रमज़ान-22
हे ख़ुदा, आज के दिन अपनी रहमत और कृपा के द्वाप मेरे लिए खोल दे और मेरे ऊपर अपने बरकतें नाज़िल कर। मुझे अपनी प्रसन्नता हालिल करने का अवसर प्रदान कर और अपनी स्वर्ग के केन्द्र में मुझे जगह दे, हे मजबूर लोगों की दुआ स्वीकार करने वाले।
ख़ुदा ने हमें रमज़ान का 22वां रोज़ा रखने का अवसर प्रदान किया है। हम ख़ुदा से चाहते हैं कि आज के दिन हम पर अपनी रहमतें नाज़िल करे और हमारे दिलों को अपने नूक से रौशन कर दे। इंसान गुनाहों से पाक नहीं है। बल्कि क़ुरान के मुताबिक़, हम अकसर नादानी और लापरवाही में जीवन व्यतीत करते हैं। ऐसा अकसर होता है कि हम लापरवाही में हराम काम कर बठैते हैं या ईश्वरीय आदेशों की अनदेखी कर बैठते हैं। ऐसे मौक़ों पर ईश्वर का आदेश है कि हमें माफ़ी मांगनी चाहिए और तौबा करनी चाहिए, ताकि हम सही रास्ते पर लौट सकें। बहुत से लोग ज़्यादा तौबा करते हैं, लेकिन अपनी तौबा को तोड़ते भी रहते हैं। कुछ लोग गुनाहों में इतना डूब जाते हैं कि वे निराश हो जाते हैं और सही रास्ते पर लौट जाने के बारे में सोचते तक नहीं हैं। पाप करना बुरा है, लेकिन निराशा उससे भी बड़ा गुनाह है।
इस संदर्भ में क़ुरान कहता हैः हे मेरे बंदो, तुमने फ़ुज़ूल ख़र्ची की और अपने ऊपर अत्याचार किया, लेकिन ख़ुदा की रहमत से निराश न हो, क्योंकि ख़ुदा समस्त गुनाहों को माफ़ करने वाला है, और वह बहुत ही मेहरबान और बख़्श देने वाला है। ख़ुदा गुनहगारों को अपना बंदा कह कर संबोधित कर रहा है और वादा कर रहा है कि वह समस्त गुनाहों को बख़्श देगा। लेकिन इसके लिए शर्त यह है कि उसकी रहमत और कृपा से निराश नहीं होना चाहिए। हालांकि इसका मतलब यह नहीं है कि इंसान जो दिल में आए वह करे। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) फ़रमाते हैः ख़ुदा की रहमत पर भरोसा रखो, ऐसा भरोसा, जो तुम्हें गुनाह करने से रोके और ख़ुदा से डरते रहो, ऐसा डर कि जो तुम्हें उसकी रहमत से निराश नहीं होने दे।
निराशा और मायूसी, इंसान को अंधेरे में डुबो देती है, इस प्रकार से कि हज़रत अली (अ) अपने बड़े बेटे को पहली नसीहत करते हुए दिल को तरो-ताज़ा रखने पर बल देते हुए कहते हैं, मेरे प्यारे बेटे, मैं तुम्हें बुराईयों से दूर रहने, ईश्वर के आदेशों का पालन करने, दिल और आत्मा को तरो-ताज़ा रखने और ईश्वरीय रस्सी को मज़बूती से पकड़े रहनी की नसीहत करता हूं।
इन रातों की विशेषता ईश्वर से क्षमा याचना और तोबा करना है। इन रातों में क्षमा याचना और तोबा की सिफ़ारिश इसलिए की गई है, क्योंकि पाप और गुनाह इंसान के दिल को काला और दूषित कर देते हैं, दूषित बर्तन की भांति दूषित दिल भी ईश्वर के प्रकाश का स्थान नहीं बन सकता। यही कारण है कि उसकी कोई इबादत और दुआ क़बूल नहीं होती। निःसंदेह इन रातों में तोबा और क्षमा क़बूल होती है, क़ुरान के मुताबिक़, वह क्षमा शुद्ध दिल से मांगी जाए।
रमज़ान का महीना बरकत, रहमत और क्षमादान का महीना है। ईश्वर इस महीने में अपने बंदों के पापों को माफ़ कर देता है और अच्छे कामों के बदले जैसे कि रोज़ा रखना, इबादत करना, क़ुरान की तिलावत करना और दान देना, स्वर्ग प्रदान करता है। इसलिए जिन लोगों पर उनके पुण्य के कारण ईश्वर की कृपा होती है, उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं। लेकिन अगर कोई इस प्रकार का पुण्य नहीं कर रहा है तो वह ख़ुद पर स्वर्ग के द्वार को बंद कर रहा है।
रमज़ान का महीना, साल का सर्वश्रेष्ठ महीना है और इस महीने में इंसान के कार्यों और आचरण का उसकी आत्मा और मन पर आश्चर्यपूर्ण असर पड़ता है। इसी वजह से जो लोग समझदार होते हैं, वे इससे हमेशा ज़्यादा से ज़्यादा लाभ उठाना चाहते हैं, वे इस महीने में सर्वोत्तम कार्य अंजाम देते हैं। एक दिन हज़रत अली (अ) ने पैग़म्बरे इस्लाम से पूछाः हे ईश्वरीय दूत, इस महीने में सर्वश्रेष्ठ कार्य क्या है? हज़रत (स) ने जवाब में फ़रमायाः इस महीने में सर्वश्रेष्ठ कार्य, गुनाहों से बचना है।
इस पवित्र महीने में सभी को एकांत में विचार करने का अवसर हासिल हुआ होगा। इस मुबारक महीने की सहरी और इफ़्तार ने हमें इस बात के लिए प्रेरित किया कि हम थोड़ा अपने आचरण और व्यवहार के बारे में चिंतन करें। हालांकि साल भर ऐसा करना अच्छा होगा। इस्लाम में अपने कार्यों के हिसाब-किताब पर बहुत बल दिया गया है। धार्मिक शिक्षाओं में सिफ़ारिश की गई है कि हर व्यक्ति को दिन में कोई समय, अपने कार्यों में चिंतन करने के लिए निर्धारित करना चाहिए और अपनी कमज़ोरियों की दिक़्क़त से समीक्षा करना चाहिए। इस निरंतर समीक्षा को आत्म-आकलन कहा गया है। इस आकलन में हर शख़्स दुनिया के शोर-शराबे से दूर, अपने कार्यों को अपने विवेक की तराज़ू में तोलता है।
कार्यों की समीक्षा का वैसे तो कोई समय निर्धारित नहीं है, लेकिन रमज़ान का पवित्र महीना, अपने कार्यों के आकलन के लिए एक शानदार मौक़ा है। कार्यों, आचरण और व्यवहार की समीक्षा के कारण, इंसान इस बारे में अधिक ध्यान रखता है। सटीक समीक्षा से इंसान न केवल अपने कार्यों, बल्कि अपने विचारों की भी गहरी समीक्षा करता है, ताकि वह लाभदायक और हानिकारक कारणों को अच्छी तरह से समझ सके।
रमज़ान के महीने में ज़मीन पर ईश्वर की रहमत पहले से अधिक बरसती है। यह महीना प्यार, मोहब्बत, आशा और नेमत का महीना है। ईश्वर इस महीने में निर्धनों को प्रोत्साहित करता है, ताकि ऐसे मार्ग पर अग्रसर रहें, जिसके अंत में ईश्वर की प्रसन्नता और स्वर्ग हासिल हो। ऐसा मार्ग जिसपर हर कोई अकेले चलकर गंतव्य तक नहीं पहुंच सकता, लेकिन ईश्वर इस महीने के रोज़ों के ज़रिए सभी की सहायता करता है, चाहे वे गुनाह करने वाले हों या चाहे अच्छे लोग हों जो हमेशा ईश्वर का ज़िक्र करते हैं।
रोज़े से इंसान में निर्धन वर्ग से हमदर्दी का अहसास पैदा होता है। स्थायी भूख और प्यास से रोज़ा रखने वाले का स्नेह बढ़ जाता है और वह भूखों और ज़रूरतमंदों की स्थिति को अच्छी तरह समझता है। उसके जीवन में ऐसा मार्ग प्रशस्त हो जाता है, जहां कमज़ोर वर्ग के अधिकारों का हनन नहीं किया जाता है और पीड़ितों की अनदेखी नहीं की जाती है। इमाम जाफ़र सादिक़ (अ) से हेशाम बिन हकम ने रोज़ा वाजिब होने का कारण पूछा, इमाम ने फ़रमाया, रोज़ा इसलिए वाजिब है ताकि ग़रीब और अमीर के बीच बराबरी क़ायम की जा सके। इस तरह से अमीर भी भूख का स्वाद चख लेता है और ग़रीब को उसका अधिकार देता है, इसलिए कि अमीर आम तौर से अपनी इच्छाएं पूरी कर लेते हैं, ईश्वर चाहता है कि अपने बंदों के बीच समानता उत्पन्न करे और भूख एवं दर्द का स्वाद अमीरों को भी चखाए, ताकि वे कमज़ोरों और भूखों पर रहम करें।
अब हम रमज़ान में भोजन करने के संबंध में कुछ सिफ़ारिशें कर रहे हैं। सही समय पर भोजन करना रोज़ेदारों के लिए रमज़ान का एक पाठ है। इसलिए एक निर्धारित समय पर भोजन करना स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक होगा। इसका एक बड़ा लाभ दिन भर के लिए ऊर्जा का और एनर्जी का स्टोर करना है। अव्यवस्थित रूप से भोजन करने के कारण शरीर में ऊर्जा की कमी हो जाती है, लेकिन सही समय पर भोजन करने से शरीर में शुगर की मात्रा संतुलित रहती है, जिसके परिणाम स्वरूप इंसान कमज़ोरी से बचता है। इसके अलावा निर्धारित समय पर भोजन करने से इंसान कभी भी कुछ खा लेने से बचता है। रमज़ान का महीना व्यवस्थित और अच्छा जीवन बिताने का एक अभ्यास है, जिसे रमज़ान के बाद भी जारी रखा जाना चाहिए। खाने और पीने में व्यवस्था से इंसान की सोच भी व्यवस्थित होती है।
हज़रत अली (अ) फ़रमाते हैं, जो कोई भी भोजन करने में संतुलन से काम लेगा वह स्वस्थ रहेगा और उसके विचार और बुद्धि में सुधार होगा। रमज़ान के महीने में अगर इस बिंदु पर विशेष ध्यान दिया जाए तो हमें पता चलेगा कि रोज़ा रखने के लिए इफ़तार और सहरी में अधिक खाने की ज़रूरत नहीं है। शरीर में ऐसा मेकानिज़्म है, जो रोज़े में सक्रिय हो जाता है और फ़ालतू चर्बी को जला देता है। इसलिए शरीर को एक संतुलित भोजन की ज़रूरत होती है, ताकि रमज़ान में रोज़ेदार का स्वास्थ्य बना रहे। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अगर किसी को समज़ान में स्वास्थ्य से संबंधित कोई समस्या हो और उसका कारण कोई विशेष रोग नहीं हो तो निश्चित रूप से उसका कारण असंतुलित भोजन करना होगा।