इमाम ख़ामनेई इस्लामी क्रांति के नेता कैसे बने? जीवनी + तस्वीरें 
(last modified Sun, 08 Jun 2025 10:58:37 GMT )
Jun ०८, २०२५ १६:२८ Asia/Kolkata
  • आयतुल्लाह ख़ामेनेई
    आयतुल्लाह ख़ामेनेई

पार्सटुडे- 14 ख़ुर्दाद 1368 हिजरी शम्सी को मजलिस-ए ख़ुबरेगान-ए रहबरी अर्थात लिडरशिप एक्सपर्ट काउंसिल की बैठक में, आयतुल्लाह ख़ामनई को, जो उस समय ईरान के राष्ट्रपति थे, काउंसिल के अधिकांश सदस्यों के वोट से इस्लामी व्यवस्था का नेता चुना गया। 

स्वर्गीय इमाम ख़ुमैनी रह. के निधन की ख़बर के बाद, ईरान की लीडरशिप एक्सपर्ट काउंसिल के सदस्यों, जिनका काम नए नेता का चुनाव करना था, को तेहरान बुलाया गया। 14 ख़ुर्दाद 1368 की सुबह की बैठक में, इमाम ख़ुमैनी रह. की वसीयत, जो काउंसिल के पास सुरक्षित थी, आयतुल्लाह ख़ामनेई द्वारा पढ़ी गई। शाम की बैठक में इस्लामी व्यवस्था के नेता के चुनाव पर चर्चा हुई। इस बैठक में, आयतुल्लाह ख़ामनेई को काउंसिल के 74 में से लगभग 60 सदस्यों के वोट से नेता चुना गया।

 

इस लेख में, पार्सटुडे ने इमाम ख़ामेनेई के जीवन और उनके इस्लामी क्रांति के नेता बनने की प्रक्रिया पर एक नज़र डाली है। 

 

जन्म

हज़रत आयतुल्लाह सैयद अली ख़ामनेई, हज्जतुल इस्लाम वल मुस्लेमीन हाज सैयद जवाद हुसैनी ख़ामनेई के पुत्र, 29 फरवरी 1318 को पवित्र शहर मशहद में पैदा हुए। वह परिवार के दूसरे पुत्र हैं। 

डेढ़ साल की उम्र में इस्लामी क्रांति के नेता

 

धार्मिक शिक्षा 

वह स्कूल से धार्मिक शिक्षा (हौज़ा-ए इल्मिया) की ओर चले गए और अपने पिता तथा अन्य उस्तादों से अरबी साहित्य और बुनियादी धार्मिक शिक्षा प्राप्त की। आयतुल्लाह ख़ामनेई ने 18 साल की उम्र से ही मशहद में फ़िक़्ह और उसूल (सिद्धांत) की उच्च शिक्षा शुरू कर दी थी। सन् 1336 में, वह इराक़ के पवित्र शहर नजफ़ की यात्रा पर गए और वहां के बड़े धार्मिक विद्वानों के पाठ्यक्रमों में भाग लिया। उन्होंने अपने पिता को अपना इरादा बताया, लेकिन पिता ने सहमति नहीं दी। कुछ समय बाद, वह मशहद लौट आए। 

 

सन् 1337 से 1343 तक, आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने क़ुम के धार्मिक शिक्षा केंद्र में फ़िक़ह, उसूल और फ़ल्सफ़ा (दर्शनशास्त्र) की उच्च शिक्षा प्राप्त की। सन् 1343 में, जब उन्हें पता चला कि उनके पिता की एक आँख मोतियाबिंद के कारण ख़राब हो गई है, तो वह बहुत दुखी हुए। उन्हें क़ुम में पढ़ाई जारी रखने और पिता की देखभाल करने के बीच चुनाव करना पड़ा। अंततः, उन्होंने क़ुम छोड़कर मशहद जाने और पिता की सेवा करने का निर्णय लिया। 

नौजवानी के समय इस्लामी क्रांति के नेता

 

विवाह

उन्होंने सन् 1343 के शुरुआती पतझड़ में एक युवती ख़ुजस्ता से शादी की, जिससे उनके छह बच्चे दो बेटियाँ और चार बेटे हुए। 

 

इस्लामी क्रांति के नेता अपने बेटों के साथ 

 

राजनीतिक संघर्ष 

आयतुल्लाह ख़ामेनेई, ख़ुद उन्हीं के शब्दों में "इमाम ख़ुमैनी के फ़िक़ही, उसूली, राजनीतिक और क्रांतिकारी शिष्य हैं" सन् 1341 से ही इमाम ख़ुमैनी के शाह की अमेरिका-परस्त और इस्लाम-विरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन का समर्थन करते हुए राजनीतिक संघर्ष में कूद पड़े। उन्होंने 16 साल तक कठिनाइयों, यातनाओं, निर्वासन और जेल की सजा झेली, लेकिन किसी भी खतरे से नहीं डरे। शाही शासन के खिलाफ संघर्ष के दौरान, उन्हें छह बार गिरफ्तार किया गया और हर बार उन्हें यातनाएं दी गईं। 

 

निर्वासन 

शाही शासन ने सन् 1356 के अंत में आयतुल्लाह ख़ामेनेई को गिरफ्तार कर दक्षिण-पूर्वी ईरान के इरानशहर में तीन साल के निर्वासन पर भेज दिया। सन् 1357 के मध्य में, जब ईरान के मुस्लिम और क्रांतिकारी जनता का आंदोलन चरम पर था, उन्हें निर्वासन से मुक्त कर दिया गया और वह मशहद लौट आए। वह शाही शासन के खिलाफ जनता के संघर्ष में सबसे आगे रहे। वर्षों के संघर्ष, त्याग और कठिनाइयों के बाद, उन्होंने ईरान की इस्लामी क्रांति की सफलता और शाही शासन के पतन को देखा। 

 

निर्वासन में इस्लामी क्रांति के नेता

 

क्रांति की सफ़लता के बाद 

इस्लामी क्रांति की सफलता के बाद, आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने इस्लामी गणतंत्र ईरान के लक्ष्यों की प्राप्ति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके कुछ प्रमुख योगदान इस प्रकार हैं

- सन् 1357 में अन्य धार्मिक नेताओं के साथ मिलकर "हिज्ब-ए जुम्हूरी-ए इस्लामी" (इस्लामिक रिपब्लिकन पार्टी) की स्थापना। 

- सन् 1358 में रक्षा मंत्रालय में उप-मंत्री का पद। 

- सन् 1358 में सिपाह-ए पासदारान-ए इंक़ेलाबे-ए इस्लामी (इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड्स) की देख-रेख। 

- सन् 1358 में तेहरान के इमाम जुमा का पद। 

- सन् 1359 में इमाम ख़ुमैनी के प्रतिनिधि के रूप में सुप्रीम डिफेंस काउंसिल में सदस्यता। 

- सन् 1358 में तेहरान से संसद के सदस्य चुने गए। 

- सन् 1359 में इराक़ द्वारा ईरान पर थोपे गये युद्ध के दौरान मोर्चे पर सक्रिय भागीदारी। 

- सन् 1360 में मुनाफ़ेक़ीन अर्थात मुजाहिदीन-ए ख़ल्क के प्राणघातक हमले में घायल होना, लेकिन बच जाना। 

- सन् 1360 में राष्ट्रपति मोहम्मद अली रजाई की शहादत के बाद, आयतुल्लाह ख़ामेनेई 16 मिलियन से अधिक वोटों से ईरान के राष्ट्रपति चुने गए। सन् 1364 से 1368 तक वह दूसरी बार राष्ट्रपति रहे। 

- सन् 1360 में कल्चरल रेवोल्यूशन काउंसिल के अध्यक्ष। 

- सन् 1366 में मजमा-ए तशखीस-ए मस्लहत-ए निज़ाम (एक्सपेडिएंसी काउंसिल) के अध्यक्ष। 

- सन् 1368 में संविधान संशोधन परिषद के अध्यक्ष। 

 

नेता के रूप में चुनाव 

इमाम ख़ुमैनी के निधन के बाद, नए नेता का चुनाव ईरान की एक्सपर्ट काउंसिल द्वारा संविधान के अनुसार किया जाना था। संविधान के अनुच्छेद 5 के अनुसार:  "इमाम महदी (अज) के ग़ैबत के दौरान इस्लामी गणतंत्र ईरान में विलायत-ए अम्र अर्थात नेतृत्व और इमामत उम्मत यानी लोगों का मार्गदर्शन एक न्यायप्रिय, पवित्र, समय के ज्ञान से परिपूर्ण, साहसी, प्रबंधक और योजनाकार फ़क़ीह (धार्मिक विद्वान व धर्मशास्त्री) के हाथों में होगा, जिसे अधिकांश लोग नेता के रूप में स्वीकार करते हों। यदि ऐसा कोई फ़क़ीह न हो, तो नेता या नेतृत्व परिषद या शूरा-ए रहबरी का गठन किया जाएगा।

 

इस प्रकार, 14 ख़ुर्दाद 1368 को, आयतुल्लाह ख़ामेनेई को, जो उस समय ईरान के राष्ट्रपति थे, 74 में से लगभग 60 सदस्यों के वोटों से इस्लामी व्यवस्था का नेता चुना गया। 

 

इमाम ख़ामेनेई

 

इमाम ख़ुमैनी रह. के पुत्र ने क्या कहा

हाज सैयद अहमद ख़ुमैनी, इमाम ख़ुमैनी रह. के पुत्र, ने आयतुल्लाह ख़ामेनेई के चुनाव के बाद उन्हें बधाई देते हुए कहा

इमाम ने अक्सर आपको एक मुजतहिद अर्थात धार्मिक विद्वान और इस्लामी व्यवस्था के सर्वश्रेष्ठ नेता के रूप में बताया था। मैं और इमाम के परिवार के सभी सदस्य एक्सपर्ट काउंसिल के सदस्यों का आभार व्यक्त करते हैं, क्योंकि हम मानते हैं कि इमाम की आत्मा इस चुनाव से प्रसन्न हुई है। मैं एक छोटे भाई की तरह, नए नेता के आदेशों का पालन करूंगा।"

 

इमाम ख़ुमैनी रह. के साथ इस्लामी क्रांति के नेता और इमाम ख़ुमैनी के बेटे सय्यद अहमद ख़ुमैनी रह.

 

इमाम ख़ुमैनी रह. के मार्ग का अनुसरण

आयतुल्लाह ख़ामेनेई ने नेता चुने जाने के बाद, इमाम ख़ुमैनी रह. को "क्रांति के पवित्र वृक्ष की जड़" बताया और कहा: "हम इमाम ख़ुमैनी रह. के मार्ग पर ही चलेंगे।" MM