ईरान के खिलाफ़ क्यों राजनीतिक युद्ध तेज़ हो गया है?
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पार्सटुडे - ज़ायोनी शासन और अमेरिका ने 12 दिनों के युद्ध के बाद ईरान के खिलाफ़ राजनीतिक युद्ध छेड़ दिया है। यह ऐसी स्थिति में है जब कुछ यूरोपीय देशों ने भी राजनीतिक दबाव में वृद्धि कर दी है।
(last modified 2025-08-02T11:04:41+00:00 )
Aug ०२, २०२५ १६:३० Asia/Kolkata
  • ईरान के खिलाफ़ क्यों राजनीतिक युद्ध तेज़ हो गया है?
    ईरान के खिलाफ़ क्यों राजनीतिक युद्ध तेज़ हो गया है?

पार्सटुडे - ज़ायोनी शासन और अमेरिका ने 12 दिनों के युद्ध के बाद ईरान के खिलाफ़ राजनीतिक युद्ध छेड़ दिया है। यह ऐसी स्थिति में है जब कुछ यूरोपीय देशों ने भी राजनीतिक दबाव में वृद्धि कर दी है।

12 दिनों के युद्ध के बाद, तेल अवीव और वाशिंगटन ने ईरान के खिलाफ़ संज्ञानात्मक व राजनीतिक युद्ध शुरू कर दिया है। ज़ायोनी शासन और अमेरिका ने ईरानी कमांडरों की हत्या और परमाणु प्रतिष्ठानों पर हमले का हवाला देकर खुद को युद्ध का विजेता बताने की कोशिश की है, बिना यह दिखाए कि ईरानी मिसाइलों ने उन्हें कितना मानवीय, आर्थिक और बुनियादी ढांचागत नुकसान पहुंचाया है। इसी क्रम में, ज़ायोनी शासन द्वारा ईरान के खिलाफ़ ग़ैर-सैन्य लक्ष्यों सहित कई हमलों के वीडियो जारी किए गए, ताकि ईरानी समाज में डर और आतंक फ़ैलाया जा सके।

 

अमेरिका और इज़राइल की इस रणनीति के साथ-साथ, कुछ यूरोपीय देशों ने भी ईरान के खिलाफ़ राजनीतिक दबाव बढ़ाया है। अल्बानिया, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, कनाडा, डेनमार्क, स्पेन, अमेरिका, फिनलैंड, फ्रांस, नीदरलैंड्स, ब्रिटेन, स्वीडन और चेक गणराज्य की सरकारों ने गुरुवार शाम एक संयुक्त बयान जारी करके दावा किया कि उनके यहाँ ईरानी खुफिया एजेंसियों से जुड़े बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ रहा है। फ्रांस और अमेरिका के विदेश मंत्रालयों की वेबसाइट पर प्रकाशित इस बयान में कहा गया है कि "हम एकजुट होकर ईरानी खुफिया सेवाओं द्वारा यूरोप और उत्तरी अमेरिका में हत्याओं, अपहरणों और लोगों को प्रताड़ित करने के प्रयासों का विरोध करते हैं। ये कार्य हमारी संप्रभुता का स्पष्ट उल्लंघन हैं।"

 

इस राजनीतिक युद्ध का प्रमुख उद्देश्य ईरानी अधिकारियों के निर्णय लेने पर प्रभाव डालना है। अमेरिका और उसके सहयोगी राजनीतिक युद्ध के माध्यम से ईरानी अधिकारियों से वार्ता की मेज़ पर राजनीतिक रियायतें हासिल करना चाहते हैं। यह राजनीतिक युद्ध सैन्य युद्ध का ही विस्तार है। अब ये देश ज़ायोनी शासन के साथ मिलकर ईरानी अधिकारियों के मानसिक संतुलन को बिगाड़ने का प्रयास कर रहे हैं।

 

इस युद्ध का एक अन्य लक्ष्य यह है कि वे 12 दिवसीय युद्ध में ईरान की सैन्य और राजनीतिक सफलताओं को विकृत करके उसकी कमियों को उजागर करना चाहते हैं। दूसरे शब्दों में, वे कमियों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने और ईरानी जनता के बीच युद्ध जैसा माहौल बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि लोगों के मन में मानसिक अशांति और व्यक्तिगत व सामाजिक चिंताएँ पैदा की जा सकें और उनके दैनिक जीवन में व्यवधान उत्पन्न किया जा सके।

 

राजनीतिक युद्ध का एक अन्य लक्ष्य ईरान की राष्ट्रीय एकता को निशाना बनाना है। जब ज़ायोनी शासन सैन्य हमले कर रहा था, तब ईरान के विभिन्न वर्गों - विभिन्न जातीय समूहों से लेकर विचारधाराओं तक, यहाँ तक कि सरकार के कुछ आलोचकों ने भी, देश के अंदर और बाहर, राष्ट्रीय सम्मान की रक्षा की साझी भावना के साथ समर्थन जताया। इससे ज़ायोनी शासन और अमेरिका क्रोधित हो गए हैं और अब वे किसी भी तरह से इस एकता को कमज़ोर करने और ईरान में फ़िर से आंतरिक युद्ध पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।

 

इस युद्ध का एक अन्य लक्ष्य "ईरानोफोबिया" फ़ैलाना है। अमेरिका, ज़ायोनी शासन और कुछ यूरोपीय देश दशकों से ईरानोफोबिया की रणनीति अपना रहे थे, लेकिन यह रणनीति विफ़ल रही थी। अब वे झूठे सुरक्षा आरोपों के साथ एक बार फिर दुनिया भर में ईरानोफोबिया फैलाने की कोशिश कर रहे हैं।

 

अंत में, ईरान के खिलाफ़ राजनीतिक युद्ध का एक अन्य महत्वपूर्ण लक्ष्य वैश्विक जनमत को ग़ाज़ा के लोगों के खिलाफ़ ज़ायोनी शासन के अपराधों से भटकाना है। इसी संदर्भ में, ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माईल बक़ाई ने अमेरिका, फ्रांस और कुछ अन्य पश्चिमी देशों द्वारा ईरान के खिलाफ़ निराधार और हास्यास्पद आरोपों को दोहराने की कार्रवाई की निंदा की है और इसे स्पष्ट प्रक्षेपण और जनमत को मुख्य मुद्दे – यानि अवैध अधिकृत फ़िलिस्तीन में नरसंहार - से भटकाने का प्रयास बताया है। mm