शहीद फ़ख़्रीज़ादे की हत्या और ईरान के इंतेक़ाम का मुद्दा, जीत के क़रीब पहुंच चुकी रणनीति को आवेश और जज़्बात में नुक़सान नहीं पहुंचने देगा ईरानः तस्नीम न्यूज़ का जायज़ा
(last modified Mon, 30 Nov 2020 04:42:59 GMT )
Nov ३०, २०२० १०:१२ Asia/Kolkata
  • शहीद फ़ख़्रीज़ादे की हत्या और ईरान के इंतेक़ाम का मुद्दा, जीत के क़रीब पहुंच चुकी रणनीति को आवेश और जज़्बात में नुक़सान नहीं पहुंचने देगा ईरानः तस्नीम न्यूज़ का जायज़ा

इलाक़े में जो हालात हैं और ईरान की जो पोज़ीशन है उसे देखते हुए यह सवाल उठता है कि ईरान और ज़ायोनी शासन की लड़ाई इस समय किस स्थिति में है?

गत शुक्रवार को परमाणु व रक्षा वैज्ञानिक मोहसिन फ़ख़्रीज़ादे आतंकी हमले में शहीद हो गए। इसके अलावा भी कई परमाणु वैज्ञानिक शहीद किए गए और इन सभी आतंकी हमलों में संदेह की सुई इस्राईल और अमरीका की ओर ही घूमती नज़र आई।

पश्चिमी और इस्राईली मीडिया ने हालिया दिनों ईरान के बारे में यह तसवीर पेश करने की कोशिश की कि यह देश पूरी तरह असुरक्षित हो गया है।

इसमें तो कोई शक नहीं कि शहीद फ़ख़्रीज़ादे जैसे वैज्ञानिक का चला जाना बहुत बड़ा नुक़सान है और इस आतंकी हमले का मुंहतोड़ जवाब दिना जाना ज़रूरी है इसमें भी कोई संदेह नहीं है मगर यह भी देखना अच्छा होगा कि ज़ायोनी शासन और अमरीका से ईरान की जंग इस समय किस पोज़ीशन में हैं?

अगर हम केवल शुक्रवार की घटना पर दृष्टि और ध्यान केन्द्रित करें तो ज़मीनी सच्चाई की पूरी तसवीर सामने नहीं आएगी। अगर पूरी तसवीर देखनी है तो हालात का व्यापक दृष्टि से जायज़ा लेना होगा। पहली चीज़ तो यह है कि ईरान और इस्राईल का मुक़ाबला कई दशकों से चल रहा है। इस्राईल एक ग़ैर क़ानूनी शासन है जिसकी स्थापना फ़िलिस्तीन की धरती पर संकटों और विवादों के हालात में हुई है। इस्राईल को यह यक़ीन है कि उसका अस्तित्व उसी समय तक जारी रह सकता है जब तक इस इलाक़े में अलग अलग कारणों से विवाद चलता रहे।

दूसरी बात यह है कि इस्राईल को यह भी पता है कि ईरान इस्लामी जगत और फ़िलिस्तीन का बहुत बड़ा समर्थक है। तीसरी बात यह है कि कई सौ परमाणु वारहेड मौजूद होने के बावजूद इस्राईल को ईरान के नागरिक परमाणु कार्यक्रम से हमेशा भय लगा रहता है।

ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को कामयाबी से आगे ले गया और एक आइडियल पोज़ीशन में पहुंच गया। इस्राईल ने जार्ज बुश जूनियर के शासनकाल में ईरान में यूरेनियम संवर्धन को ज़ीरो तक पहुंचाने की कोशिश की मगर ईरान का परमाणु कार्यक्रम लगातार बढ़ता रहा और अब भी विकसित हो रहा है। इस स्थिति से खीझ कर इस्राईल ने ईरान के परमाणु वैज्ञानिकों की हत्या की रणनीति बनाई और साइबर अटैक भी किए।

वैज्ञानिकों पर हमलों का साफ़ मतलब यह है कि प्रतिबंध की रणनीति नाकाम हो चुकी है। हमारे वैज्ञानिक जब शहीद होते हैं तो इससे देश को होने वाले नुक़सान की भरपाई असंभव है मगर देश का परमाणु कार्यक्रम इस जटिल प्रारूप पर आधारित है कि उसे कुछ वैज्ञानिकों को शहीद करके ख़त्म और गतिहीन नहीं किया जा सकता। शहीदों के ख़ून से इस कार्यक्रम की गति कम होने के बजाए बढ़ जाती है।

अब अगर स्टैटेजिक नज़र से जायज़ा लिया जाए तो परमाणु वैज्ञानिकों की शहादत से पहुंचने वाले भारी नुक़सान के बावजूद यह हक़ीक़त साफ़ नज़र आएगी कि ईरान नागरिक न्युक्लियर ऊर्जा के मैदान में परमाणु ताक़त बन चुका है यानी ईरान की रणनीति अपनी मंज़िल तक पहुंच चुकी है।

अमरीका और इस्राईल से ईरान का टकराव केवल परमाणु ऊर्जा के मैदान तक सीमित नहीं है। ईरान ने हालिया दशकों में लेबनान के हिज़्बुल्लाह, फ़िलिस्तीन के हमास और जेहादे इस्लामी संगठनों की मदद की जिन्हें इस्राईल अपने सिर पर लटकती हुई तलवार के रूप में देख रहा हैं इराक़ और सीरिया में ईरान की उपस्थिति काफ़ी व्यापक हो चुकी है। कई संगठनों और देशों पर आधारित प्रतिरोधक मोर्चा जिसे कहा जाता है उसका नेतृत्व ईरान के हाथ में है और इसी मोर्चे ने इस्राईलियों और अमरीकियों की नींद हराम कर दी है। अब इसी मोर्चे में यमन और दूसरे देशों के संगठन भी शामिल होते जा रहे हैं। यानी इलाक़े में नयी व्यवस्था तैयार हो रही है जिसका ध्रुव ईरान है। इसी प्रक्रिया को बाधित करने के लिए इस्राईल और अमरीकी विध्वंसक हरकतें कर रहे हैं।

आज इलाक़े की जो हालत है उसमें इस्राईल को यह नज़र आ रहा है कि वह ईरान के घेरे में फंस गया है। अमरीकियों को भी पता है कि इस पूरे इलाक़े में उनके सारे ठिकाने ईरान के हमलों की ज़द में हैं। यही वजह है कि अमरीकियों की ओर से ईरान की क्षेत्रीय पोज़ीशन और मिसाइल शक्ति के बारे में बातचीत करने और इस पर अंकुश लगाने की बार बार मांग की जा रही है।

ईरान मझा हुआ खिलाड़ी है उसे सूझबूझ के साथ खेल को आगे बढ़ना ख़ूब आता है। बड़े खेल में हारने वाला पक्ष ज़्यादा हाथ पांव मारता है जबकि विजय के क़रीब पहुंचने वाला पक्ष बहुत इतमीनान से अपनी चाल चलता है।

कुछ लोग कहते हैं कि फ़ख़्रीज़ादे को शहीद करके इस्राईलियों और अमरीकियों ने ईरान को जंग शुरू करने के लिए उकसाया है मगर सच्चाई तो यह है कि जंग काफ़ी समय पहले ही शुरू हो चुकी है। ईरान खुले आम प्रतिरोधक मोर्चे की हर जगह मदद कर रहा है। अमरीका की नाक के नीचे वेनेज़ोएला को तेल की सप्लाई कर रहा है।

अब अगर व्यापक नज़र से देखा जाए तो सच्चाई यह है कि प्रतिबंधों, दबाव, धमकियों और आतंकी हमलों से ईरान का रास्ता रोका नहीं जा सका है बल्कि ईरान मज़बूत पोज़ीशन में पहुंच चुका है। यह एक बड़ी लड़ाई है और हर लड़ाई में संबंधित पक्षों को नुक़सान भी उठाना पड़ता है।

शहीद फ़ख़्रीज़ादे की हत्या गहरा आघात है लेकिन ईरान के पास यह अधिकार और संभावनाएं हैं कि इस इंतेक़ाम के लिए जिस स्तर पर चाहे कार्यवाही करे। अमरीका और इस्राईल को इस इंतेज़ार में रहना चाहिए कि इलाक़े में उनकी विफलताओं की सूची में एक और विफलता भी शामिल होने वाली है।

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