दयालुता में पहल करने की कला
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दयालुता में पहल करने की कला
पार्स टुडे – इस्लामी संस्कृति में सच्ची दयालुता का अर्थ है दूसरों की ज़रूरतों को उनके कहने से पहले ही पूरा करना। यह कला सामूहिक जीवन का हिस्सा है, जो समाज को सम्मान और गरिमा से भर देता है।
सबसे महत्वपूर्ण कौशलों में से एक जो समाज में गरिमा और सम्मान पैदा कर सकता है, वह है अविवक्त भावों को समझना।
पार्स टुडे के अनुसार इस्लामी संस्कृति में विचारशील परिपक्वता का एक प्रमुख संकेत यह है कि हम उन दुखों को समझ सकें, जिन्हें पीड़ित अक्सर व्यक्त नहीं करते। जैसा कि पैगंबर इस्लाम के उत्तराधिकारी, इमाम अली अलैहि सलाम ने कहा:
"अगर किसी को अपने भाई की ज़रूरत का पता हो, तो उसे मांगने के लिए कठिनाई में न डालें।" अर्थात अपने भाई की ज़रूरत को उसकी ज़ुबान पर आने से पहले देखें और उसका समाधान करें।
इस्लामी संस्कृति में मुमिनों को एक-दूसरे की ज़रूरतों को मांगने से पहले ही पूरा करना चाहिए। इस संस्कृति में यह कला सामूहिक जीवन का हिस्सा है। सामूहिक जीवन में साथी इंसान आपके भाई हैं। इस जीवन में कला केवल व्यक्तिगत जरूरतें पूरी करने में नहीं, बल्कि दिलों के अनकहे भावों को देखने में भी है।
आज की भागदौड़ की दुनिया में कई ज़रूरतें व्यक्तियों की चुप्पी में छिपी रहती हैं; सहकर्मी, जो अपमान के डर से मदद नहीं मांगते, या पड़ोसी जो अपनी आत्म-सम्मान के कारण भूख सहते हैं लेकिन पैगंबर इस्लाम के उत्तराधिकारी का कथन हमें सिखाता है कि सच्ची दयालुता पहले पहल करने में है। हमें इंतजार नहीं करना चाहिए कि दूसरे मदद के लिए हाथ बढ़ाएँ। हमें अपनी आँखें खोलकर चेहरों में दर्द पढ़ना, नजरों में भय देखना और चुप्पियों में अकेलापन सुनना चाहिए।
यह संस्कृति ऐसे समाज का निर्माण करती है जहाँ कोई भी अपने हक के लिए अपमानित नहीं होता, मदद करना निर्णय से पहले आता है और मानव गरिमा सर्वोच्च मूल्य होती है। MM