ज़िन्दगी के छोटे खज़ाने
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इंसान जीवन की शुरुआत में अनजान लेकिन ईश्वरीय क्षमताओं से भरपूर बनाया गया है।
(last modified 2025-07-28T13:43:36+00:00 )
Jul २८, २०२५ १५:२० Asia/Kolkata
  • ज़िन्दगी के छोटे खज़ाने

इंसान जीवन की शुरुआत में अनजान लेकिन ईश्वरीय क्षमताओं से भरपूर बनाया गया है।

क़ुरान, अल्लाह की नेमतों पर बल देते हुए सीखने और बौद्धिक विकास के अधिकार को हर बच्चे का मौलिक अधिकार मानता है, एक अधिकार जो माता-पिता पर डाला गया है ताकि वे उचित परवरिश के साथ अपनी संतानों के दिलों में ज्ञान और नैतिकता के बीज बो सकें।

 

मनुष्य की रचना एक अद्भुत व चकित करने वाली रचना है जो हिकमत और ईश्वरीय ज्ञान से परिपूर्ण है। सर्वशक्तिमान ईश्वर ने इंसान को जीवन के आरंभ में एक अनभिज्ञ प्राणी के रूप में पैदा किया है लेकिन सीखने और विकसित होने की असीम संभावनाओं के साथ। ज्ञान प्राप्त करने और समझने की यह जन्मजात योग्यता हर बच्चे का मूलभूत अधिकार है जिसे पूरा करने की ज़िम्मेदारी माता-पिता पर है। कलामे एलाही इस वास्तविकता को बयान करते हुए सही परवरिश और विकास के मार्ग को स्पष्ट करता है।

 

"और अल्लाह ने तुम्हें तुम्हारी माताओं के पेट से निकाला, जबकि तुम कुछ नहीं जानते थे और उसने तुम्हें सुनने, देखने और समझने की शक्ति दी ताकि तुम कृतज्ञ बनो"

 

यह आयत सूरह नहल में, बच्चों के सबसे बड़े अधिकारों और अल्लाह की नेमतों में से एक पर जोर देती है: जानने और सीखने का अधिकार।

 

इस आयत में अल्लाह इंसान को सृष्टि के आरंभ में एक अनजान प्राणी बताता है जिसे कोई ज्ञान नहीं होता लेकिन वही अल्लाह, कान, आँख और दिल जैसी महत्वपूर्ण नेअमत देकर ज्ञान और समझ हासिल करने का रास्ता खोल देता है।

 

यह आयत माता-पिता की ज़िम्मेदारी को बयान करती है कि वे अपने बच्चों को शिक्षा दें और सही परवरिश करें। अल्लाह ने ये चीज़ें देकर बच्चे के बौद्धिक और आध्यात्मिक विकास का मार्ग प्रशस्त किया है। माता-पिता का कर्तव्य है कि वे इस अवसर का पूरा लाभ उठाएँ और बच्चे को ज्ञान, नैतिकता और दुनिया की सही समझ हासिल करने में मदद करें। बच्चे का अधिकार है कि माता-पिता उसके मानसिक और आत्मिक विकास के लिए आवश्यक साधन जुटाएँ और उसका मार्गदर्शन इन नेमतों के शुक्र अदा करने की ओर करें।

 

यह आयत बताती है कि इन नेमतों का शुक्रिया अदा करना, सिर्फ़ इन चीज़ें व नेअमतों का सही इस्तेमाल करने और सच्चाई को समझने से ही संभव है। इस अधिकार को नज़रअंदाज़ करना और शिक्षा व परवरिश की कोशिश न करना, एक तरह से नेमत की नाशुक्री है। यह हमें याद दिलाता है कि हमारी रचना सिर्फ़ शारीरिक नहीं है, बल्कि बौद्धिक और रूहानी विकास भी इसका अभिन्न हिस्सा है और माता-पिता इस विकास को पूरा करने में अहम भूमिका निभाते हैं। इसलिए ज्ञान हासिल करना और अपनी योग्यता व क्षमता को निखारना बच्चे का अधिकार है। mm