तौबा में किन विशेषताओं को होना चाहिये?
(last modified Wed, 23 Apr 2025 11:54:45 GMT )
Apr २३, २०२५ १७:२४ Asia/Kolkata
  • तौबा में किन विशेषताओं को होना चाहिये?

पार्सटुडे- इस्लाम धर्म में तौबा गुनाहों से पाक होने का रास्ता, जीवन के रास्ते को बदलने और महान ईश्वर से संबंधों को मज़बूत करने का मार्ग है। सही तरह से और समय पर तौबा व्यक्तिगत विकास और महान ईश्वर और उसकी कृपा से निकट होने का कारण बनती है।

तौबा इस्लाम में नैतिक व आध्यात्मिक प्रशिक्षा, महान ईश्वर की ओर पलटने और उसकी प्रसन्नता प्राप्त करने का एक बेहतरीन माध्यम है। तौबा की क्या विशेषता होनी चाहिये इसका उल्लेख पवित्र क़ुरआन की आयतों और पैग़म्बरे इस्लाम और उनके पवित्र परिजनों के कथनों में हुआ है।

 

यहां हम तौबा की कुछ बुनियादी विशेषताओं को बयान कर रहे हैं जिनका उल्लेख पवित्र क़ुरआन की आयतों और हदीसों में हुआ है।

 

सच्चे दिल से और क़ल्बी शर्मिन्दगी के साथ

तौबा दिल से और सच्ची नियत के साथ होनी चाहिये। तौबा की पहली शर्त यह है कि इंसान अपने किये पर दिल से शर्मिन्दा हो। पैग़म्बरे इस्लाम के उत्तराधिकारी हज़रत अली अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं दिल में पछतावा और शर्मिन्दगी हो, ज़बान से इस्तेग़फ़ार व प्रायश्चित, व्यवहार व अमल में गुनाह को छोड़ देना और उसकी पुनरावृत्ति न करने का पक्का फ़ैसला।

 

यह हदीस इस बात की सूचक है कि तौबा एक बहुआयामी प्रक्रिया है जिसमें एहसासे शर्मिन्दगी, ज़बान से माफ़ी व मग़फ़रत और व्यवहार में गुनाह को छोड़ देने का पक्का इरादा।

 

दोबारा गुनाह न करने का पक्का फ़ैसला

अतीत और पहले के गुनाह से सुधार उस समय पूरा होगा जब इंसान गुनाह को दोबारा न करने का पक्का फ़ैसला करे।

पैग़म्बरे इस्लाम एक हदीस में फ़रमाते हैं कि गुनाहों से तौबा करने वाला गुनाह न करने वाले की तरह है।

यह उस व्यक्ति के इरादे के महत्व की सूचक है जो दोबारा गुनाह न करने का पक्का फ़ैसला करता है।

 

लोगों के अधिकारों को अदा करना

अगर गुनाह में लोगों के अधिकार शामिल हों तो लोगों के अधिकारों को वापस करना तौबा की अस्ली शर्तों में से है।

इमाम जाफ़र सादिक़ अलैहिस्सलाम इरशाद फ़रमाते हैं

कोई इबादत मोमिन के हक़ व अधिकार को अदा करने से बेहतर नहीं है।

इस्लाम में लोगों के अधिकारों का बहुत महत्व है और उसे अदा किये बिना तौबा अधूरी है।

 

अल्लाह से माफ़ी मांगना

विनम्रता और निष्ठा के साथ अल्लाह से माफ़ी मांगना सच्चे तौबे की एक अन्य विशेषता है।

 महान ईश्वर पवित्र क़ुरआन के सूरे तहरीम की आठवीं आयत में फ़रमाता है हे ईमान लाने वालो! अल्लाह से तौबा करो, शुद्ध तौबा। (यानी दोबारा गुनाह न करने का पक्का फ़ैसला) यह आयत स्पष्ट रूप से मोमिनों का आह्वान करती है कि पूरी निष्ठा और सच्चे दिल के साथ अल्लाह से तौबा करें और उसकी ओर पलट आयें।

 

नेक अमल और अतीत की भरपाई

नेक अमल अंजाम देना और अतीत की ग़लतियों व गुनाहों की भरपाई सच्चे तौबे की एक अन्य विशेषता है। पवित्र क़ुरआन के सूरे फ़ुरक़ान की 70वीं आयत में महान ईश्वर कहता है कि मगर जो तौबा करे और ईमान लाये और नेक कार्य अंजाम दे तो अल्लाह उसकी बुराइयों को अच्छाइयों में बदल देता है और अल्लाह बहुत कृपालु व दयालु है।

 

तुरंत और अविलंब तौबा

तौबा में विलंब न केवल गुनाहों में वृद्धि का कारण बन सकता है बल्कि वास्तविक शर्मिन्दगी में भी कमी की संभावना है। इमाम जवाद अलैहिस्सलाम फ़रमाते हैं तौबा में विलंब एक प्रकार का घमंड और बेख़बरी और पछतावे का कारण बनेगा।

यह हदीस इस बात पर बल देती है कि तौबा करने में समय से लाभ उठाना चाहिये।

 

तौबा के लाभ और बरकतें

तौबा पिछले गुनाहों को पाक करने के अलावा इंसान की क़ल्बी और आध्यात्मिक शांति का कारण बनती है। महान ईश्वर ने पवित्र कुरआन में तौबा क़बूल करने और अपनी रहमत व दया का पात्र बनाने का वादा किया है। पवित्र कुरआन के सूरे ज़ोमर की 53वीं आयत में आया है कि हे रसूल कह दीजिये कि मेरे जिन बंदों ने अपने नफ़्स पर ज़ुल्म व गुनाह किया है वे मेरी रहमत से नाउम्मीद न हों कि बेशक अल्लाह समस्त गुनाहों को माफ़ कर देगा क्योंकि वह बहुत मेहरबान और दयालु है।

 

महान ईश्वर का यह वादा उसकी ओर पलट आने के लिए दिलों में उम्मीद पैदा होने का कारण बनता है। MM