फ़िलिस्तीन की रक्षा इस्लामी दुनिया का सबसे अहम कर्तव्य है, वरिष्ठ नेता
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इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने इस्लामी देशों में त्रासदियों को रोकना, राष्ट्रों को जागरुक बनाना और मुसलमानों के बीच एकता पैदा करना इस्लामी जगत के विद्वानों और इस्लामी देशों के राष्ट्राध्यक्षों का कर्तव्य बताया है।
(last modified 2023-04-09T06:25:50+00:00 )
Aug ३१, २०१७ १५:४५ Asia/Kolkata
  • फ़िलिस्तीन की रक्षा इस्लामी दुनिया का सबसे अहम कर्तव्य है, वरिष्ठ नेता

इस्लामी क्रान्ति के वरिष्ठ नेता ने इस्लामी देशों में त्रासदियों को रोकना, राष्ट्रों को जागरुक बनाना और मुसलमानों के बीच एकता पैदा करना इस्लामी जगत के विद्वानों और इस्लामी देशों के राष्ट्राध्यक्षों का कर्तव्य बताया है।

गुरुवार को आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने हाजियों के नाम अपने संदेश में साम्राज्यवादी शक्तियों की मुसलमानों के बीच फूट डालने की नीतियों का उल्लेख किया और कहा, “फ़िलिस्तीन की रक्षा और उस राष्ट्र का साथ देना जो लगभग 70 साल से अपने हड़पे गए देश को वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहा है, हम सबका सबसे बड़ा कर्त्वय है।”

उन्होंने इस्लामी समाज के लिए हज के आध्यात्मक व राजनैतिक और इसी प्रकार व्यक्तिगत व सामाजिक दोनों पहलुओं को ज़रूरी बताते हुए कहा, “आज भौतिकवादी शक्तियां आधुनिक उपकरणों से लोगों के मन को बंधक बना रही हैं तो दूसरी ओर वर्चस्ववादी शक्तियां मुसलमानों को आपस में लड़ाने और इस्लामी देशों को अशांति व मतभेद का केन्द्र बनाने में लगी हुयी हैं।”

वरिष्ठ नेता ने बल दिया कि हज इस्लामी जगत को इन दोनों मुसीबतों से मुक्ति दिला सकता है। हज एक ओर मन को बुराइयों से पाक कर उसमें ईश्वर से डर की शमा जला सकता है और दूसरी ओर इस्लामी जगत की कटु वास्तविकताओं की ओर से आंखें खोल सकता है, उसे दूर करने के लिए संकल्प मज़बूत कर सकता है और तन मन को क़दम उठाने के लिए तय्यार कर सकता है।

आयतुल्लाहिल उज़्मा सय्यद अली ख़ामेनई ने इस बात का उल्लेख करते हुए कि आज इस्लामी जगत अशांति का शिकार है, कहा कि नैतिकता व आध्यात्म से दूरी और राजनैतिक अशांति का मुख्य कारण हमारी लापरवाही और दुश्मन के निर्दयी हमले हैं और हमने इन हमलों के मुक़ाबले में अपने धार्मिक व बौद्धिक कर्तव्य पर अमल नहीं किया।

वरिष्ठ नेता ने कहा, “ज़ायोनी दुश्मन इस्लामी जगत के केन्द्र में साज़िश कर रहा है और हम फ़िलिस्तीन की मुक्ति के अपने निश्चित कर्तव्य से लापरवाह, सीरिया, इराक़, यमन, लीबिया और बहरैन में आंतरिक लड़ाई और अफ़ग़ानिस्तान व पाकिस्तान और दूसरी जगहों पर आतंकवाद में उलझे हुए हैं।”

वरिष्ठ नेता ने बल दिया कि म्यंमार के पीड़ितों जैसे पीड़ित अल्पसंख्यक मुसलमानों की रक्षा और इन सबसे अहम फ़िलिस्तीन की रक्षा और उस राष्ट्र का बिना झिझक साथ देना ज़रूरी है जो लगभग 70 साल से अपने हड़पे गए देश को वापस पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।(MAQ/N)