Feb ०६, २०२४ १०:२५ Asia/Kolkata

इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने ग़ज़्ज़ा में मौजूदा युद्ध का ज़िक्र करते हुए मुस्लिम देशों द्वारा ज़ायोनी शासन को निर्णायक झटका देने का अह्वान किया।

स्वतंत्रता प्रभात और 19 बहमन 1357 को वायुसेना के कर्मियों की ओर से इमाम ख़ुमैनी रहमतुल्लाह अलैह के प्रति निष्ठा की ऐतिहासिक प्रतिज्ञा की वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर, वायुसेना के जवानों और कमांडरों का एक ग्रुप ने सुप्रीम लीडर से मुलाक़ात की थी।

इस मुलाक़ात में वरिष्ठ नेता ने विभिन्न विषयों का उल्लेख किया जिनमें ग़ज़्ज़ा युद्ध भी शामिल था। ग़ज़्ज़ा युद्ध के संबंध में सुप्रीम लीडर के भाषण में पहला बिंदु, इस युद्ध में मानवीय त्रासदियों की घटना थी।

फ़िलिस्तीन के स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा घोषित नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, ग़ज़्ज़ा पट्टी के ख़िलाफ 122 दिनों के ज़ायोनी युद्ध में 27478 लोग शहीद हुए और 66835 लोग घायल हुए जबकि लगभग 7000 लोग अभी भी लापता हैं और मलबे में दबे हुए हैं।

दूसरे शब्दों में यूं कहा जा सकता है कि इस युद्ध में औसतन 225 लोग मारे गये और 542 लोग घायल हुए। यह आंकड़ा ग़ज़्ज़ा पट्टी में ज़ायोनी शासन के नरसंहार का एक स्पष्ट उदाहरण है।

हालांकि इस अपराध के बावजूद मुस्लिम देशों ने ज़ायोनी शासन के अपराधों को रोकने के लिए कोई गंभीर कार्रवाई नहीं की है और यह निष्क्रियता ग़ज़्ज़ा में इस नरसंहार के जारी रहने का एक महत्वपूर्ण कारक भी है।

इस युद्ध को लेकर मुस्लिम सरकारों की चुप्पी और निष्क्रियता की वजह से इस्लामी क्रांति के वरिष्ठ नेता ने सोमवार के अपने भाषण में मुस्लिम देशों से कहा कि वे ज़ायोनी शासन पर निर्णायक प्रहार के लिए अपनी सरकारों पर दबाव डालें।

दरअसल, क्रांति के सर्वोच्च नेता की यह बयान, ग़ज़्ज़ा में अपराध के के बारे में मुस्लिम सरकारों के दृष्टिकोण की आलोचना करता है। इस संबंध में आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली खामेनेई ने इस बात पर ज़ोर दिया कि राष्ट्रों के पास सरकारों को धोखा देने और उन्हें ज़ायोनी शासन का समर्थन बंद करने के लिए मजबूर करने की क्षमता पायी जाती है।

मुस्लिम देशों ने ग़ज़्ज़ा के खिलाफ ज़ायोनी शासन के अपराधों को समाप्त करने के साथ ग़ज्ज़ा की जनता के लिए मुस्लिम देशों के समर्थन की मांग करते हुए कई बार प्रदर्शन किए हैं।

पिछले 4 महीनों के दौरान कई लाखों यमनी लोगों का मार्च इसी परिधि में हुआ है हालांकि मार्चों से ज़ायोनी शासन को कोई निर्णायक झटका नहीं लगा और इस शासन पर ग़ज़्ज़ा के खिलाफ अपराध को रोकने का दबाव नहीं पड़ा।

दूसरे शब्दों में सर्वोच्च नेता ने कहा कि निर्णायक झटके का मतलब इस्लामी देशों और ज़ायोनी शासन के बीच "आर्थिक संबंधों को तोड़ना" है।

ग़ज़्ज़ा युद्ध के दौरान, इस शासन ने यह ज़ाहिर कर दिया है कि उसकी दुखती रग आर्थिक मुद्दा है क्योंकि जहां युद्ध में बहुत अधिक लागत आती है वहीं मुस्लिम देशों के साथ आर्थिक संबंधों को तोड़ने से अवैध अधिकृत क्षेत्रों में लोगों पर दबाव भी पड़ सकता है। (AK)

 

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