ग़ैर–मुस्लिम विद्वान नहजुल–बलाग़ा से क्यों प्रभावित हैं?
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ग़ैर–मुस्लिम विद्वान नहजुल-बलाग़ा से क्यों प्रभावित हैं?
पार्स टुडे – नहजुल-बलाग़ा वह महान किताब है जिसमें पैग़ंबरे इस्लाम के उत्तराधिकारी और वसी हज़रत अली (अ.) के कुछ ख़ुत्बे, ख़त और संक्षिप्त वाक्य संकलित हैं।
नहजुल-बलाग़ा का अर्थ वाक्पटुता का स्पष्ट मार्ग है। यह इस्लाम, नैतिकता, दर्शन और राजनीति को समझने के प्रमुख स्रोतों में से एक है। इस किताब के ख़ुत्बों और वचनों में ईश्वर-ज्ञान, नैतिकता, ब्रह्मांड की प्रकृति, मनुष्य का स्वभाव और न्यायपूर्ण तथा अत्याचारी सरकारों का विश्लेषण जैसे विषयों पर चर्चा की गई है। पत्रों में शासन-प्रशासन और शासकों व जनता के संबंधों पर ज़ोर दिया गया है।
नहजुल-बलाग़ा का अनुवाद कई भाषाओं, फ़ारसी, अंग्रेज़ी, फ़्रांसीसी, उर्दू, तुर्की, हिंदी और ताजिक आदि में किया जा चुका है और इस पर अनेक व्याख्याएँ भी लिखी गई हैं। अरबी में इब्न अबिल-हदीद और इब्न मैथम बहरानी की शरहें प्रसिद्ध हैं, जबकि फ़ारसी में आयतुल्लाह नासिर मक़ारिम शीराज़ी की कृति पयाम-ए-इमाम अमीरुल-मोमिनीन (अ.) विशेष स्थान रखती है।
छापकला या छाप उद्योग के आगमन से पहले ही नहजुल-बलाग़ा की सैकड़ों हस्तलिखित प्रतियाँ तैयार की जा चुकी थीं। इन में सबसे पुरानी प्रति 469 हिजरी की है, जो आयतुल्लाह मरअशी नजफ़ी के पुस्तकालय में सुरक्षित है। छपाई उद्योग के बाद यह किताब ईरान, मिस्र, लेबनान, सीरिया और क़तर सहित अनेक देशों में बार-बार प्रकाशित हुई।
इस किताब का संकलक सैयद रज़ी ने अपने मित्रों के आग्रह पर इमाम अली (अ.) के अत्यंत प्रभावशाली और वाक्पटु भाषणों का चयन किया और इसी कारण इसका नाम नहजुल-बलाग़ा रखा।
नहजुल-बलाग़ा केवल धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि दार्शनिक दृष्टि से भी अत्यंत प्रभावशाली है। फ्रांसीसी दार्शनिक और प्राच्यविद प्रोफेसर हेनरी कोर्बिन ने इसे कुरआन और पैग़ंबर इस्लाम (स.) की हदीसों के बाद सर्वाधिक महत्वपूर्ण किताब बताया और इसे शिया चिंतन की मूल प्रेरणा कहा।
लेबनान के ईसाई लेखक जॉर्ज जुर्दाक, जिन्होंने अपने कथनानुसार नहजुल-बलाग़ा को दो सौ से अधिक बार पढ़ा, ने अपनी छह-खण्डों की रचना अल-इमाम अली इंसानी न्याय की आवाज़ में इस ग्रंथ को विचार, भावना और कलात्मक सौंदर्य से भरपूर ऐसी किताब बताया है जो जब तक मानव अस्तित्व में रहेगा, उससे अटूट रूप से जुड़ा रहेगा।
भारत के अलीगढ़ विश्वविद्यालय के साहित्य-प्रोफ़ेसर कर्निको ने नहजुल-बलाग़ा को कुरआन का छोटा भाई कहा है और माना है कि इसकी महानता कुरआन के साथ तुलना योग्य है। mm