मौत के बाद एक मुकम्मल जीवन, आयतुल्लाह ख़ामेनई के दो उपदेश
(last modified Tue, 16 Apr 2024 07:40:15 GMT )
Apr १६, २०२४ १३:१० Asia/Kolkata
  • मौत के बाद एक मुकम्मल जीवन, आयतुल्लाह ख़ामेनई के दो उपदेश

हमारे इस जीवन के बाद का जीवन, ज़्यादा मुकम्मल है। इस जीवन में हम शरीर की चार दीवारी में सीमित हैं।

“दुनिया के बारे में इस्लामी दृष्टिकोण का एक बुनियादी सिद्धांत, मौत के बाद जीवन का जारी रहना है। यानी मौत के साथ जीवन का अंत नहीं हो जाता है। इस्लाम में और सभी ईश्वरीय धर्मों में यह मुद्दा दुनिया से संबंधित मूल सिद्धांतों में से एक है। यहां यह जानना ज़रूरी है कि विश्व दृष्टिकोण के यह सभी सिद्धांत संबंधों को निंयत्रण करने और इस्लामी शासन और दुनिया के प्रशासन को व्यवस्थित करने में प्रभावी हैं। मौत के बाद हम एक नए चरण में प्रवेश कर जाते हैं। ऐसा नहीं है कि इंसान नष्ट हो जाता है, बल्कि यह एक चरण से दूसरे चरण में जाने जैसा है, उसके बाद उस चरण में हिसाब-किताब, पुनरुत्थान और इस तरही की चीज़ें हैं।”

“हमारे जीवन का दूसरा चरण, वर्तमान चरण से ज़्यादा मुकम्मल है। आज हम शरीर की चीर दीवारी में सीमित हैं। हालांकि हमारी अक़्ल परवाज़ करती है और हमारी नज़र कहीं भी जा सकती है और हम अपनी इच्छाशक्ति से कई चीज़ों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन हमारे लिए भौतिक सीमाएं हैं, हालांकि इसके बाद वाली दुनिया में यह भौतिक सीमाएं मौजूद नहीं होंगी और इंसान बहुत व्यापक अर्थों में अनंत हो जाएगा। इसका मतलब है कि इंसान, मौत के बाद और ख़ास तौर पर स्वर्ग और नरक में अस्तित्व की विशालता पाता है। इस पर क़रीब सभी धर्म सहमत हैं। उस दुनिया में दो प्रकार का जीवन हैः एक सुखी और आरामदायक जीवन और हर तरह से परिपूर्ण और दूसरा मुश्किल और यातना के उच्चतम स्तर पर। पहले वाले का नाम स्वर्ग और दूसरे को नर्क है।” msm