठन के सरग़नाओं को बुलाना दरअस्ल समरोह के आयोजकों की घटिया सोच और बुरी नीयत का सुबूत है।

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