कैपिचुलेशन क्या है और इमाम खुमैनी रह. ने इसका विरोध क्यों किया?
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कैपिचुलेशन या विदेशी नागरिकों को न्यायिक छूट एक ऐसा समझौता होता है जिसके अनुसार किसी विदेशी देश के नागरिकों को मेज़बान देश के न्यायालयों में मुक़दमा चलाने से छूट मिल जाती है।
(last modified 2025-10-21T13:34:39+00:00 )
Oct २०, २०२५ १९:२४ Asia/Kolkata
  • ईरान की इस्लामी व्यवस्था के महान संस्थापक इमाम ख़ुमैनी (रह.)
    ईरान की इस्लामी व्यवस्था के महान संस्थापक इमाम ख़ुमैनी (रह.)

कैपिचुलेशन या विदेशी नागरिकों को न्यायिक छूट एक ऐसा समझौता होता है जिसके अनुसार किसी विदेशी देश के नागरिकों को मेज़बान देश के न्यायालयों में मुक़दमा चलाने से छूट मिल जाती है।

इसी प्रकार कैपिचुलेशन के अनुसार वे उस देश में कोई अपराध भी करें तो उनका मुक़दमा केवल उनके अपने देश की अदालतों में चलेगा न कि उस देश में जहाँ अपराध हुआ।

 

वास्तव में यह कानून किसी देश की राष्ट्रीय सम्प्रभुता का उल्लंघन करता है, क्योंकि इससे देश के अपने न्यायालयों का अधिकार खत्म हो जाता है और विदेशी नागरिक स्थानीय लोगों से श्रेष्ठ स्थिति में आ जाते हैं।

 

 

पार्स टुडे – तथाकथित कैपिचुलेशन या वाणिज्यिक न्यायाधिकार  समझौते औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा देशों पर प्रभाव जमाने के लिए उपयोग किए जाने वाले कानूनी साधनों में से एक थे।

 

कैपिचुलेशन समझौते मेज़बान देश के न्यायिक अधिकार को विदेशी नागरिकों के मामलों में समाप्त कर देते थे जिससे विदेशियों को अर्ध-औपनिवेशिक प्रकार की न्यायिक छूट मिल जाती थी। इस प्रकार ये समझौते मेज़बान देश की कानूनी और राजनीतिक स्वतंत्रता पर प्रश्नचिह्न लगाते थे।

 

पार्स टुडे की रिपोर्ट के अनुसार 1960 के दशक में ईरान में अमेरिका की सैन्य उपस्थिति बढ़ने के साथ ही अमेरिकी सलाहकारों को न्यायिक छूट देने का विषय उठ खड़ा हुआ।

 

अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने 1950 में नाटो सदस्य देशों में अपने सैनिकों की कानूनी स्थिति तय करने के लिए एक प्रस्ताव पेश किया था। यह प्रस्ताव ईरान में अमेरिकी दूतावास के समर्थन और उस समय के प्रधानमंत्रियों अली अमीनी से लेकर असदुल्लाह आलम और अंततः हुसैन अली मंसूर की कोशिशों से एक विधेयक के रूप में ईरान की संसद मजलिस-ए-शूरा-ए-मेली में पेश किया गया।

 

अक्टूबर 1963 में वाणिज्यिक न्यायाधिकार से संबंधित एक अस्पष्ट विधेयक संसद में भेजा गया लेकिन पारित नहीं हुआ। जब हुसैन अली मंसूर सत्ता में आए, तो कैपिचुलेशन विधेयक को 61 मतों के विरोध में 74 मतों से पारित कर दिया गया। कुछ सांसदों ने मतदान में भाग नहीं लिया परंतु सभापति ने उनके मतों को गिने बिना विधेयक के पारित होने की घोषणा कर दी। यह कार्यवाही अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों की मौजूदगी में हुई और देश में व्यापक प्रतिक्रिया का कारण बनी।

 

इस विधेयक के पारित होने की सूचना संसद के एक कर्मचारी के माध्यम से इमाम ख़ुमैनी के साथियों तक पहुँची। जब उन्हें इसकी सत्यता का विश्वास हुआ तो उन्होंने 4  नवंबर 1964 को अपना ऐतिहासिक भाषण दिया और उसी दिन लिखित संदेश में इस कानून को ईरानी राष्ट्र की दासता का दस्तावेज़ कहा।

 

इमाम ख़ुमैनी ने निर्भीक स्वर में अमेरिका को इस्लामी देशों की बदहाली का प्रमुख कारण बताया और कहा:

 

दुनिया जान ले कि ईरानी राष्ट्र और मुस्लिम देशों की हर मुसीबत की जड़ विदेशियों में है। यह अमेरिका है... अमेरिका ही है जो ईरान की संसद और सरकार पर दबाव डालता है कि वे इस तरह का अपमानजनक क़ानून पारित करें जो हमारी सभी इस्लामी और राष्ट्रीय प्रतिष्ठाओं को रौंद देता है।

 

यह विरोध न केवल जनता की चेतना जगाने वाला साबित हुआ बल्कि इसके परिणामस्वरूप 12 नवंबर अर्थात चार आबान को इमाम ख़ुमैनी को गिरफ़्तार कर निर्वासित कर दिया गया। उनका यह रुख इस्लामी क्रांति के औपनिवेशिक-विरोधी विचारधारा के निर्माण में एक निर्णायक मोड़ बन गया।

 

फरवरी 1979 में इस्फ़हान के लोगों ने एक अमेरिकी नागरिक पर मुकदमा चलाकर, जिसने एक ड्राइवर को घायल किया था, कैपिचुलेशन कानून के व्यावहारिक अंत की शुरुआत की। यह कदम जनता द्वारा राष्ट्रीय सम्प्रभुता की पुनर्स्थापना का प्रतीक था। अंततः 23 मई 1979 को कैपिचुलेशन समझौता औपचारिक रूप से रद्द कर दिया गया और विदेशी प्रभुत्व के इस प्रतीक को ईरान की न्यायिक संरचना से स्थायी रूप से हटा दिया गया। MM