परमाणु समझौते को बाक़ी रखने के लिए यूरोप व्यवहारिक क़दम उठाए
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2015 में ईरान और 5+1 के बीच होने वाला परमाणु समझौता, विश्व शांति व्यवस्था के लिए एक एहम क़दम माना जाता है। लेकिन मई 2018 में अमरीका के इस समझौते से निकलने के बाद, इस पर कुछ नकारात्मक प्रभाव ज़रूर पड़े हैं, हालांकि इस पर प्रतिक्रिया स्वरूप समझौते में शामिल अन्य पक्षों ने अमरीका के बिना ही इसे आगे बढ़ाने का संकल्प लिया है।
(last modified 2023-04-09T06:25:50+00:00 )
Nov २८, २०१८ १७:०४ Asia/Kolkata
  • परमाणु समझौते को बाक़ी रखने के लिए यूरोप व्यवहारिक क़दम उठाए

2015 में ईरान और 5+1 के बीच होने वाला परमाणु समझौता, विश्व शांति व्यवस्था के लिए एक एहम क़दम माना जाता है। लेकिन मई 2018 में अमरीका के इस समझौते से निकलने के बाद, इस पर कुछ नकारात्मक प्रभाव ज़रूर पड़े हैं, हालांकि इस पर प्रतिक्रिया स्वरूप समझौते में शामिल अन्य पक्षों ने अमरीका के बिना ही इसे आगे बढ़ाने का संकल्प लिया है।

इस संदर्भ में यूरोपीय संघ की विदेश मामलों की प्रमुख फ़ेडरिका मोगरेनि ने ईरान की परमाणु ऊर्जा संस्था के प्रमुख अली अकबर सालेही से मुलाक़ात के बाद कहा, क्षेत्र और यूरोप में शांति व स्थिरता के लिए दोनों पक्षों ने परमाणु समझौते को बाक़ी रखने निर्णल लिया है, इससे अंतरराष्ट्रीय समझौतों का सम्मान भी बाक़ी रहेगा।

मोगरेनि के इस बयान से परमाणु समझौते को लेकर यूरोपीय संघ का रुख़ स्पष्ट हो गया है। यूरोपीय संघ का मानना है कि अगर यह समझौता ख़त्म होता है तो इसका विश्व शांति पर काफ़ी नाकारात्मक असर पड़ेगा और यूरोपीय कूटनीति की साख दांव पर लग जाएगी।

यूरोपीय संघ के ऊर्जा विभाग के महासचिव मिगुएल एरियस कानाटे का कहना है कि एक अंतरराष्ट्रीय समझौता होने के रूप में ईरान के साथ किए गए परमाणु समझौते का सम्मान किया जाना ज़रूरी है, क्योंकि इसका संबंध अंतरराष्ट्रीय शांति व्यवस्था से जुड़ा हुआ है।

इन समस्त बातों के बावजूद, यूरोपीय संघ ने अभी तक एसपीवी को लागू नहीं किया है, ईरान के ख़िलाफ़ अमरीकी प्रतिबंधों से बचने का एक अच्छा समाधान साबित हो सकता है।