(अगर अपने और अपने दुश्मन के साथ कोई समझौता करो तो उसके प्रति वचनबद्ध रहो) समझौते के प्रति कटिबद्ध रहने के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम और उनके उत्तराधिकारी की कुछ हदीसें
(last modified Tue, 29 Apr 2025 13:01:58 GMT )
Apr २९, २०२५ १८:३१ Asia/Kolkata
  • (अगर अपने और अपने दुश्मन के साथ कोई समझौता करो तो उसके प्रति वचनबद्ध रहो) समझौते के प्रति कटिबद्ध रहने के बारे में पैग़म्बरे इस्लाम और उनके उत्तराधिकारी की कुछ हदीसें

पार्सटुडे- हदीसों के अनुसार समझौते के प्रति वफ़ा समस्त धर्मों का सार व निचोड़ है।

समझौते के प्रति वचनबद्धता का मतलब उन समस्त चीज़ों को पूरा करना है जिनका वचन दिया है। यहां हम समझौते के प्रति कटिबद्ध रहने के प्रति पैग़म्बरे इस्लाम और उनके उत्तराधिकारी की कुछ हदीसों को बयान कर रहे हैं।

 

पैग़म्बरे इस्लाम के सबसे निकट व्यक्ति

पैग़म्बरे इस्लाम एक हदीस में फ़रमाते हैं कि क़यामत के दिन मेरे सबसे निकट वह व्यक्ति होगा जो सबसे अधिक सच बोलने वाला होगा, सबसे अधिक अमानदार होगा और सबसे अच्छा व्यवहार करने वाला और लोगों के निकट सबसे अधिक होगा।

 

किस काम को नहीं करना चाहिये?

पैग़म्बरे इस्लाम

तीन चीज़ें हैं जिन्हें छोड़ने की किसी को अनुमति नहीं है। एक माता- पिता के साथ नेकी करना। माता - पिता चाहे मुसलमान हों या काफ़िर।

समझौते के प्रति कटिबद्ध रहना चाहिये। जिसके साथ समझौता किया है चाहे वह काफ़िर हो या मुसलमान

 अमानत को अदा करना जिसकी अमानत हो चाहे वह मुसलमान हो या काफ़िर

समस्त लोग एकमत

हज़रत अली अलैहिस्सलाम

कोई भी दायित्व अह्द व समझौते की भांति नहीं है कि लोग विभिन्न प्रकार की समस्त मांगों व दृष्टभिकोणों के बावजूद इस बात पर एकमत हैं कि उस पर अमल किया जाना चाहिये।

 

वादा ख़िलाफ़ी करने से परहेज़ करना चाहिये

हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं उस वादे की ख़िलाफ़वर्ज़ी करने से बचना चाहिये जो तुमसे अल्लाह और लोगों की नफ़रत का कारण बने।

 

दुश्मन से किये गये समझौते के प्रति कटिबद्ध रहना चाहिये

अगर अपने दुश्मन के साथ कोई समझौता करो या उसे शरण देने का समझौता करो तो उस पर अमल करो और उसका सम्मान करो।

 

जितनी क्षमता है उतना वादा करना चाहिये

इमाम अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं कि उस चीज़ का वादा मत करो जिसे पूरा करने की क्षमता नहीं रखते हो। MM