माख़ूनिक, दक्षिणी खोरासान का 'लिलिपुट गाँव' और उसका सदियों पुराना रहस्य
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माख़ूनिक, दक्षिणी खोरासान का 'लिलिपुट गाँव' और उसका सदियों पुराना रहस्य
पार्सटुडे: प्रांतीय केंद्र बीरजंद से लगभग 143 किलोमीटर दूर माख़ूनिक गाँव स्थित है; एक ऐसी जगह जिसे दुनिया के सात अजूबे गाँवों में से एक माना जाता है और 'लिलिपुटों की धरती' का खिताब मिला है।
लगभग एक सदी पहले तक, माख़ूनिक गाँव के कई निवासियों की लंबाई एक मीटर से कम थी और वे ऐसे घरों में रहते थे जो उनके छोटे कद के अनुरूप बनाए गए थे। पार्सटुडे द्वारा प्रेस टीवी के हवाले से प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार, माख़ूनिक का असामान्य अतीत और एक-दूसरे से सटे, सघन मिट्टी के घर हमेशा से पर्यटकों और शोधकर्ताओं के मन को आकर्षित करते रहे हैं।
माख़ूनिक की कहानी पौराणिक कथाओं और मानव विज्ञान का मिश्रण है। जहां 'स्विफ्ट' ने गुलिवर ट्रेवल्स में लिलिपुट नामक छोटे लोगों की एक काल्पनिक भूमि का चित्रण किया था, वहीं माख़ूनिक के नाटे कद के निवासी वास्तव में अस्तित्व में थे।
गाँव की वास्तुकला योजना, कम छतों, संकरे दरवाजों और भूमिगत फर्श वाले मिट्टी के घर, ईरान के सबसे दूरस्थ इलाकों में से एक में जीवन की शारीरिक और पर्यावरणीय परिस्थितियों की छवि प्रस्तुत करते हैं।
समय की गर्त में खोया गाँव
'माख़ूनिक' नाम की स्थानीय व्याख्याओं में रहस्यमयता झलकती है। कुछ इसे इलाके के ठंडे मौसम से जोड़ते हैं तो दूसरों का कहना है कि यह आसपास के पहाड़ों में एक दरार की ओर इशारा करता है।
एक अन्य सिद्धांत के अनुसार, माख़ूनिक नाम प्राचीन पहलवी भाषा के दो शब्दों से लिया गया है: 'माह' और 'ख़ूनिक' (जिसका अर्थ है धरती या स्थान), जो मिलकर 'चंद्रमा की धरती' का अर्थ देता है।
धूप से तपी पहाड़ियों और पथरीली जमीन के बीच बसा यह गाँव, ढलानों पर बने मिट्टी के घरों के एक समूह जैसा दिखाई देता है।
माख़ूनिक के घर आधे जमीन में धंसे हुए बनाए गए हैं ताकि सर्दियों में गर्मी और गर्मियों में ठंडक बनी रहे। प्रवेश द्वार एक मीटर से भी कम ऊँचे हैं और हर नए आगंतुक को अंदर आने के लिए झुकना पड़ता है। घरों के अंदर, फर्श जमीन की सतह से एक या दो सीढ़ी नीचे हैं और कमरों का आकार अनियमित है ताकि वे प्राकृतिक ढलान के अनुरूप हों।
हालांकि कुछ स्थानीय बुजुर्गों का मानना है कि इसकी जड़ें सफ़वी काल तक जाती हैं।
कुछ ऐतिहासिक स्रोत यह भी बताते हैं कि सफ़वी शासकों ने इस क्षेत्र के विकास में भूमिका निभाई थी और इसे अपनी पूर्वी सीमाओं की रक्षा और प्रवासन नीतियों का हिस्सा बनाया था।
हालाँकि, आसपास खोजी गई प्राचीन पत्थर की नक्काशियाँ इस इलाके में और भी पुराने मानव बस्तियों के होने की जानकारी देती हैं।
माख़ूनिक में छोटे कद की उत्पत्ति
माख़ूनिक के लोगों की उत्पत्ति प्रवासन से जुड़ी हुई है। मौखिक कथाओं के अनुसार लगभग 400 साल पहले एक अफ़गान परिवार जो मुश्किलों से भागा था, ईरान की इस दूरस्थ भूमि में बस गया।
पीढ़ियों तक, उन्होंने एक छोटा और संगठित समुदाय बनाया जो लंबे समय तक बाहरी दुनिया से कटा रहा। अधिकांश विवाह उसी सीमित पारिवारिक दायरे में होते थे और यह निकट संबंधी विवाह का चलन सदियों तक जारी रहा।
इलाके का शुष्क और बेरहम भूदृश्य पशुपालन को लगभग असंभव बना देता था और खेती केवल शलजम, जौ, अनाज और खजूर जैसे फल 'बेर' (जूजूब) जैसी मजबूत फसलों तक सीमित थी।
गाँव के लोग मुख्य रूप से शाकाहारी थे और उनका भोजन स्थानीय साधारण व्यंजनों पर आधारित था।
वैज्ञानिकों और नृवंशविज्ञानियों ने जिन्होंने इस समुदाय का अध्ययन किया है, निवासियों के असामान्य रूप से छोटे कद की व्याख्या के लिए विभिन्न सिद्धांत दिए हैं।
कुछ इसे आनुवंशिक कारकों और अंतःविवाह का परिणाम मानते हैं। दूसरे पर्यावरणीय कारणों जैसे कि कुपोषण और खनिजों की कमी वाले पानी की ओर इशारा करते हैं; स्थानीय कुओं में पारे (मर्करी) के अंश भी बताए गए थे।
शोधकर्ताओं का मानना है कि आनुवंशिक अलगाव और पोषण की कमी के संयोजन ने ग्रामीणों की औसत लंबाई को ईरान और पड़ोसी देशों के अन्य लोगों की तुलना में लगभग आधा मीटर कम रखा होगा।
बीसवीं सदी के मध्य से, सड़कों के निर्माण और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं व पोषण तक पहुंच के साथ, यह स्थिति बदल गई।
आज माख़ूनिक के अधिकांश निवासियों की लंबाई सामान्य है, हालांकि उनके पूर्वजों के छोटे कद के संकेत अभी भी बाकी हैं।
माख़ूनिक की वास्तुकला और रीति-रिवाज
गाँव के लगभग 200 पत्थर और मिट्टी के घरों में से, 70 से 80 घर असामान्य रूप से छोटे हैं; छतें 1.5 से 2 मीटर के बीच ऊँची हैं और कुछ तो 1.4 मीटर तक पहुँचती हैं, जो पिछली पीढ़ियों की जीवनशैली को दर्शाती हैं।
घर अक्सर आसपास की पहाड़ियों के रंग में घुल-मिल जाते हैं और इस तरह बनाए गए हैं कि कठोर सर्दियों और तपती गर्मियों को सहन कर सकें। इमारतों का मिट्टी का रंग कभी हमलावरों या अफ़गान सीमावर्ती कबीलों के आक्रमण के खिलाफ छलावरण का काम करता था।
इन 200 घरों में से कई ने अभी भी अपना पारंपरिक रूप बनाए रखा है, हालाँकि हाल के वर्षों में नई ईंट की इमारतें भी धीरे-धीरे दिखाई देने लगी हैं। आधुनिकीकरण के बावजूद, प्रामाणिक वास्तुकला अभी भी पर्यटकों को आकर्षित करती है और गाँव को एक ऐतिहासिक वातावरण प्रदान करती है।
माख़ूनिक की संकरी गलियों में घूमते हुए, आज भी एक-दूसरे से सटे और ढलानों में आधे धंसे हुए घरों को देखा जा सकता है, जो छोटे दरवाजों से जुड़े हुए हैं और बीते दिनों की याद दिलाते हैं।
गाँव के लोगों की सांस्कृतिक रीति-रिवाज भी सालों से आगंतुकों को चकित करते रहे हैं। पीढ़ियों तक, माख़ूनिक के लोग एक सख्त नैतिक सिद्धांत से बंधे रहे जो धूम्रपान, शिकार या मांस खाने जैसी आदतों पर रोक लगाता था।
बुजुर्ग इन कामों को पाप मानते थे। यहाँ तक कि चाय पीना भी एक वर्जना थी; आंशिक रूप से धार्मिक मान्यताओं के कारण और आंशिक रूप से इसलिए कि व्यापारिक संपर्कों की कमी ने ऐसी वस्तुओं को दुर्गम बना दिया था।
टेलीविजन का भी दशकों तक जबरदस्त विरोध रहा और पुरानी पीढ़ियाँ इसे घर में 'शैतान का द्वार' मानती थीं।
ये रिवाज समय के साथ बदल गए हैं, लेकिन फिर भी समाज के गहन रूढ़िवाद और उसके बंद विश्वदृष्टि का प्रतिबिंब हैं।
आज के ईरान में, माख़ूनिक कल्पना और वास्तविकता के बीच खड़ा है। उसकी मिट्टी की गलियों में घूमने वाले पर्यटकों के लिए, यह गाँव इस बात का प्रतिबिंब है कि कैसे समुदाय जीवित रहते हैं, बदलते हैं और सभ्यताओं की कहानियों को नया अर्थ देते हैं। (AK)
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